कहीं चूक तो नहीं गए मुनव्वर साहब?

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इरशाद अली 

सरकारी सम्मान वापस करना सरकार के विरोध का एक तरीका है जब साहित्यकार और कलाकार इस दिशा में अग्रसर हो जाते है तब सरकारें अलर्ट हो जाती है कि वो गलत दिशा में जा रही है। मौजूदा दौर की सियासत इसी तरह की स्थिति से गुजर रही है।

देशभर में फैलती अहिंसा और अराजकता को देखते हुए देशभर के बड़े साहित्यकार अपना सम्मान सरकार को लौटाकर अपना विरोध दर्ज कर रहे है। इसी कड़ी में एक नया नाम मशहूर शायर मुनव्वर राणा का भी जुड़ गया है।

कल उन्होंने एक न्यूज चैनल के दफ्तर में मौजूद एक बहस में हिस्सा लेते हुए अपना साहित्य अकादमी का अवार्ड और धनरााशि लौटा दी थी। कुछ लोगों का मानना है कि जिस तरह से आजकल ये कलमकार अपने-अपने अवार्ड लौटा रहे है उसमें उनकी सरकार के प्रति विरोध के नज़रिये के बजाय राजनीति और लोकप्रियता की मंशा अधिक जाहिर हो रही है। इसी कड़ी में मुन्नवर राणा साहब भी आ गए है।

अवार्ड वापस करते हुए वो ना सिर्फ असमंजस में दिखते है बल्कि बल्कि दोराहे पर खड़े हुए भी नजर आते है, पत्रकार उनसे सवाल करती है आप सरकार के खिलाफ है तो वो मना कर देते है, आप मोदी के खिलाफ है तो वो मोदी को कहीं से भी कसूरवार नहीं ठहराते। तो फिर आप अवार्ड क्यों वापस कर रहे है।

साहित्य अकादमी का ये सम्मान लौटाने से पहले इसी हफ्ते मुनव्वर राणा ने जनता का रिर्पोटर से विशेष तौर पर बात करते हुए कहा था कि आज की “ये सरकारें इतनी बेगैरत हो गई है कि किसी भी हादसे का इनपर कोई असर नहीं पड़ने वालाद्” उन्होंने आगे कहा था कि आज के कलमकारों को इस बात से हारना नहीं चाहिए बल्कि इनसे मुकाबला करने की हिम्मत दिखाने की जरूरत है। इसलिये आज मुनव्वर राणा के अचानक से सम्मान लौटाने पर लोगों के बीच हैरानी बनी हुई कि आखिर क्यों उन्होंने ऐसा किया?

 

https://www.youtube.com/watch?v=JjWcmLFz6Gw&feature=youtu.be

 

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