सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (5 अप्रैल) को कहा कि आधार हर धोखाधड़ी को नहीं पकड़ सकता। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह टिप्पणी आधार कानून की कानूनी वैधता का परीक्षण करने के दौरान की। अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने जब यह कहा कि आधार के जरिए हजारों करोड़ रुपये की धोखाधड़ी, बेनामी लेनदेन, पकड़े गए हैं और तमाम फर्जी कंपनियों का खुलासा हुआ है।इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार प्रत्येक धोखाधड़ी का इलाज नहीं है। खासकर बैंक धोखाधड़ी रोकने में यह कामयाब नहीं है। यदि कोई व्यक्ति अलग कंपिनयां शुरू कर रहा है, तो यह अपने आप में धोखाधड़ी नहीं है। समस्या तब आती है जब बैंक मल्टीपल एंट्री के जरिये लोन देता है। आधार में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे व्यक्ति को वाणिज्यिक गतिविधियों की श्रृंखला में लेन देन करने से रोका जा सके। हम नहीं समझते कि आधार ऐसे बैंक धोखाधड़ी को रोक सकता है। हां, कल्याणकारी योजनाओं में धोखाधड़ी को रोकने की बात समझी जा सकती है।
हिंदुस्तान में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि सरकार हर चीज को आधार से क्यों जोड़ना चाहती है? क्या वह हर व्यक्ति को आंतकवादी समझती है? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मोबाइल नंबरों को आधार से जोड़ा जाए। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में सिम कार्ड लेना बंद हो गया, जिसका आतंकवादी इस्तेमाल कर रहे थे। इस पर कोर्ट ने कहा आंतकवादी तो सिम कार्ड नहीं, सेटेलाइट फोन का प्रयोग करते हैं। सुनवाई 10 अप्रैल को जारी रहेगी।
आधार हर मर्ज का इलाज नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने लगातार हो रही बैंक धोखाधड़ी रोकने और आतंकियों को पकड़ने में आधार से मदद मिलने की केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की दलीलों से असहमति जताते हुए टिप्पणी में कहा कि आधार हर मर्ज का इलाज नहीं है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि आधार के जरिए बैंक धोखाधड़ी को रोका जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार से बैंक धोखाधड़ी को नहीं रोका सकता।
नवभारत टाइम्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (5 अप्रैल) को आधार पर सुनवाई के दौरान कहा कि धोखाधड़ी करनेवालों के साथ बैंक अधिकारियों की ‘साठगांठ’ रहती है और घोटाले इसलिए नहीं होते हैं, क्योंकि अपराधियों के बारे में कोई जानकारी नहीं रहती है। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र के तर्क पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि महज कुछ आतंकियों को पकड़ने के लिए पूरी जनता से आधार के साथ अपने मोबाइल फोन को लिंक करने के लिए कहा जा रहा है।
कोर्ट ने पूछा कि अगर अधिकारी प्रशासनिक आदेशों के जरिए नागरिकों से अपने DNA, सीमेन और खून के सैंपल्स को भी आधार डेमोग्राफिक्स में शामिल करने को कहें तो क्या होगा। आपको बता दें कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच आधार की वैधता और लॉ बनाने को चुनौती देनेवाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया केंद्र के तर्क पर असहमति व्यक्त की और कहा आधार बैंकिंग फॉड्स का समाधान नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि, ‘धोखाधड़ी करनेवालों की पहचान को लेकर कोई संदेह नहीं है। बैंक को पता रहता है कि वह किसे लोन दे रहा है। वह बैंक अधिकारी ही होते हैं जो धोखाधड़ी करनेवालों के काफी करीब होते हैं। इसे रोकने के लिए आधार बहुत कुछ नहीं कर सकता है।’ बेंच में जस्टिस ए. के. सीकरी, ए. एम. खानविलकर, डी. वाई. चंद्रचूड और अशोक भूषण भी हैं।
बेंच ने केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल से कहा कि, ‘कई आईडी होने के कारण बैंकिंग फ्रॉड नहीं होते हैं।’ वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा है कि बायोमेट्रिक्स पूरी तरह से सुरक्षित हैं और इसकी मदद से मनी लॉन्ड्रिंग, बैंक फ्रॉड्स, इनकम टैक्स की चोरी और आतंकवाद जैसी समस्याओं को सुलझाने में काफी मदद मिल सकती है।
बेंच ने कहा कि, ‘आधार किसी भी शख्स को कमर्शल लेनदेन के ऑपरेटिंग लेयर्स से रोक नहीं सकता। यह बैंक फ्रॉड्स से भी नहीं रोक सकता।’ कोर्ट ने आगे कहा कि इससे केवल अधिकारियों को मनरेगा जैसी योजनाओं में फर्जी लाभार्थियों को पकड़ने में मदद मिल सकती है। बेंच ने कहा कि कोई व्यक्ति कई अलग-अलग संस्थाओं के जरिए मल्टी-लेयर्ड कमर्शल ट्रांजैक्शंस कर लोन आदि ले सकता है और यह गैरकानूनी भी नहीं है।
वेणुगोपाल ने इस पर कहा कि आधार से मोबाइल को लिंक कराने से उन आतंकियों को पकड़ने में मदद मिलेगी जो बम धमाके की साजिश रच रहे होंगे। इस पर बेंच ने उनसे कहा, ‘क्या आतंकी सिम कार्ड के लिए अप्लाइ करते हैं? यह एक समस्या है कि आप पूरे 120 करोड़ लोगों को अपने मोबाइल फोन्स को आधार से लिंक करने को कह रहे हो क्योंकि आप कुछ आतंकियों को पकड़ना चाहते हैं।’
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार की ओर से राष्ट्रीय हित के प्रयास हो सकते हैं लेकिन क्या कुछ लोगों को पकड़ने के लिए पूरी आबादी को आधार लिंक कराने के लिए कहा जा सकता है? बेंच ने उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार हिंसा के हालात से निपटने के लिए इंटरनेट सेवा को ठप कर देती है और कोई भी उसके अधिकार पर सवाल नहीं उठाता है, लेकिन यहां मसला सभी नागरिकों से अपने मोबाइल को आधार से लिंक कराने के लिए कहने का है।