राफेल लड़ाकू विमानों की खेप भारत आने लगी है, लेकिन इन विमानों के सौदे को लेकर सवाल उठने अभी बंद नहीं हुए हैं। इस बीच, फ्रांस की समाचार वेबसाइट मीडिया पार्ट ने एक बार फिर से राफेल लड़ाकू विमान सौदे में भ्रष्टाचार की आशंकाओं के साथ कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। वेबसाइट ने दावा किया गया है कि राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है। रिपोर्ट में दावा किया है कि राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट को भारत में एक बिचौलिए को एक मिलियन यूरो ‘बतौर गिफ्ट’ देने पड़े थे। फ्रांसीसी मीडिया के इस खुलासे के बाद एक बार फिर दोनों देशों में राफेल की डील को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं।
दरअसल, फ्रांस की समाचार वेबसाइट मीडिया पार्ट ने ‘राफेल पेपर्स’ नाम से आर्टिकल प्रकाशित किए हैं। वेबसाइट ने रिपोर्ट जारी करते हुए दावा किया है कि राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दसौ एविएशन ने एक भारतीय बिचौलिए को राफेल सौदा के बदले करोड़ों रुपये दिए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय बिचौलिए को 10 लाख यूरो यानि करीब 8 करोड़ 62 लाख रुपये दिए गए हैं और इन पैसों को लेकिन राफेल कंपनी की तरफ से फ्रेंच एंटी करप्शन अधिकारियों को कोई सही जबाव नहीं दिया गया है। फ्रांस की वेबसाइट मीडियापार्ट ने रविवार को राफेल पेपर्स नाम की रिपोर्ट में राफेल सौदे को लेकर कई और खुलासे किए हैं।
फ्रांस की वेबसाइट ‘मीडिया पार्ट’ ने तीन पार्ट के इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट के पहले पार्ट में दावा किया है कि साल 2018 के मध्य अक्टूबर महीने में फ्रांस की एंटी करप्शन ब्यूरो ने सबसे पहले किसी भारतीय बिचौलिए को करोड़ों रुपये दिए जाने की बात को पकड़ा था। जिसके बाद एंटी करप्शन ब्यूरो ने राफेल बनाने वाली कंपनी दसौ एविएशन से इस ‘लेन-देन’ को लेकर जबाव मांगा, लेकिन दसौ एविएशन कंपनी एंटी करप्शन एजेंसी को सही जबाव देने में नाकामयाब रही है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सबसे पहले फ्रांस एंटी करप्शन एंजेसी एएफए को 2016 में इस सौदे पर दस्तखत के बाद गड़बड़ी के बारे में पता लगा। और फिर 23 सितंबर 2016 को राफेल डील पर भारत और दसौ एविएशन के बीच समझौता हो गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रांस की इनवेस्टिगेशन एजेंसी को पता चला कि एक बिचौलिए को 10 लाख यूरो यानि 8 करोड़ 62 लाख रुपये दिए गए और ये हथियार दलाल एक दूसरे हथियार सौदे में गड़बड़ी के लिए आरोपी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राफेल बनाने वाली कंपनी ने फ्रांस की जांच एजेंसी के सामने कहा है कि 23 सितंबर 2016 को राफेल डील फाइनल होने के बाद भारत की डेफसिस सॉल्यूशन को एक निश्चित अमाउंट देने पर तैयार हो गई थी। दसौ एविएशन ने कहा है कि ये रुपया डेफसिस सॉल्यूशन को राफेल विमान के 50 बड़े रेप्लिका बनाने के लिए दिया जाना था।
हालांकि, राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉ एविएशन फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी के सामने ये सबूत देने में नाकाम रही कि वास्तव में 50 रेप्लिका कहां, कब और कैसे बने हैं या बने भी हैं या नहीं बने हैं। वहीं, इस रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा है फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी एएफए, जो फ्रांस की बजट मिनिस्ट्री और फ्रांस के जस्टिस मिनिस्ट्री दोनों को जवाबदेह है, उसने इस गड़बड़ी को जांच के लिए प्रॉसीक्यूटर के पास नहीं भेजा।
फ्रांस की वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी ने हथियार बनाने वाली बड़ी कंपनियों को लेकर एक जांच शुरू की थी। ये जांच सिर्फ इस नीयत से शुरू की गई थी कि क्या हथियार बनाने वाली बड़ी कंपनियां एंटी करप्शन नियमों का पालन करती हैं या नहीं। इसके लिए फ्रांस में एक कानून भी है, जिसका नाम है Sapin-2।
मीडियापार्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर 2018 में फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी को राफेल सौदे में गड़बड़ी की आशंका लगी। जिसके बाद एएफए ने दसौ एविएशन कंपनी की ऑडिट करनी शुरू कर दी। ऑडिट के दौरान एएफए के हाथ दसौ एविएशन की 2017 की अकाउंट डिटेल हाथ लगी। इस अकाउंट डिटेल में आइटम ऑफ एक्सपेंडिचर में 5 लाख 8 हजार 925 यूरो यानि 4 करोड़ 39 लाख रुपये के नाम से एक ट्रांजेक्शन का जिक्र था। जिसके हेडिंग में लिखा था ‘गिफ्ट्स टू क्लाइंट’।
वेबसाइट मीडियापार्ट ने फ्रांस एंटी करप्शन एजेंसी की रिपोर्ट को देखने के बाद लिखा है कि ये एक्सपेंडीचर बाकी की अकाउंट डिटेल्स और राफेल डील के बही-खाते से मेल नहीं खाता है और ये खर्च ‘अवैध लेनदेन’ का मामला बनता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब दसौ एविएशन कंपनी से जांच एजेंसी ने इस लेनदेन का जबाव मांगा तो कंपनी की तरफ से एक ‘प्रोफोर्मा इनवॉयस’ दिया गया, जिसपर 30 मार्च 2017 की तारीख लिखी थी। रिपोर्ट के मुताबिक इस ‘प्रोफोर्मा इनवॉयस’ में डेफसिस सॉल्यूशन और राफेल बनाने वाली कंपनी दसौ एविएशन के बीच एक सौदे का जिक्र था। और इस बिल में पूरे ऑर्डर का सिर्फ 50% ही अमाउंट डाला गया था। इस बिल के मुताबिक दसौ एविएशन ने राफेल विमान के 50 रेप्लिका बनाने के लिए डेफसिस सॉल्यूशन बनाने के लिए करार किया था। लेकिन जब जांच एजेंसी ने कंपनी से पूछा कि भला आपने अपनी कंपनी द्वारा बनाए जाने वाली एयरक्राफ्ट के मॉडल को बनाने के लिए किसी इंडियन कंपनी के साथ करार क्यों किया और ‘गिफ्ट टू क्लाइंट’ क्या है, तो राफेल कंपनी की तरफ से कोई जबाव नहीं दिया गया।
इसके साथ ही कंपनी की तरफ से जांच एजेंसी के सामने राफेल की रेप्लिका बनने की कोई तस्वीर तक पेश नहीं की गई। जिससे बता चलता है कि राफेल सौदे में भारतीय हथियार दलाल को करोड़ों रुपये दिए गये हैं। फ्रांस की जांच एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘राफेल बनाने वाली कंपनी दसौ एविएशन ने भारतीय डेफसिस सॉल्यूशन के साथ राफेल की रेप्लिका बनाने का फर्जी करार किया ताकि फाइनेसियल ट्रांजेक्शन किया जा सके’
फ्रांस की वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा करते हुए डेफसिस सॉल्यूशन के सुषेण गुप्ता का नाम लिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राफेल बनाने वाली कंवनी दसॉ एविएशन ने सुशेन गुप्ता को पैसे दिए हैं। सुशेन गुप्ता वो शख्स हैं, जिन्हें मार्च 2019 में भारत की इनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट यानि ईडी ने अगस्ता वेस्टलैंड डील में गिरफ्तार किया था। सुशेन गुप्ता के ऊपर अगस्ता वेस्टलैंड डील में मनी लॉन्डरिंग का आरोप है। हालांकि, बाद में सुशेन गुप्ता को अदालत से जमानत मिल गई थी।
फ्रांस की वेबसाइट ने खुलासा किया है कि फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी ने इस भ्रष्टाचार, हथियार दलाल के नाम का खुलासा करने के साथ साथ हर सबूत भी कलेक्ट कर लिए लेकिन जांच एजेंसी की तरफ से इस पूरे मामले को सिर्फ दो पाराग्राफ में खत्म कर दिया गया। और फ्रांस एंटी करप्शन एजेंसी के डायरेक्टर चार्ल्स डुकैन ने इस ‘भ्रष्टाचार’ को फ्रांस की बजट मंत्रालय और जस्टिस मिनिस्ट्री के पास भी नहीं भेजा। एजेंसी ने फाइनल रिपोर्ट में पूरे मामले को सिर्फ दो पाराग्राफ में खत्म कर दिया। वहीं, जब मीडियापार्ट ने इस मामले पर फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी के डायरेक्टर चार्ल्स डुकैन से सवाल पूछा तो उम्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
फ्रांसीसी वेबसाइट के इस दावे के बाद एक बार फिर राफेल रक्षा सौदों का जिन्न बाहर आ सकता है। बता दें कि, राफेल डील को लेकर पिछले कई सालों से भारत में राजनीति गर्म रही है और फ्रेंच वेबसाइट के खुलासे के बाद एक बार फिर से हंगामा होना तय माना जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राफेल सौदे में हुए भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया था। भारत के कई राज्यों में अभी चुनाव चल रहे हैं, लिहाजा विपक्ष राफेल डील को मुद्दा बनाकर मोदी सरकार को फिर से घेरने की कोशिश करेगी।
कांग्रेस ने राफेल सौदे में अनियमितताओं का आरोप लगाया था। पार्टी का आरोप था कि जिस लड़ाकू विमान को यूपीए सरकार ने 526 करोड़ रुपए में लिया था उसे एनडीए सरकार ने 1670 करोड़ प्रति विमान की दर से लिया। कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया था कि सरकारी एयरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस सौदे में शामिल क्यों नहीं किया गया। इस फैसले के खिलाफ लगाई गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर 2019 को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस मामले की जांच की जरूरत नहीं है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हमें नहीं लगता है कि राफेल लड़ाकू विमान सौदा मामले में किसी एफआईआर या जांच की जरूरत है। अदालत ने 14 दिसंबर 2018 को राफेल सौदे की प्रॉसेस और सरकार के पार्टनर चुनाव में किसी तरह के फेवर के आरोपों को बेबुनियाद बताया था।
नवंबर 2017 में अपनी तीन भाग श्रृंखला में ‘जनता का रिपोर्टर’ ने पहली बार फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट एविएशन से राफेल जेट की खरीद में घोटाले को उजागर किया था। (You can read them here Part 1 and Part 2 and Part 3)।