सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक रूप से संवदेनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय एक नई संविधान पीठ का गठन किया है। बेंच में दो नए जजों को शामिल किया गया है। नई पीठ में न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति नजीर नए सदस्य हैं। इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ ने अयोध्या मुद्दे पर बड़ा बयान देते हुए दावा किया है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस विवाद पर जल्द फैसला सुनाने में असमर्थ है तो कोर्ट को यह मामला हमें सौंप देना चाहिए। हम इस मामले को 24 घंटे के अंदर सुलझा लेगें।
मुख्यमंत्री योगी से एक निजी चैनल ने जब पूछा कि क्या वह आयोध्या मसले का समाधान बातचीत से करेंगे या डंडे से तो उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया, ‘पहले अदालत को मसले को हमारे हवाले करने दीजिए।’ योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘मैं अब भी अदालत से विवाद का निपटारा जल्द करने की अपील करूंगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने 30 सितंबर 2010 को भूमि बंटवारे के मसले पर आदेश नहीं दिया, बल्कि यह भी स्वीकार किया कि बाबरी ढांचा हिंदू मंदिर या स्मारक को नष्ट करके खड़ा किया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने हाई कोर्ट के आदेश पर खुदाई की और अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि बाबरी के ढांचे का निर्माण हिंदू मंदिर या स्मारक को नष्ट करके किया गया था।’
‘आप की अदालत’ में योगी आदित्यनाथ: 'राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट फैसला नहीं कर सकता तो हमें सौंप दे, 24 घंटे में विवाद निपटा देंगे'
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— India TV Hindi (@IndiaTVHindi) January 26, 2019
सीएम योगी ने कहा, ‘टाइटल का विवाद अनावश्यक रूप से जोड़कर अयोध्या विवाद को लंबा खींचा जा रहा है। हम सुप्रीम कोर्ट से लाखों लोगों की संतुष्टि के लिए जल्द से जल्द न्याय देने की अपील करते हैं, ताकि यह जनास्था का प्रतीक बन सके। अनावश्यक विलंब होने से संस्थानों से लोगों का भरोसा उठ जाएगा। जहां तक लोगों के धैर्य और भरोसे की बात है तो अनावश्यक विलंब से संकट पैदा हो रहा है।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा, ‘मैं कहना चाहता हूं कि अदालत को अपना फैसला शीघ्र देना चाहिए। अगर वह ऐसा करने में असमर्थ हैं तो वह मसला हमें सौंप दें। हम राम जन्मभूमि विवाद का समाधान 24 घंटे के भीतर कर देंगे। हम 25 घंटे नहीं लेंगे।’ उनसे जब पूछा गया कि केंद्र सरकार ने अध्यादेश क्यों नहीं लाया तो उन्होंने कहा कि मामला विचाराधीन था। उन्होंने कहा, ‘संसद में विचाराधीन मसलों पर बहस नहीं हो सकती है। हम इसे अदालत पर छोड़ रहे हैं। अगर अदालत ने 1994 में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे के आधार पर न्याय दिया होता तो देश में अच्छा संदेश जाता।’ (आईएएनएस इनपुट के साथ)