कांग्रेस ने गुरुवार को कहा कि वह संसद में तीन तलाक विधेयक का विरोध करेगी। कांग्रेस ने कहा कि विधेयक के कुछ प्रावधानों पर चर्चा की जरूरत है। वहीं, सरकार व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) भी इस विधेयक के खिलाफ है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 को मंजूरी दे दी। यह फरवरी में घोषित किए गए अध्यादेश का स्थान लेगा।
सरकार का कहना है कि यह विधेयक लैंगिक समानता व लैंगिक न्याय सुनिश्चित करेगा। यह शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण करेगा और ‘तलाक-ए-बिद्दत’ से तलाक को रोकेगा। वहीं, कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य और प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “तीन तलाक पर हमने कुछ बुनियादी मुद्दे उठाए हैं। सरकार कई बिंदुओं पर सहमत हुई है।”
उन्होंने कहा, “बहुत सारा समय बच सकता है अगर सरकार हमारे पहले के बिंदुओं पर सहमत हो गई होती।” सिंघवी ने कहा, “अभी भी एक या दो बिंदु बचे हैं..और उन बिंदुओं पर चर्चा की जरूरत है। हम इसका (विधेयक का) विरोध करेंगे।” सिंघवी की टिप्पणी सरकार द्वारा आगामी सत्र में संसद में तीन तलाक के खिलाफ एक विधेयक के पेश किए जाने की घोषणा के बाद आई है, जिसमें तीन तलाक देने वाले को तीन साल की सजा का प्रावधान है।
JDU भी नहीं देगी मोदी सरकार का साथ
कांग्रेस के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (युनाइटेड) ने भी गुरुवार को कहा कि वह तीन तलाक के मुद्दे पर राज्यसभा में भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार का समर्थन नहीं करेगी। जद (यू) के वरिष्ठ नेता और बिहार के मंत्री श्याम रजक ने कहा, “जद (यू) इसके खिलाफ है और हम इसके खिलाफ लगातार खड़े रहेंगे।”
जद (यू) नेता ने कहा कि तीन तलाक एक सामाजिक मुद्दा है और इसे सामाजिक स्तर पर समाज के द्वारा सुलझाया जाना चाहिए। रजक ने कहा कि जद (यू) ने राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक के खिलाफ वोट दिया था। इसके पहले नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर तीन तलाक विधेयक का विरोध किया था।
नीतीश ने सप्ताह के प्रारंभ में अपना रुख दोहराते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 को हटाने, समान नागरिक संहिता लागू करने और अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कराने के मामले या तो संवाद के जरिए सुलझाए जाएं या अदालत के आदेश के जरिए।
नीतीश ने कहा, “यह हमारा विचार है कि अनुच्छेद 370 समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। इसी तरह समान नागरिक संहिता किसी के ऊपर नहीं थोपी जानी चाहिए और अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा या तो संवाद के जरिए सुलझाया जाए या अदालत के आदेश के जरिए।” (इनपुट- आईएएनएस के साथ)