चुनाव आयोग ने आचार संहिता को तोड़ने वाले के खिलाफ सख्त कारवाई का आश्वासन दिया था जिसका उन्होंने बखूबी पालन भी करके दिखाया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार को कथित तौर पर बढ़ावा देने वाली टिप्पणी पर चुनाव आयोग ने कड़ा रूख अपनाते हुए FIR दर्ज कराने का हुक्म सुना दिया।
यहां चुनाव आयोग ने बता दिया कि वो किसी से डरता या दबता नहीं है। भले की नियमों की अनदेखी करने वाला कोई मुख्यमंत्री ही क्यों ना हो? यहां पर हम चुनाव आयोग पर गर्व कर सकते है कि भले ही वो ये साबित ना कर पाए कि कथित टिप्पणी किस प्रकार से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगी लेकिन कारवाई पर अमल का फैसला तुरन्त लेकर दिखाया गया।
इसके बाद अब चुनाव आयोग की तुरन्त कारवाई को दूसरी तरह से भी देख ले। उत्तर प्रदेश में थाना सभा के शामली इलाके में बीजेपी विधायक सुरेश राणा ने खुलेआम चुनाव आयोग की धज्जियां उड़ा दी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले कि धार्मिक आधार पर किसी तरह बयानबाजी या उन्माद न फैलाया जाए के आदेश को तांक पर रख दिया।
बीजेपी विधायक सुरेश राणा ने कथित तौर पर कहा कि अगर वो जीतते है तो मुस्लिम बाहुल्य वाले क्षेत्रों में कर्फ्यू लगवा देगें। वो तो पहले ही इतना संगीन अपराध किए जाने की घोषणा कर रहे है। वह कई शहरों का नाम लेते है जहां वो कर्फ्यू लगवा सकते है?
खुलेआम चुनावों में इस तरह की चेतावनी देने वाले पर पुलिस कोई कारवाई नहीं कर रही? चुनाव आयोग को सांप सूंघ गया? न्यायालय को खबर तक नहीं? ये कैसा दो चेहरों वाला सिस्टम है? आपको बता दे कि बीजेपी विधायक सुरेश राणा का नाम कथित तौर पर मुज़्ज़फरनगर दंगों में उल्लेखित रहा है। अगर वो कह रहे तो इसमें पुलिस एक्शन क्यों नहीं ले रही। चुनाव आयोग आचार संहिता लागू होने के बाद भी चुप क्यों है?
अरविंद केजरीवाल एक आसान टारगेट हो सकता था शायद इसलिए चुनाव अयोग उन पर FIR दर्ज कराने का आदेश जारी कर देता हैं और बीजेपी विधायक सुरेश राणा एक टेढ़ी खीर साबित हो इसलिए चुनाव आयोग ने चुप रहने में ही भलाई समझता हो? ऐसे चुनाव आयोग के दोतरफा चेहरे के लिए बधाई। तब तक जारी करते रहे FIR के आदेश।