मध्य प्रदेश के धार जिले में अपने बेटे को परीक्षा दिलाने के लिए एक पिता ने 105 किलोमीटर साईकिल चलाकर उसे परीक्षा केंद्र तक पहुंचाया। वाक्या धार जिले के मनावर तहसील के बायडीपुरा गांव का है। यहां मजदूरी करने वाले शोभाराम के बेटे ने माध्यमिक शिक्षा मंडल की दसवीं की परीक्षा दी थी मगर उसे सफलता नहीं मिली। राज्य सरकार ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा में असफल छात्रों के लिए रुक जाना नहीं योजना शुरू की। इसके तहत असफल छात्र दोबारा परीक्षा दे सकते हैं और अपना भविष्य संवार सकते हैं।
शोभाराम के बेटे आशीष भी दसवीं की परीक्षा में असफल रहा और उसे भी रुक जाना नहीं योजना के तहत परीक्षा देनी थी मगर कोरोना महामारी के कारण सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह बंद होने पर उसके सामने एक बड़ी समस्या आ गई, क्योंकि मोटरसाइकिल आदि उसके पास थी नहीं, लिहाजा उसने साइकिल से ही जिला मुख्यालय पर स्थित परीक्षा केंद्र तक पहुंचने का फैसला लिया। उसके घर से परीक्षा केंद्र की दूरी 105 किलोमीटर है।
शोभाराम ने बेटे आशीष को साइकिल पर बैठाया और चल दिया परीक्षा केंद्र की ओर जहां परीक्षा होनी थी। शोभाराम ने लगभग 7 घंटे साइकिल चलाई तब वह कहीं जाकर परीक्षा केंद्र तक पहुंच पाया। सोशल मीडिया पर शोभाराम का वीडियो वायरल हो रहा है। शोभाराम 3 दिन का राशन बांधकर गांव से परीक्षा दिलाने आया है। वह अपने बेटे को अधिकारी बनाना चाहता है। वह अपने साथ बिछौना भी लेकर आया है, क्योंकि होटल आदि में रुकने की उसकी हैसियत नहीं है।
#MadhyaPradesh के #Dhar जिले में 105 किलोमीटर Cycle चलाकर मजदूर पिता शोभाराम अपने बच्चे आशीष को परीक्षा दिलाने धार स्थित परीक्षा केंद्र पहुंचे. #मध्यप्रदेश के मांडू जिले में रहता है परिवार, रुक जाना नहीं अभियान के तहत 10वीं-12वीं परीक्षा में असफल छात्रों को एक और मौका दिया जा रहा pic.twitter.com/AsBoKZvCUA
— HIMANSHU BHAKUNI (@himmi100) August 19, 2020
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मजबूर पिता ने बताया कि ”मैं मजदूर हूं लेकिन बेटे को ये दिन नहीं देखने दूंगा।” शोभाराम ने कहा- ”मैं मजदूरी करता हूं, लेकिन बेटे को अफसर बनाने का सपना देखा है और इसे हर कीमत पर पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं। ताकि बेटा और उसका परिवार अच्छा जीवन जी सके। बेटा पढ़ाई में दिल-दिमाग लगाता है और होनहार है, लेकिन हमारी बद किस्मती है कि कोरोना के कारण गांव में बच्चे की पढ़ाई नहीं हो पाई। जब परीक्षा थी, तब ट्यूशन नहीं लगवा पाया, क्योंकि गांव में शिक्षक नहीं हैं। इसलिए बेटा तीन विषयों में रुक गया। मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं, इसलिए कुछ नहीं कर पाया।”