उत्तर प्रदेश के कासगंज में इस साल गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के दिन तिरंगा यात्रा के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा मामले में कई सनसनीखेज खुलासा हुआ है। एक स्वतंत्र जांच में किए गए तहकीकात में सामने आया है कि यूपी पुलिस की जांच में कासगंज हिंसा मामले में कथित तौर पर हिंदुओं को बचाने की कोशिश की गई है, जबकि बेगुनाह मुसलमानों को फर्जी तरीके से फंसाया गया है। इस रिपोर्ट को देश और विदेश में कार्यरत कई सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों ने समर्थन किया है।
गौरतलब है कि कासगंज जिले में गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के मौके पर तिरंगा यात्रा के दौरान दो समुदायों में भिड़ंत हो गई जिससे तनाव व्याप्त हो गया। इस दौरान दोनों समुदायों की और से जमकर पथराव और आगजनी की गई। इसके बाद वहां तोड़-फोड़ और कई गाड़ियों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। इस हिंसा में 22 वर्षीय चंदन गुप्ता नाम के युवक की जान चली गई थी, वहीं अकरम नाम के एक युवक की एक आंख फोड़ दी गई थी।
हिंसा से जुड़े हिंदुत्व संगठनों के तार
इस स्वतंत्र रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि एफ़आईआर के मुताबिक हिंसा की पहली सूचना पुलिस स्टेशन में 26 जनवरी को रात 10.09 बजे दी गई जिसे उस समय पुलिस स्टेशन की जनरल डायरी (जीडी) में एंट्री संख्या 43 के अधीन दर्ज किया गया। लेकिन जीडी में उस रोज की एंट्री संख्या 29 के मुताबिक हिंसा की पहली सूचना 11.53 दर्ज हो चुकी थी। इसमें लिखा है कि मोटरसाइकिल रैली को “हिंदू विश्व वाहिनी” ने आयोजित किया था। संभवत: ये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संगठन “हिंदू युवा वाहिनी” का उल्लेख था।
दरअसल मोटरसाइकल रैली के कई हिंदू आदित्यनाथ की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़े हैं। कई के फ़ेसबुक पेज से जाहिर होता है कि वो मुस्लिम विरोधी हैं और हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक कट्टरता का व्यवहार करते हैं। एफ़आईआर के विवेचक (जांच अधिकारी) सब-इंस्पेक्टर मोहर सिंह तोमर ने उसी रात केस डायरी में जीडी की एंट्री संख्या 29 को अक्षरश: दर्ज किया। लेकिन आने वाले महीनों मे तोमर ने उस मोटरसाइकिल रैली में भाग लेने वाले हिंदुओं की राजनीतिक और संगठनात्मक पृष्ठभूमि की जांच करने की कोशिश नहीं की।
पुलिस पर लगा पक्षपाती जांच का आरोप
एफ़आईआर में चार मुसलमानों को नामज़द करने के कुछ मिनट बाद ही एसएचओ सिंह ने तोमर को दिए बयान में 24 और मुसलमानों के भी नाम दे दिए। एसएचओ ने कहा “मेरी जानकारी में आया है” कि इस घटना में ये 24 भी शामिल थे। लेकिन ये नहीं बताया कि मिनटों में यह तथ्य उनकी “जानकारी” मेंकहां से आया। तीन महीने की जांच में तोमर ने ये जानने की कोशिश भी नहीं कि एसएचओ सिंह को इन 24 मुसलमानो के नाम आखिरकार कहां से और कैसे मिले। आगे चलकर इन मुसलमानों में से ज्यादातर को 19 वर्षीय चंदन गुप्ता की हत्या का आरोपी बना दिया गया। अगले दो हफ्ते तक जांच अधिकारी तोमर का ध्यान मुसलमानों को गिरफ्तार करने में लगा रहा। उन्होंने हिंदुओं की जांच तक नहीं की।
Investigative Report Exposes Gaping Holes In FIR/Charge-sheet
Posted by Janta Ka Reporter on Wednesday, 29 August 2018