लॉकडाउन में भारतीय मीडिया की दुर्दशा: रांची के NGO में ‘मुफ्त राशन’ के लिए 150 स्थानीय लेखकों और पत्रकारों ने किया अप्लाई

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कोरोना वायरस (कोविड-19) की रोकथाम के लिए देश भर में लॉकडाउन के ऐलान के बाद से ही प्रवासी मजदूरों समेत आम लोगों को खाने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है। इस लॉकडाउन में मीडिया संस्थानों का भी बुरा हाल हो गया है। मीडिया संस्थानों में तालाबंदी और पत्रकारों की नौकरी जाने की शुरुआत मार्च में लॉकडाउन के कुछ समय बाद ही हो गई थी। अलग-अलग संस्थानों से बड़ी संख्या में पत्रकारों को नौकरी से निकाला जाने लगा, ये सिलसिला अब तक जारी है।

लॉकडाउन
फाइल फोटो

मीडिया संस्थानों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण उनके अखबारों का सर्कुलेशन कम हुआ है, सप्लीमेंट बंद हो रहे हैं और विज्ञापन का पैसा भी कम हुआ है। किसी मीडिया संस्थान ने कर्मचारियों को बिना सैलरी की छुट्टियों पर भेज दिया है, किसी ने दो महीने का वेतन देकर जबरन इस्तीफा मांग लिया है, तो किसी ने तुरंत प्रभाव से निकाल दिया है। इसके अलावा कई न्यूज चैनल कर्मचारियों की सैलरी 20 से 50 फीसदी तक काटने के बावजूद दो-तीन महीने का वेतन रोककर अस्थाई समय के लिए संस्थान को बंद करने का ऐलान कर दिए हैं।

पत्रकारों की नौकरी जाने के बाद उनकी हालत किस कदर खराब हो गई है इसका ताजा उदाहरण झारखंड के रांची से सामने आया है, जहां करीब 150 स्वतंत्र लेखकों और पत्रकारों ने मुफ्त राशन के लिए अप्लाई किया है। जी हां, एक फेसबुक यूजर ने दावा किया है कि रांची स्थित एक एनजीओ बहुत कम जरूरतमंद लोगों को राशन वितरित करता है। अब एनजीओ वालों ने यूजर को बताया है कि 150 स्थानीय लेखकों/स्वतंत्र पत्रकारों ने उन्हें अपनी सूची में रखने को कहा है।

यूजर ने लिखा है कि यह हमें यहां के मीडिया समुदाय की दुर्दशा की तस्वीर पेश किया है। बहुत ही बुरे दिन है। इस यूजर के पोस्ट पर अलजजीरा की एक महिला पत्रकार ने लिखा है कि 150 स्थानीय स्वतंत्र लेखकों और पत्रकारों ने रांची में मुफ्त राशन सूची में डालने के लिए कहा है। भारतीय मीडिया पर शर्म आती है। भारत में दूरदराज के कोनों में पत्रकारों के बढ़ते उत्थान पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए।

बता दें कि, देश में अब तक कोरोना वायरस के 4,40,215 मामले सामने आ चुके हैं। वहीं, मृतक संख्या 14,011 पर पहुंच गई।

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