लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के छह लोकसभा सदस्यों में से पांच ने दल के मुखिया चिराग पासवान को संसद के निचले सदन में पार्टी के नेता के पद से हटाने के लिए हाथ मिला लिया है और उनकी जगह उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को इस पद के लिए चुन लिया है। चाचा-भतीजे के बीच में पैदा हुआ मनमुटाव वक्त के साथ इतना बढ़ गया कि अब दोनों की राहें अलग-अलग हो चुकी हैं। सूत्रों का कहना है कि पार्टी में जो कुछ आज हो रहा है उसके संकेत पहली बार पिछले साल उस वक्त सामने आए थे जब चिराग पासवान ने सार्वजनिक तौर पर चाचा पशुपति कुमार पारस के खिलाफ नाराजगी जाहिर कर दी थी।
लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संस्थापक रामविलास पासवान के भाई और चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस हमेशा लो प्रोफाइल और पर्दे के पीछे रहने वाले ही रहे। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्र बताते हैं कि जैसे ही पार्टी की कमान चिराग के हाथों में आईं तो चीजों में तेजी से खटास आने लग गई। स्थितियां ऐसी परिवर्तित हो गईं कि हाजीपुर के सांसद और रामविलास पासवान के दाहिने हाथ कहे जाने वाले पारस ने ही पार्टी में तख्ता पलट कर दिया, जिससे चिराग पासवान अपनी पार्टी में अकेले सांसद रह गए हैं। उनके अलावा बाकी के पांच सांसद लोकसभा अध्यक्ष के पास पहुंच गए और सदन में एक अलग दल की मान्यता देने की बात कह दी।
रामविलास पासवान के निधन के चार दिनों के बाद और बिहार चुनावों से पहले पारस द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ करना चिराग पासवान को नाराज कर गया था। गुस्साए चिराग पासवान ने अपने चाचा को पार्टी से निकालने तक की धमकी दे दी थी और उन्हें परिवार के नहीं होने तक की बात कह दी थी।
इसके जवाब में पारस ने भी कहा था कि “आपके चाचा अब से आपके लिए मर चुके हैं।” इस संवाद के बाद चाचा-भतीजे के बीच मुश्किल से ही बात होती थी और यहां तक कि चिट्ठियों में भी तनाव का ऐहसास किया जा सकता था।
सूत्रों का कहना है कि पारस ने कभी भी अपने भतीजे को बिहार चुनाव को भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग लड़ने के फैसले को मंजूरी नहीं दी थी। पारस के करीबी लोगों का कहना है कि जब उनके भतीजे ने उनसे पार्टी के उम्मीदवारों के बारे में पूछताछ करने की जहमत नहीं उठाई तो उन्होंने भी खुद को अलग-थलग महसूस किया।
नवंबर के चुनावों में, लोजपा की एकमात्र उपलब्धि नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के समर्थन में वोटों को विभाजित करना था, जिसका असर ये हुआ कि जेडीयू चुनावों में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। लोजपा ने विधानसभा की 243 सीटों में से सिर्फ एक पर जीत हासिल की थी।
चुनाव में मिली हार की हताशा के बाद पार्टी नेताओं को चिराग के अंदर एक बेहद जिद्दी और अभिमानी नेता दिखाई देने लगा। हालांकि, कुछ नेता उनके काम करने के अंदाज में रामविलास पासवान की शैली देखा करते हैं। लोजपा का संकट तब और बढ़ गया जब हाजीपुर से पहली बार सांसद बने पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देने का वादा किया गया।
सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार पहले से ही पासवानों से जुड़े एक पार्टी नेता महेश्वर हजारी के जरिए लोजपा के बाकी सांसदों पर काम कर रहे थे। उनके करीबी लेफ्टिनेंट लल्लन सिंह दिल्ली में बैठकर इसका ताना-बाना तैयार कर रहे थे।
बागियों में चिराग के चचेरे भाई प्रिंस राज, चदंन सिंह, वीणा देवी और महबूब अली कैसर शामिल हैं. इन सभी ने पारस पाले में रहने का फैसला किया है। चिराग पासवान के लिए, एक और गहरा कट उनके चचेरे भाई प्रिंस राज का दलबदल है, जिन्हें लोजपा का बिहार अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।