पुणे हिंसा: जिग्नेश मेवानी और उमर खालिद के खिलाफ FIR दर्ज, भड़काऊ भाषण देने का आरोप

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एक जनवरी को पुणे के पास स्थित भीमा-कोरेगांव में दलित समाज के शौर्य दिवस पर भड़की जातीय हिंसा के मामले में गुजरात के निर्दलीय विधायक और दलित कार्यकर्ता जिग्नेश मेवाणी और दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र नेता उमर खालिद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। साथ ही मुंबई में होने वाले जिग्नेश के कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया है। दोनों पर हिंसा को भड़काने का आरोप लगाया गया है।

(Indian Express Photos/File)

न्यूज एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक पुणे के विश्राम बाग थाने में जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद पर धारा 153 (A), 505 और 117 के तहत केस दर्ज किया गया है। इस मामले पर पुलिस का कहना है कि जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद के खिलाफ 31 दिसंबर को यहां एक कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण देने को लेकर एक शिकायत मिली है। शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज किया गया है।

इस बीच पुलिस ने मुंबई में होने वाले जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद के कार्यक्रम को भी अनुमति देने से इनकार कर दिया है। साथ ही पुलिस ने उमर तथा जिग्नेश के मुंबई प्रवेश पर रोक लगा दी है। मुंबई पुलिस ने इसके लिए कानून-व्यवस्था के बिगड़ने का हवाला दिया। पुलिस की इस कार्रवाई के बाद जिग्नेश समर्थकों ने प्रदर्शन और नारेबाजी की। इस दौरान पुलिस ने कई कार्यकताओं हिरासत में ले लिया।

आपको बता दें कि भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर हुई जातीय हिंसा मामले में जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है। शिकायतकर्ताओं अक्षय बिक्कड़ और आनंद धोंड ने आरोप लगाया है कि जिग्नेश मेवानी और उमर खालिद ने कार्यक्रम के दौरान भड़काऊ भाषण दिया था जिसके चलते दो समुदायों में हिंसा हुई। हालांकि मेवाणी ने मंगलवार को ट्वीट कर लोगों से शांति और राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने की अपील की थी।

मेवाणी और खालिद ने यहां ‘एल्गार परिषद’ में हिस्सा लिया था। इस कार्यक्रम का आयोजन शहर के वाडा में गत 31 दिसंबर को भीमा-कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर किया गया था। इस कार्यक्रम में जिग्नेश, उमर के अलावा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर, हैदराबाद यूनिवर्सिटी में खुदकुशी करने वाले दलित छात्र रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला भी शामिल हुईं थीं।

मुंबई में उग्र प्रदर्शन

आपको बता दें कि पुणे में 1 जनवरी को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर हुई हिंसा की आग मंगलवार को राज्य के कई हिस्सों में फैल गई। हिंसा के विरोध में मंगलवार को मुंबई, नासिक, पुणे, ठाणे, अहमदनगर, औरंगाबाद और सोलापुर सहित राज्य के एक दर्जन से अधिक शहरों में दलित संगठनों द्वारा जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की गई।इसके बाद भारिप बहुजन महासंघ नेता और बाबा सहेब भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर बुधवार को महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया था।

इसका 250 दलित संगठनों ने समर्थन किया था। महराष्‍ट्र बंद के ऐलान के बाद एक बार फिर बुधवार को कई जगहों पर हिंसक झड़प हुई जिसके बाद पूरे महाराष्‍ट्र में तनाव की स्‍थिति बनी रही। इस दौरान मुंबई, नासिक,नागपुर, पुणो सहित कई शहरों में छिटपुट हिंसा की घटनाएं हुई। इस प्रदर्शन के कारण मुंबई के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

सोमवार को हुई हिंसा के विरोध में बुधवार को बुलाई गई बंद के दौरान और इससे पहले मंगलवार को हुई तोड़फोड़ पर राज्य सरकार ने सख्त रुख अख्तियार किया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बुधवार को दो टूक कहा कि हिंसा की घटनाओं के मामले में कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ने इस मामले में 150 लोगों को गिरफ्तार किया है, जबकि 16 पर एफआईआर दर्ज की गई है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, हिंसा की शुरुआत पुणे के कोरेगांव-भीमा से सोमवार (1 जनवरी) को तब शुरू हुई, जब कुछ दलित संगठनों ने 1 जनवरी 1818 में यहां पर ब्रिटिश सेना और पेशवा के बीच हुए युद्ध की 200वीं वर्षगांठ मनाने जुटे थे। भीमा-कोरेगांव में लड़ाई की 200वीं सालगिरह को शौर्य दिवस के रूप में मनाया गया, जिसमें बड़ी तादाद में दलित इकट्ठा हुए थे। इस दौरान कुछ लोगों ने भीमा-कोरेगांव विजय स्तंभ की तरफ जाने वाले लोगों की गाड़ियों पर हमला बोल दिया।

इसके बाद हिंसा भड़क गई जिसमें कथित तौर पर एक युवक की मौत हो गई। हालांकि गृह राज्य मंत्री (ग्रामीण) दीपक केसरकर ने बुधवार को कहा कि दलित समाज से किसी की जान नहीं गई है। दरअसल कोरेगांव भीमा में 1 जनवरी 1818 को पेशवा बाजीराव पर ब्रिटिश सैनिकों की जीत की 200वीं सालगिरह मनाई जा रही थी। इतिहासकारों के मुताबिक 1 जनवरी 1818 को भीमा-कोरेगांव में अंग्रेजों की सेना ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की 28,000 सैनिकों को हराया था।

दलित नेता इस ब्रिटिश जीत का जश्न मनाते हैं। दलित नेता ब्रिटिश फौज की इस जीत का जश्न इसलिए मनाते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जीतने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़ी टुकड़ी में ज्यादातर महार समुदाय के लोग थे, जिन्हें अछूत माना जाता था। इसे कोरेगांव की लड़ाई भी कहा जाता है। दलित समुदाय इस युद्ध को ब्रह्माणवादी सत्ता के खिलाफ जंग मानता है। एक जनवरी को पुणे में कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने इस ‘ब्रिटिश जीत’ का जश्न मनाए जाने का विरोध किया था। जिसके बाद यह समारोह हिंसा में तब्दील हो गई।

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