दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा को देश के प्रति उनकी सेवा के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
इस संबंध में एक जनहित याचिका (पीआईएल) कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष आई और इसमें न्यायमूर्ति नवीन चावला भी शामिल थे। हालांकि, पीठ ने यह कहते हुए कि इस मामले में अदालत का हस्तक्षेप नहीं है, याचिका को खारिज कर दिया।
अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से इसे वापस लेने को कहा नहीं तो उन्हें इसके लिए परिणाम भुगतना पड़ सकता है। पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर वह चाहे तो सरकार से संपर्क कर सकते हैं। पीठ ने कहा, क्या यह हमें तय करना है कि भारत रत्न किसे दिया जाना चाहिए? पीठ ने आगे कहा कि या तो आप इस याचिका को वापस ले लें, नहीं तो फिर अदालत की ओर से उन्हें इसकी कीमत (जुर्माना या दंड) चुकानी पड़ेगी।
टाटा और उनकी कंपनी के परोपकारी कार्यों पर प्रकाश डालते हुए याचिकाकर्ता राकेश ने अपनी याचिका में कहा है, रतन टाटा एक महान व्यवसायी हैं और उनके नेतृत्व में, व्यवसाय वैश्विक विस्तार पर केंद्रित रहा है। 2012 में टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद रतन टाटा व्यक्तिगत क्षमता में स्टार्टअप्स में निवेश करने और युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने में सक्रिय रहे हैं।
इसने यह भी कहा कि मार्च 2020 में, रतन टाटा ने कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए टाटा ट्रस्ट से 500 करोड़ रुपये का वादा किया था। राकेश ने अपनी याचिका में खुद को एक सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा किया है।
वित्त वर्ष 2020 में टाटा समूह की 30 कंपनियों का राजस्व 106 अरब डॉलर था। याचिका में कहा गया है, 10 समूहों में फैली 30 कंपनियां 100 से अधिक कंपनियों में काम करती हैं और सामूहिक रूप से 7.5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देती हैं। (इंपुट: IANS के साथ)
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