मोहाली टेस्ट : बहुत कठिन है डगर पनघट की!

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मोहाली में दक्षिण अफ्रीका के साथ गुरुवार से आरंभ होने जा रहे चार मैचों की टेस्ट सिरीज की पूर्व संध्या पर यही सवाल फिजाओं में तैर रहा है कि क्या यहां की उछाल लेती पिच का मूल चरित्र बदल चुका है और अपने जमाने के तेज-तर्रार विकेटकीपर/बल्लेबाज दलजीत सिंह, जो अब बीसीसीआई के प्रधान क्यूरेटर हैं, ने क्या भारतीय टीम प्रबंधन के दबाव में स्पिन मूलक पिच तैयार की है?

साथ ही यह भी कि ऐसी पिच पर जहां तेजी का परंपरागत बोलबाला रहा हो वहां हम क्या भारतीय एकादश में तीन स्पिन गेंदबाजों को खेलते देखेंगे?

इसका जवाब तो हमें चंद घंटे बाद मिल जाएगा, पर इसका क्या जवाब है कि यह पिच क्या शुरुआती दो घंटे मध्यम गति के गेंदबाजों के लिए साजगार नहीं रहेंगी? पहले टेस्ट मैच के झुकाव का संकेत बहुत कुछ पहला सत्र यदि दे दे तो चौंकिएगा नहीं!

अपने जन्मदिन पर टॉस के लिए उतरने जा रहे कप्तान विराट कोहली के सम्मुख सबसे बड़ी दुविधा यही होगी कि सिक्का सही गिरने पर वह क्या करें?

और कोई सेंटर होता तब मैं यही कहता कि आंख मूंद कर पहले बल्लेबाजी। मगर डेल स्टेन, मोर्ने मोर्केल, वेर्नोन फिलैंडर और कैगिसो रबाडा के तेज आक्रमण के सम्मुख अनुभवहीन और हिली हुई बल्लेबाजी देखते हुए मेजबान कप्तान चाहेगा कि टॉस मेहमान कप्तान हाशिम अमला ही जीतें।

पुराना अनुभव बताता है कि कई बार टीमों का दो घंटों में ही यहां बाजा बजता रहा है। ठीक है कि मेहमानों का स्पिन विभाग उतना मजबूत नहीं है परंतु उनके पास जो तेज आक्रमण है उसमें विविधता है। स्टेन और मोर्केल की तेजी तथा फिलैंडर की स्विंग का भारतीय बल्लेबाजी पंक्ति किस कदर जवाब देती है, यह देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा। हम यह न भूलें कि हमारा पाला श्रीलंका से नहीं है, जिसको हालिया सिरीज में हमने पिछड़ने के बावजूद पस्त करने में कामयाबी हासिल की थी।

यह अफ्रीकी टीम आईसीसी टूर्नामेंटों में भले ही चोकर साबित होती रही हो परंतु जहां तक खेल के इस पांच दिनी संस्करण का सवाल है तो यह टीम पिछले नौ वर्षो के दौरान परदेस में खेली टेस्ट श्रृंखलाओं में अपराजेय है, दुर्जेय है।

ए भाई, जिसके पास रन मशीन हाशिम अमला और किसी भी गेंदबाजी के चिथड़े उड़ाने में बेजोड़ अब्राहम डिविलियर्स के अलावा फॉफ डू प्लेसिस, क्विंटन डि कॉक, डेविड मिलर और जे. पी. ड्यूमिनी जैसे नामचीन बल्लेबाज हों। सिरीज में पार पाने के लिए जो हौसला और जज्बा अपरिहार्य माना जाता हो क्या वह भारतीय बल्लेबाजों के पास है?

यह भी फिलहाल भविष्य के गर्भ में जरूर है, मगर पहली नजर में तो यही लगता है कि भारतीयों की डगर बहुत कठिन है। बल्लेबाजी में ले देकर आप कोहली, अजिंक्य रहाणे और तकनीक के अलावा मनोदशा के मोर्चे पर अतीत में अपनी श्रेषठता पुजवा चुके चेतेश्वर पुजारा पर ही भरोसा कर सकते हैं।

कौन जाने कि अपने विकेट की कीमत से अभी भी अनजान रोहित शर्मा को टीम प्रबंधन पुजारा पर यहां वरीयता दे दे। यही बात उभरती प्रतिभा लोकेश राहुल के लिए भी कही जा सकती है, जिनको बैठना पड़ सकता है। मुरली विजय और इसी मैदान पर दो वर्ष पहले कंगारुओं के खिलाफ अपनी 187 की विस्फोटक पारी के बल पर सुर्खियों में आए शिखर धवन को ही बतौर ओपनर उतारा जाना तय लगता है। हालांकि धवन अभी तक अपनी उस यादगार पारी को दोहरा नहीं सके हैं, यह भी आपको मानना ही होगा।

उमेश यादव और वरुण एरॉन के पास दो राय नहीं बला की तेजी है पर गेंदों की लाइन और लेंग्थ पर ये दोनो संघर्षरत हैं। अपने भुवनेश्वर भैया ‘माया मिली न राम’ के शिकार लगते हैं। तेजी के चक्कर में स्विंग खो बैठे और बल्लेबाज स्पिनर की तरह लेते हुए आगे निकल कर उनकी गेंदों की मजे में भद्द-कुटाई करते नजर आए हैं।

ले देकर सहारा लय प्राप्त कर चुके आश्विन और गुगली के पंडित अमित मिश्रा पर ही होगा। पिछले रणजी मैचों में राजकोट के मनमाफिक विकेट पर सामने वाली टीमों को अपने झोली भर विकेटों के बल पर दो दो दिनों में ही निबटानें में सफल रविंद्र जडेजा की वापसी वाकई चौंकाने वाली रही। उनको बतौर स्पिन आलराउंडर जगह मिल सकती है। नहीं तो चयनकर्ता रोजर बिन्नी के ‘महान यशस्वी आल राउंडर’ चिरंजीव स्टुअर्ट बिन्नी हैं न।

चलते चलाते इस तथ्य को आपको स्वीकार करना ही होगा कि खेल के हर विभाग में मेहमान अफ्रीका इक्कीस हैं। मेजबानों के लिए जो सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है, वह हैं उनकी घरेलू परिस्थितियां। देखने वाली बात यही होगी कि कोहली एंड कंपनी इसका कितना अधिकतम दोहन करने में कामयाब हो पाती है?

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