देश की आर्थिक विकास दर (जीडीपी) से जुड़ी एक रिपोर्ट ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की फजीहत कराकर रख दी है। दरअसल देश के आर्थिक विकास से जुड़ी एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि मनमोहन सिंह की अगुवाई वाई यूपीए सरकार में जीडीपी यानी आर्थिक वृद्धि की औसत दर वर्तमान नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार से ज्यादा थी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस रिपोर्ट को मोदी सरकार से जुड़े एक पैनल द्वारा ही तैयार किया गया था।
न्यूज 18 के मुताबिक, इस रिपोर्ट को केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था, जिसके बाद सरकार ने फजीहत से बचने के लिए मंत्रालय की वेबसाइट से इस रिपोर्ट को हटा दिया गया है। यह बैक सीरीज जीडीपी ग्रोथ रिपोर्ट बीती 25 जुलाई को मंत्रालय की वेबसाइट पर पब्लिश की गई थी। वेबसाइट पर आने के कुछ ही समय बाद यह रिपोर्ट मीडिया में आ गई।
क्या था रिपोर्ट में?
दरअसल, वास्तविक क्षेत्र के आंकड़ों के विषय में गठित समिति द्वारा जीडीपी आकलन के नए आधार के अनुसार तैयार पिछले वर्षों की जीडीपी श्रृंखला पर एक ताजा रिपोर्ट यह दर्शाती है कि पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौर में आर्थिक वृद्धि दर मौजूदा सरकार की तुलना में बेहतर थी। इस रिपोर्ट के अनुसार 2006-07 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 10.08 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। यह 1991 में आर्थिक उदारीकरण शुरू होने के बाद की उच्चतम वृद्धि दर है।
Truth has triumphed. The back series calculation of GDP has proved that the best years of economic growth were the UPA years 2004-2014.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 18, 2018
इस रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस के नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि संप्रग सरकार ने किसी एक दशक में अर्थव्यवस्था को सबसे तीव्र वृद्धि के स्तर पर पहुंचाया था और 14 करोड़ लोगों को गरीबी के स्तर से ऊपर उठाया था। उन्होंने ट्विटर पर कहा, ‘‘सत्य की जीत हुई है। जीडीपी की पिछली श्रृंखला की गणना ने साबित किया है कि आर्थिक वृद्धि की दृष्टि से संप्रग का 2004-14 का कार्यकाल सर्वोत्तम था।’’
सरकार ने दी सफाई
विवाद बढ़ता देख सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि जीडीपी की वर्तमान श्रृंखला की पीछे की कड़ियों को बनाने संबंधी इस रिपोर्ट में प्रस्तुत अनुमान कोई ‘आधिकारिक अनुमान’ नहीं हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) ने भी कहा है कि जीडीपी की नयी श्रृंखला की पिछली कड़ियों को ढालने का ‘‘काम चल रहा है’’ और अभी इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया है। वास्तविक क्षेत्र के आंकड़ों पर समिति के अध्यक्ष सुदीप्तो मुंडले एनएससी के कार्यवाहक चेयरमैन और चौदहवें वित्त आयोग के सदस्य रह चुके हैं।
इस समिति का गठन पिछले साल अप्रैल में किया गया था ताकि वास्तविक क्षेत्र के आंकड़ों के आधार को आधुनिक बनाया जा सके। जीडीपी की नयी श्रृंखला की गणना के लिए वर्ष 2011-12 को आधार वर्ष बनाया गया है जबकि पुरानी श्रृंखला का आधार 2004-05 था। मंत्रालाय ने कहा है कि समिति ने आंकड़ों की समस्या से निपटने के लिए तीन तरीके अपनाए। पिछली कड़िया तैयार करने के लिए तीन संभावित तरीकों पर विचार किया गया।‘‘
रिपोर्ट के अनुमान आधिकारिक अनुमान नहीं है। ये अनुमान केवल इसलिए है ताकि इनके आधार पर पीछे की कड़ियां तैयार करने के लिए किसी एक तरीके को तय किया जा सके।’’ मंत्रालय ने कहा है कि एनएससी की इस समिति की सिफारिशों की वह और अन्य विशेषज्ञ समीक्षा करेंगे ताकि प्रत्येक क्षेत्र के उत्पाद के अनुमानों की पिछली कड़ियों को तैयार करने के लिए कोई उपयुक्त तरीका तय किया जा सके। बयान में मंत्रालय का यह भी कहना है राष्ट्रीय लेखा-जोखा के आंकड़ों पर सलाह देने वाली समिति पीछे की कड़ियों के अनुमानों को तय करने से पहले उन पर विचार करेगी ताकि ये कड़ियों की निरंतरता, निश्चितता और विश्वसनीयता बनी रहे।
मंत्रालय ने कहा है कि इस तरह के आंकड़े तैयार करने की प्रक्रिया खुली, पारदर्शी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रही सर्वोत्तम पद्धतियों और मानकों के अनुरूप होती हैं। मंत्रालय ने कहा है कि इस काम में नमूने या प्रतिदर्श का आधार बड़ा से बड़ा रखने का प्रयास है और विभिन्न एजेंसियों से प्राप्त ‘हाई फ्रिक्वेंसी डाटा’ का प्रयोग किया गया है। राष्ट्रीय लेखा जोखा के आंकड़ों की पिछली श्रृंखला के बारे में अपने स्पष्टीकरण में सरकार इन विषयों के समुचित संदर्भ भी प्रस्तुत करेगी ताकि इन अनुमानों का उपयोग करने वालों और सामान्य जन को इन अनुमानों के निर्धारण और आधार वर्ष के संशोधन में अपनायी गयी प्रक्रिया का पता हो।