पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को बड़ा झटका देते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार को राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा से जुड़े सभी मामलों को केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया। हाई कोर्ट ने कहा है कि राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा का केस केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपा जाएगा।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति आईपी मुखर्जी, न्यायमूर्ति हरीश टंडन, न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति सुब्रत तालुकदार की पांच सदस्यीय पीठ ने 3 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
लाइव लॉ के अनुसार, पश्चिम बंगाल सरकार को पीड़ितों के मुआवजे के लिए आवेदनों पर तुरंत कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है। सीबीआई और एसआईटी को छह सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। कोलकाता के पुलिस कमिश्नर सोमेन मित्रा और अन्य को SIT का सदस्य बनाया गया है।
बता दें कि, 3 मई को विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित होने के बाद राज्य में हिंसा भड़क उठी थी, राज्य के कई शहरों में चुनाव के बाद हिंसा की घटनाएं हुईं थी। यह आरोप लगाया गया कि भारी जनादेश के साथ जीतने वाली टीएमसी ने आंखें मूंद लीं, जब उसके समर्थक प्रतिद्वंद्वी बीजेपी कार्यकर्ताओं से भिड़ गए और कथित तौर पर हिंसा में लिप्त हैं।
हालांकि, बंगाल सरकार ने आरोपों को “बेतुका, निराधार और झूठा” करार दिया और कहा कि NHRC द्वारा समिति का गठन “सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ पूर्वाग्रह से भरा” था। बता दें कि, हिंसा के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक टीम ने बंगाल का दौरा किया था।
बंगाल सरकार ने NHRC कमेटी में भाजपा के एक सदस्य की मौजूदगी पर आपत्ति जताई थी। आउटलुक की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि आतिफ रशीद, जो वर्तमान में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष हैं, वह पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से है। वह भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी से भी जुड़े थे। NHRC की एक अन्य सदस्य, राजुलबेन देसाई, गुजरात भाजपा की महिला मोर्चा (महिला शाखा) में भी एक पदाधिकारी थीं।