गुजरात दंगे: सुप्रीम कोर्ट ने मोदी को SIT की क्लीन चिट के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई टाली

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सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को विशेष दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट देने को चुनौती देने वाली कांग्रेस के दिवंगत सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी की याचिका पर सुनवाई मंगलवार को दो हफ्तों के लिए स्थगित कर दी।

गुजरात दंगे

समाचार एजेंसी पीटीआई (भाषा) की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि मामले को दो हफ्ते बाद सूचीबद्ध किया जाएगा क्योंकि याचिकाकर्ता ने एक पत्र लिखकर मामले को स्थगित करने का आग्रह किया है। शीर्ष अदालत ने 16 मार्च को मामले को सुनवाई के लिए 13 अप्रैल को सूचीबद्ध किया था और कहा था कि वह सुनवाई स्थगित करने के लिए और आग्रहों को स्वीकार नहीं करेगा।

पीठ ने पिछले महीने जाफरी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के आग्रह का संज्ञान लिया था जिन्होंने कहा था कि इस मामले पर अप्रैल में सुनवाई होनी चाहिए, क्योंकि कई वकील मराठा आरक्षण मामले को लेकर व्यस्त हैं जिसकी सुनवाई तब पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ कर रही थी। गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई को स्थगित करने का विरोध किया था।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल फरवरी में मामले को सुनवाई के लिए 14 अप्रैल 2020 की तारीख मुकर्रर करते हुए था कि मामला कई स्थगित हो चुका है और इसे किसी दिन तो सुना जाएगा। इससे पहले, जकिया के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा था कि याचिका पर एक नोटिस जारी करने की जरूरत है क्योंकि यह 27 फरवरी 2002 से मई 2002 तक कथित ‘बड़े षडयंत्र’ से संबंधित हैं।

उल्लेखनीय है कि, गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगाए जाने में 59 लोगों के मारे जाने की घटना के ठीक एक दिन बाद 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में 68 लोग मारे गए थे। दंगों में मारे गए इन लोगों में एहसान जाफरी भी शामिल थे।

घटना के करीब 10 साल बाद आठ फरवरी, 2012 को एसआईटी ने मोदी तथा 63 अन्य को क्लीन चिट देते हुए ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की थी। मोदी अब देश के प्रधानमंत्री हैं। क्लोजर रिपोर्ट में कहा गया था कि जांच एजेंसी को आरोपियों के खिलाफ ‘‘अभियोग चलाने योग्य कोई सबूत नहीं मिले’’।

जकिया ने एसआईटी के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करने के गुजरात उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर, 2017 के आदेश को 2018 में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।

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