चारा घोटाला का जिक्र आते ही सबसे पहला नाम बिहार का आता है, जहां के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद नेता लालू प्रसाद यादव इस मामले में जेल की सजा काट रहे हैं। इस बीच एक समाचार चैनल ने अपने एक स्टिंग में दावा किया है कि अब बिहार की तरह ही महाराष्ट्र में भी चारा घोटाले का सनसनीखेज मामला सामने आया है। चैनल ने दावा किया गया है कि तीन साल के सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र में मवेशियों के चारों का हेराफेरी कर सत्ताधारी पार्टी के नेता करोड़ों रुपये अपनी जेब में डाल रहे हैं। बता दें कि यहां भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठबंधन की सरकार है।
अंग्रेजी न्यूज चैनल इंडिया टुडे की स्टिंग में खुलासा हुआ है कि कुछ एनजीओ मवेशी रखने वाले किसानों को राहत देने के लिए तय सरकारी फंड को डकार रहे हैं। इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टर ने जांच में पाया कि राज्य के पशुधन कैंपों में गायों के चारे की आपूर्ति के लिए निर्धारित एनजीओ कैसे इस काम में हेराफेरी से अपनी और अपने राजनीतिक आकाओं की जेबें गर्म कर रहे हैं।
स्टिंग में दावा किया गया है कि मवेशियों को सूखे से बचाने के लिए महाराष्ट्र की सरकार ने चारा कैंप स्थापित किए हैं, लेकिन इस व्यवस्था का ही भाजपा और शिवसेना समर्थित नेता फायदा उठा रहे हैं। स्टिंग में दावा किया गया है महाराष्ट्र में बिहार जैसा ही चारा घोटाला हुआ है। स्टिंग में राज्य के बीड जिले में चारा कैंपों में भाजपा-शिवसेना समर्थित एनजीओ द्वारा लूट और हेराफेरी का भंडाफोड़ किया गया है।
मवेशियों के चारे की रकम से अपनी जेबें भर रहे हैं चारा कैंप संचालक
मालूम हो कि महाराष्ट्र सरकार ने इस साल मार्च महीने में किसानों के मवेशियों के लिए कई सुविधाओं का ऐलान किया था, जिसके जरिए किसान अपने मवेशियों की खुराक के लिए सहायता ले सकें। इसमें राज्य के सूखा प्रभावित इलाकों में चारा कैंपों के जरिए किसानों को सस्ते दाम में चारा उपलब्ध कराने की घोषण की गई थी। अधिकारियों के मुताबिक, जून तक करीब 1,635 चारा कैंप बनाए गए थे, ताकि 11 लाख मवेशियों की मदद की जा सके। पशुधन सहायता 9 से 18 किलोग्राम प्रति मवेशी के हिसाब से 50 रुपये से 100 रुपये के बीच तय है।
इंडिया टुडे की जांच से खुलासा हुआ कि इन सुविधा कैंपों से जुड़े कई संस्थान भाजपा और शिवसेना के नेताओं या उनके विश्वासपात्रों की ओर से मैनेज किए जाते हैं। ऐसे कुछ संस्थान छद्म नामों से भी चलाए जाते हैं। हैरानी की बात है कि ये संस्थान खुद को गैर मुनाफा सिद्धांत पर चलने वाले बताते हैं। “इंडिया टुडे” से बातचीत में एनजीओ से जुड़े इन कैंप संचालकों ने स्वीकारा है कि जानवरों को दिए जाने वाले चारे में उन्होंने घपला किया है।
स्टिंग में खुलासा हुआ है कि इन चारा कैंप के नियम के अनुसार बड़े पशुओं को रोजाना 18 किलो चारा और छोटे पशुओं को 9 किलो चारा खिलाया जाना होता है। लेकिन कैंप संचालकों ने कहा है कि वे बड़े जानवरों को 12 किलो और छोटे जानवरों को 6 किलो चारा ही देते हैं। ग्राम पंचायत के सदस्य और शिवसेना से जुड़े गणेश वाघमारे पर बीड जिले के कलसाम्बर गांव में चारा कैंप चलाने की जिम्मेदारी है। वाघमारे ने चैनल के खुफिया कैमरे में कबूल किया कि सूखा राहत ठिकाने लगाने के लिए कागजात में हेराफेरी और पशुओं को कम चारा दिया जाता है।
मवेशियों को दिया जाता है कम चारा
गणेश वाघमारे ने चैनल के अंडर कवर रिपोर्टर को बताया, ‘सारे अधिकारियों के लिए रकम तय है। मैं किसी भी चिट्ठी या रिकॉर्ड को मुहैया करा सकता हूं। मैंने उन्हें (मवेशियों) एक दिन के लिए भी सप्लीमेंट नहीं दिए, एक चुटकी भी नहीं। बड़े मवेशी के लिए 18 किलो और छोटे मवेशी के लिए 9 किलो चारा निर्धारित है, लेकिन मैं 12 और 6 किलो ही देता हूं।’ वाघमारे ने रिकॉर्ड दिखाए कि कैसे चारे की खपत को कागज पर बढ़ाकर दिखाया जाता है। वाघमारे ने कहा, ‘मैंने आधिकारिक रजिस्टर पर साइन करने के लिए लोग रखे हुए हैं और देखता हूं कि हर साइन के बाद अंगूठे का निशान भी हो। 99 फीसदी किसान निरक्षर हैं।’
बीड के ही दूसरे गांव अहेर वडगांव में भी यही देखने को मिला। जांच से सामने आया कि वाघमारे जैसे स्थानीय नेताओं ने 10 से 15 कैंप बना रखे हैं और आधिकारिक फाइलों में ग्रामीणों के नाम पार्टनर के तौर पर दिखा रखे हैं। लगभग ऐसा ही तरीका हर गांव में अपनाया जाता है। अहेर वाडगांव में मुकुंग रोहिते ने कबूल किया कि उसकी ओर से संचालित कैंपों में मवेशियों की राहत के फंड को ठिकाने लगाने के लिए किताबों में नियमित तौर पर हेरफेर किया जाता है, जिससे पशुओं के लिए आने वाले फंड का इस्तेमाल अपने इस्तेमाल के लिए हो सके।
रोहिते ने कहा, “हमें चारे और बाकी चीजों की संख्या रिकॉर्ड में बढ़ाकर दिखाना पड़ता है। हमें रिकॉर्ड में दिखाना पड़ता है कि हर परिवार में 4-5 सदस्य हैं और अगर एक आदमी के पास पांच जानवर हैं, तो एक परिवार में लगभग 20 जानवर हो रहे हैं।” रोहिते ने ये भी दावा किया कि महाराष्ट्र सरकार में एक मंत्री भी ऐसी सुविधा का अपने फायदे के लिए बेजा इस्तेमाल कर रहा है। रोहिते ने चेकिंग के लिए आने वाले इंस्पेक्टरों को घूस देने की बात भी मानी।
मंत्री का भी सामने आया नाम
इंडिया टुडे के पास रोहिते का पूरा कबूलनामा मौजूद है, जिसमें उसने टेप में मंत्री की पहचान बताई है। चैनल का कहना है कि अगर आधिकारिक तौर पर रोहिते के दावे की जांच का फैसला लिया जाए तो ये टेप साझा किए जा सकते हैं। इसके अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में चारा कैंप चलाने वाले अन्य लोगों ने भी इसी तरह का दावा किया। दावा किया गया कि जांच करने वाले अधिकारियों को 10 से 15 हजार रुपए दिए जाते हैं।
चैनल द्वारा कृषि राज्य मंत्री सदाबाऊ खोट से इस संबंध में संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा, ‘चारा कैंप उन्हीं लोगों को आवंटित किए गए जिनके पास इन्हें संचालित करने की क्षमता है। किसी एक की गड़बड़ के लिए दूसरे सारे कैंपों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। आखिरकार ये लाखों मवेशियों का सवाल है। जहां हमें शिकायत मिलीं वहां कुछ कैंपों के खिलाफ हम कार्रवाई के आदेश पहले ही जारी कर चुके हैं और शिकायतें आईं तो हम व्यक्ति, पार्टी की परवाह किए बिना कार्रवाई करेंगे।’