घूस पर घमासान: केंद्र के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे आलोक वर्मा ने CBI के कामकाज में सरकार के हस्तक्षेप की ओर किया इशारा

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इस समय देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) खुद सवालों के घेरे में आ गई है। सीबीआई के दो सीनियर अधिकारी एक दूसरे के ऊपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। सीबीआई में आतंरिक कलह के मद्देनजर मोदी सरकार ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया है। वहीं संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को तत्काल प्रभाव से अंतरिम निदेशक नियुक्त कर दिया है। ओडिशा कैडर के 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी राव ने मंगलवार रात ही पदभार संभाल लिया।

इस बीच केंद्र के इस कदम के खिलाफ सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा बुधवार (24 अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट को वर्मा की अर्जी पर सुनवाई करने पर सहमत हो गया है। यह सुनवाई 26 अक्टूबर को होगी। वर्मा ने खुद को छुट्टी पर भेजे जाने और सारे अधिकार वापस ले लिए जाने के केंद्र के फैसले को चुनौती दी है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ वर्मा की दलीलों से सहमत हुई और कहा कि याचिका पर 26 अक्टूबर को सुनवाई की जाएगी।

सीबीआई प्रमुख वर्मा ने संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को जांच एजेंसी का प्रभारी निदेशक नियुक्त किए जाने के फैसले को भी चुनौती दी है। वर्मा के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष यह मामला रखा। शंकरनाराणन ने पीठ को बताया कि केंद्र ने वर्मा और सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को अवकाश पर भेजने का आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि यदि वर्मा अवकाश पर गए तो कई मामलों की जांच प्रभावित होगी।

वर्मा ने उठाए सरकार के फैसले पर उठाए गंभीर सवाल

NDTV के मुताबिक, सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में इशारा किया है कि सरकार ने सीबीआई के कामकाज में हस्तक्षेप करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि 23 अक्टूबर को रातोंरात रेपिड फायर के तौर पर CVC और DoPT ने तीन आदेश जारी किए। यह फैसले मनमाने और गैरकानूनी हैं, इन्हें रद्द किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट के मुताबिक वर्मा ने कहा कि सीबीआई से उम्मीद की जाती है कि वह एक स्वतंत्र और स्वायत्त एजेंसी के तौर पर काम करेगी। ऐसे हालात को टाल नहीं जा सकता, जब उच्च पदों पर बैठे लोगों से संबंधित जांच की दिशा सरकार की मर्जी के मुताबिक न हो। उन्होंने कहा कि हालिया दिनों में ऐसे केस आए जिनमें जांच अधिकारी से लेकर ज्वाइंट डायरेक्टर/डायरेक्टर तक किसी खास एक्शन तक सहमत थे, लेकिन सिर्फ स्पेशल डायरेक्टर की राय अलग थी।

वर्मा ने कहा कि सीवीसी, केंद्र ने रातोंरात मुझे सीबीआई डायरेक्टर के रोल से हटाने का फैसला लिया और नए शख्स की नियुक्ति का फैसला ले लिया, जो कि गैरकानूनी है। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम DSPE एक्ट के सेक्शन 4-b के खिलाफ है, जो सीबीआई डायरेक्टर की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए दो साल का वक्त निर्धारित करता है। DSPE एक्ट के सेक्शन 4 A के मुताबिक सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और CJI की कमेटी करेगी।

एनडीटीवी के मुताबिक, उन्होंने आगे कहा कि सेक्शन 4b(2) में सीबीआई डायरेक्टर के ट्रांसफर के लिए इस कमेटी की मंजूरी ज़रूरी है। सरकार का आदेश इसका उल्लंघन करता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी सीबीआई को सरकार के प्रभाव से मुक्त करने की बात कर चुका है। सरकार के इस कदम से साफ है कि सीबीआई को DOPT से स्वतंत्र करने की ज़रूरत है। मुझे संस्थान (CBI) के अधिकारियों पर पूरा भरोसा है, और इस तरह का गैरकानूनी दखल अधिकारियों के मनोबल को गिराता है।

सरकार ने बताया ‘विचित्र और दुर्भाग्यपूर्ण’

सरकार ने आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने के साथ ही केंद्रीय सतर्कता आयोग की निगरानी में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) से पूरे मामले की जांच कराने का फैसला लिया है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बुधवार को देश में जांच प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा गया और दोनों पर लगे आरोपों की जांच कराने का फैसला लिया गया है।

उन्होंने कहा कि इस मामले में कौन दोषी है और कौन नहीं, यह अभी नहीं कहा जा सकता है। सीबीआई इस मामले की जांच नहीं कर सकती है इसलिए केंद्रीय सतर्कता आयोग की निगरानी में एसआईटी से पूरे मामले की जांच कराई जाएगी। समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक वित्त मंत्री ने कहा कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को हटाने का निर्णय सरकार ने सीवीसी की सिफारिशों के आधार पर लिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कहा कि एजेंसी की संस्थागत ईमानदारी और विश्वसनीयता को कायम रखने के लिए यह अत्यंत आवश्यक था।

जेटली ने बताया कि केंद्रीय सर्तकता आयोग (सीवीसी) ने ये सिफारिश बीती शाम को की थी। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि देश की अग्रणी जांच एजेंसी के दो शीर्ष अधिकारियों के आरोप-प्रत्यारोप के कारण बहुत ही विचित्र तथा दुर्भाग्यपूर्ण हालात बने हैं। उन्होंने कहा कि आरोपों की जांच विशेष जांच दल करेगा और अंतरिम उपाय के तौर पर दोनों को अवकाश पर रखा जाएगा। मंत्री ने कहा कि यह हालात सामान्य नहीं हैं और आरोपियों को उनके ही खिलाफ की जा रही जांच का प्रभारी नहीं होने दिया जा सकता।

उन्होंने कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के उन आरोपों को भी खारिज किया जिसमें कहा गया कि वर्मा को इसलिए हटाया गया क्योंकि वह राफेल लड़ाकू विमान सौदे की जांच करना चाहते थे। जेटली ने कहा कि इन आरोपों को देखते हुए लगता है कि उन्हें (विपक्षी दलों को) यह भी पता चल रहा था कि संबंधित अधिकारी के दिमाग में क्या चल रहा है। इससे उस व्यक्ति की ईमानदारी पर अपनेआप ही सवाल खड़े होते हैं, जिसका कि वे समर्थन करने की कोशिश कर रहे हैं।

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