मित्रो, मेरा देश बदला हो या न हो, मेरा पत्रकार जरूर बदल रहा है

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तो एक चैनल ने घोषित कर दिया है कि आगे से पाकिस्तन नहीं … “आतंकी देश पाकिस्तान” कहेंगे . गजब है . ये जज्बा 26-11 के वक्त नदारद था . लगता है सत्ता पर आसीन सरकार पर निर्भर करता है कि आपमे कितनी और कब देशभक्ति की भावना जागेगी . एक और दद्दा है हमारी बिरादरी के. कहते हैं कि पाकिस्तन को आतंकी देश घोषित करने की मुहिम मे न सिर्फ दस्तखत करेंगे बल्कि इसे मुहिम की तरह इसका प्रसार करेंगे . जे बात.

थरथरा उठेगा पापी पाकिस्तान. मार कसके ज़रा. अब जरा थोड़ा रिवाईँड(REWIND) करते हैं. मोदीजी के ऐतिहासिक भाषण से पहले. वहीं भाषण जिसमे उन्होने पाकिस्तान के साथ गरीबी भगाने के लिए ओलम्पिक खेलने की अपील की थी . हां हा , वही भाषण जिसमे उन्होने पाकिस्तानी जनता से “मन की बात” करने की सार्थक कोशिश की थी. कायल हो गया था मै उस भाषण का. सच्ची. GOD PROMISE की सौगंध. अब जरा गौर कीजिए उस वक्त टीवी पर चल रही बहस पर.

“पाकिस्तान पर चढ़ाई कर देंगे

हमला बोलो पाक के कब्जे वाले कश्मीर पर. पाकिस्तान की औकात नहीं कि हमपर परमाणु हमला कर सके.” और तो और महान बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने तो ये भी आश्वासन दे दिया कि कोई बात नहीं अगर पाकिस्तान अगर परमाणु हमला भी कर दे , तब भी ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 10 करोड़ भारतीय मारे जाएंगे . पाकिस्तान तो पूरा खलास हो जाएगा . वाकई कितनी राहत की सांस ली होगी आपने.

सिर्फ 10 करोड़ . देश की जनसंख्या के त्वरित समाधान की भी एक झलक थी हरफनमौला स्वामी जी के बयान मे. हां तो मै क्या कह रहा था? टीवी पर बक्शी नुमा विशेषज्ञ के आक्रोश और हाव भाव को देख कर तो लग रहा था कि बस अब निकला के तब निकला नथूनो से मिसाईल और हाफिज़ सईद का कचरा पेटी साफ. भारत माता की जय. ये सब था मोदीजी के उस ऐतिहासिक भाषण से पहले . मगर फिर क्या हुआ. अचानक तेवर बदल गए.

अब बात होने लगी पाकिस्तान को अलग थलग करने की. ये बात अलग है कि मीडिया मे खबर चलने के बाद के रूस अब पाकिस्तान युद्द अभ्यास के लिए नहीं जाएगा , न सिर्फ रूस गया, बल्कि 1947 के बाद पहली बार… और उरी हमलो के ठीक बाद भी गया. क्या ये भारत के लिए कूटनीतिक झटका नहीं था? मनमोहन सरकार के दौरान जरूर होता, ये मै दावे के साथ कह सकता हूं.

अब कोई पाकिस्तान मे चढाई की बात नहीं कर रहा था. अब पाकिस्तान को घेरने की बात हो रही थी. न्यूज चैनल्स मान चुके थे कि युद्द समाधान नहीं. हमले के अगले दिन एक खबर आई कि दस आतंकवादियो को सुरक्षा बलों ने मार गिराया. न किसी की लाश दिखी और न सेना ने आधिकारिक पुष्टी की. मगर मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी हो चुकी थी. फिर एक और खबर अवतरित हुई कि भारतीय स्पेशल फोर्सेस ने पाकिस्तान मे घुस कर 20 आतंकियो को मार दिया. एक बार फिर हवाबाज़ी.

इस बार सेना ने फिर मना किया . यानि के “इस बार जमकर प्रौपगैंडा करेंगे यार”. ये क्या हो रहा था. क्या ऐसी खबरों का प्रचार इत्तेफाक था, क्या कोई पतंगबाज़ी कर रहा था ? और बड़ा सवाल ये कि ये पतंगबाजी कौन कर रहा था ? ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार.

विदेश मंत्री का यूएन मे भाषण सुनने के बाद अंदाज़ा हुआ कि ये भाषण इतना असरदार क्यो था. न सिर्फ इसलिए क्योकि सुषमाजी एक काबिल मंत्री हैं बल्कि विश्वसनियता के पैमाने पर वो कितनी पुख्ता हैं . मगर बावजूद इसके, विपक्ष को हक है उनके भाषण की ओलोचना करने का. जहां कांग्रेस ने इसे नाकाफी बताया, आम आदमी पार्टी ने इसकी तारीफ की . अजीब तब लगा जब कुछ पत्रकारों ने विपक्ष को इस आलोचना के लिए आड़े हाथों लिया.

दो ही दिन पहले एक चैनल पर बहस ये चल रही थी कि क्या उरी मुद्दे पर सियासत होनी चाहिए? यहां तक कि कश्मीर मे बीजेपी की सहयोगी पीडीपी के सासंद के बुरहान वानी के महिमामंडन पर कांग्रेस के सवाल उठाए जाने को चिल्ला कर दबा दिया गया . मैने गौर किया कि देशभक्त पत्रकारों का भी बुरहान वानी पर खून, कुछ शर्तों के साथ खौलता है.

अब अगर विपक्ष बीजेपी के दोहरे मापदंड पर सवाल उठा रही है तो वो उरी पर सैनिको की शहादत की तौहीन कर रही है? यानि के राष्ट्रवाद, मगर शर्तो के साथ .
यानि के चाचा जो कहेंगे, मै वही करूंगा.

ये बात अलग है कि मई 2014 से पहले विपक्ष आतंकी घटना पर सियासत भी करती थी, वो लव लेटर न लिखने की नसीहत भी देती थी, वो पाकिस्तान मे घुस जाने की बात भी करती थी. मगर हमने सही नही समझा कि पुराने वादे याद दिलाये जाएं. खैर कोई बात नहीं, ये बात कोई भी समझ सकता है कि विपक्ष मे रहने और सत्ता का दायित्व निभाने मे फर्क है. मगर एक बात जरूर है ….

मित्रो, मेरा देश बदला हो या न हो ….मेरा पत्रकार जरूर बदल रहा है …..