भीमा-कोरेगांव मामला: CJI रंजन गोगोई ने गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को किया अलग

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प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में सोशल ऐक्टिविस्ट गौतम नवलखा के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार करने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने की याचिका पर सुनवाई खुद को अलग कर लिया।

फाइल फोटो: रंजन गोगोई

चीफ जस्टिस ने कहा, ‘मामले को उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें, जिसमें मैं शामिल न रहूं।’ इस मामले को चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ के समक्ष पेश किया गया था। महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में कैविएट दायर कर अनुरोध किया कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले उसकी बात सुनी जाए।

दरअसल, 13 सितंबर को हाई कोर्ट ने 2017 में कोरेगांव-भीमा हिंसा और कथित माओवादी संपर्कों के लिए नवलखा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था, ‘मामले की गंभीरता को देखते हुए हमें लगता है कि विस्तृत जांच की जरूरत है।’

पुणे पुलिस ने 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के बाद जनवरी 2018 में नवलखा और अन्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। एल्गार परिषद आयोजित करने के एक दिन बाद पुणे जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़क गई थी।

पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि इस मामले में नवलखा और अन्य आरोपियों के माओवादियों से संबंध हैं और वे सरकार को गिराने का काम कर रहे हैं। हालांकि, उच्च न्यायालय ने नवलखा की गिरफ्तारी पर संरक्षण तीन सप्ताह की अवधि के लिए बढ़ा दिया था ताकि वह उसके फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकें।

नवलखा और अन्य आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधियां निवारण कानून (यूएपीए) और आईपीसी के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया। नवलखा के अलावा वरवरा राव, अरुण फरेरा, वर्नोन गोन्साल्विस और सुधा भारद्वाज मामले में अन्य आरोपी हैं। (इंपुट: भाषा के साथ)

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