स्वीडिश नागरिक नीलाक्षी एलिजाबेथ जोरेंडल जब 41 साल बाद अपनी मां से मिली हैं। भारत में जन्म लेने वाली एलिजाबेथ जब अपनी मां से मिलीं तो सभी भावुक हो गए। 44 वर्षीय नीलाक्षी को 3 साल की उम्र में उसे एक स्विडिश दंपती ने गोद ले लिया था, जिनके साथ वो स्विडन चली गई थी।दरअसल, 44 वर्षीय भारत में जन्मीं नीलाक्षी जब तीन साल की थीं, तो उनको स्वीडन की एक दंपती ने गोद ले लिया था। महाराष्ट्र के यवतमाल में रहने वाली महिला ने गरीबी की वजह से अपनी बेटी नीलाक्षी को स्वीडन की दंपत्ति को गोद दे दिया था। नीलाक्षी उस दौरान महज तीन साल की थी।
लेकिन इतने दिनों के बाद बाद जब नीलाक्षी को अपनी जैविक मां से मिलने की इच्छा हुई तो उन्होंने मां का पता पुणे स्थित एक एनजीओ ‘अगेंस्ट चाइल्ड ट्रैफिक’ की अंजलि पवार की मदद से लगाया। पवार ने बताया कि, ‘शनिवार को यवतमाल के सरकारी अस्पताल में मां-बेटी का भावुक मिलन था। मां-बेटी दोनों की आंखों में आंसू आ गए।’
अंजलि ने बताया कि नीलाक्षी अपने जैविक माता-पिता को खोजने के मिशन पर थीं। इससे पहले थोड़े समय के लिए वह अपनी मां से मिली थीं। रिपोर्ट के मुताबिक, नीलाक्षी के जैविक पिता एक कृषि मजदूर थे, जिन्होंने 1973 में आत्महत्या कर ली थी।
वह पुणे के करीब केडगांव में पंडित रामाबाई मुक्ति मिशन के आश्रय एवं दत्तक गृह में उसी साल पैदा हुई थीं, जब उनके पिता ने आत्महत्या की थी। नीलाक्षी की मां ने उनको वहां छोड़ दिया था और बाद में दोबारा शादी कर ली थी। उनकी मां को दूसरी शादी से एक बेटा और एक बेटी है। शनिवार को वे लोग भी अस्पताल में मौजूद थे।
पवार ने बताया कि, नीलाक्षी 1990 से अपनी जैविक मां की तलाश में भारत आ रही थी। अपनी मां मिलने के लिए नीलाक्षी ने छह बार भारत का दौरा किया। पवार ने बताया कि मां और बेटी दोनों थैलसीमीया से पीड़ित हैं। शनिवार को मुलाकात के दौरान नीलाक्षी ने अपनी जैविक मां के परिजनों को उनको इलाज में पूरा सहयोग करने का आश्वासन दिया।
अंजलि ने बताया कि शनिवार को यवतमाल के सरकारी अस्पताल में मां-बेटी का भावुक मिलन हुआ। मां-बेटी दोनों की आंखों में आंसू थे, इस अनूठे मिलने को देखकर सभी की आंखें नम हो गईं।