आपसी गठबंधन को फिलहाल ‘होल्ड’ पर रखने के बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के ऐलान के तुरंत बाद ही समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी मंगलवार को अपनी राहें अलग करने के संकेत दे दिए। अखिलेश ने आजमगढ़ में कहा ‘वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनेगी। यही हमारी रणनीति है। हम उप्र को विकास की नयी ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।’
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गाजीपुर में मीडिया से बात करते हुए कहा कि ‘अगर गठबंधन टूटा है और जो बातें कही गयी हैं … मैं उन पर बहुत सोच समझकर विचार करूंगा। जब उपचुनाव में गठबंधन है ही नहीं, तो सपा भी 11 सीटों पर राय मशविरा करके अकेले चुनाव लड़ेगी। अगर रास्ते अलग-अलग हैं तो उसका भी स्वागत है।’
अखिलेश का यह बयान बसपा प्रमुख मायावती द्वारा सपा के साथ गठबंधन को फिलहाल रोकने के निर्णय के मद्देनजर खासे मायने रखता है। गौरतलब है कि मायावती ने सोमवार (3 जून) को नई दिल्ली में लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर हुई समीक्षा बैठक में उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों के लिये होने वाले उपचुनाव अपने दम पर लड़ने का निर्णय लिया था। उसके बाद सपा-बसपा गठबंधन टूटने की अटकलें तेज हो गयी थीं।
गठबंधन टूटने पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा- पार्टी सोच-समझकर इस पर फैसला करेगी
गठबंधन टूटने पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा- पार्टी सोच-समझकर इस पर फैसला करेगी
Posted by ABP News on Tuesday, June 4, 2019
इसी बीच, मायावती ने मंगलवार (4 जून) को स्थिति स्पष्ट करते हुए संवाददाताओं से कहा कि लोकसभा चुनाव में सपा का ‘आधार वोट’ यानी यादव समाज अपनी बहुलता वाली सीटों पर भी सपा के साथ पूरी मजबूती से टिका नहीं रह सका। उसने भीतरघात किया और यादव बहुल सीटों पर सपा के मजबूत उम्मीदवारों को भी हरा दिया।
उन्होंने कहा कि खासकर कन्नौज में डिम्पल यादव, बदायूं में धर्मेन्द्र यादव और फिरोजाबाद में अक्षय यादव का हार जाना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है। सपा में लोगों में काफी सुधार लाने की जरूरत है। बसपा कैडर की तरह किसी भी स्थिति के लिये तैयार होने के साथ-साथ भाजपा की नीतियों से देश और समाज को मुक्ति दिलाने के लिये संघर्ष करने की सख्त जरूरत है, जिसका मौका सपा ने इस चुनाव में गंवा दिया।
मायावती ने कहा कि अगर उन्हें लगेगा कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने सियासी कार्य करने के साथ-साथ अपने लोगों को ‘मिशनरी’ बनाने में कामयाब हुए तो हम लोग जरूर आगे भी मिलकर साथ चलेंगे। अगर वह इसमें सफल नहीं हुए तो हम लोगों का अकेले चलना ही बेहतर होगा। चूंकि प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव कभी भी हो सकते हैं, इसलिये हमने अकेले ही ये चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
बता दें कि, सपा-बसपा-रालोद ने मिलकर पिछला लोकसभा चुनाव लड़ा था, मगर यह गठबंधन ज्यादा कामयाब नहीं हो पाया। इसमें बसपा को 10 और सपा को पांच सीटें ही मिल सकी थीं। इस गठबंधन से सपा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। (इंपुट: भाषा के साथ)