मायावती ने सपा के साथ गठबंधन खत्म करने का किया ऐलान, कहा- ‘अब BSP आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर लड़ेगी’

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बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ अपना गठबंधन पूरी तरह से खत्म कर लिया है। मायावती ने सोमवार को एक के बाद एक ट्वीट कर इसका ऐलान करते हुए कहा कि बसपा अब आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अपने बूते पर लडेगी। गौरतलब है कि आम चुनावों का परिणाम आने के बाद मायावती ने सिर्फ उत्तर प्रदेश में विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव अकेले लड़ने की बात कही थी, लेकिन सोमवार के बयान ने महागठबंधन को लगभग समाप्त ही कर दिया है।

(PTI file photo)

बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार को ट्वीट करते हुए कहा, “लोकसभा आमचुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। अतः पार्टी व मूवमेन्ट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।”

इसके साथ ही बसपा प्रमुख ने दो अन्य ट्वीट और किए है। पहले ट्वीट में मायावती ने लिखा है, “बीएसपी की आल इण्डिया बैठक कल लखनऊ में ढाई घण्टे तक चली। इसके बाद राज्यवार बैठकों का दौर देर रात तक चलता रहा जिसमें भी मीडिया नहीं था। फिर भी बीएसपी प्रमुख के बारे में जो बातें मीडिया में फ्लैश हुई हैं वे पूरी तरह से सही नहीं हैं जबकि इस बारे में प्रेसनोट भी जारी किया गया था।”

उन्होंने अन्य ट्वीट में आगे लिखा, “वैसे भी जगजाहिर है कि सपा के साथ सभी पुराने गिले-शिकवों को भुलाने के साथ-साथ सन् 2012-17 में सपा सरकार के बीएसपी व दलित विरोधी फैसलों, प्रमोशन में आरक्षण विरूद्ध कार्यों एवं बिगड़ी कानून व्यवस्था आदि को दरकिनार करके देश व जनहित में सपा के साथ गठबंधन धर्म को पूरी तरह से निभाया।”

बता दें कि इससे पहले मायावती ने 4 जून को समाजवादी पार्टी पर हमला बोलते हुए संवाददाताओं से कहा था कि लोकसभा चुनाव में सपा का ‘आधार वोट’ यानी यादव समाज अपनी बहुलता वाली सीटों पर भी सपा के साथ पूरी मजबूती से टिका नहीं रह सका। उसने भीतरघात किया और यादव बहुल सीटों पर सपा के मजबूत उम्मीदवारों को भी हरा दिया।

उन्होंने कहा था कि खासकर कन्नौज में डिम्पल यादव, बदायूं में धर्मेन्द्र यादव और फिरोजाबाद में अक्षय यादव का हार जाना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है। सपा में लोगों में काफी सुधार लाने की जरूरत है। बसपा कैडर की तरह किसी भी स्थिति के लिये तैयार होने के साथ-साथ भाजपा की नीतियों से देश और समाज को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करने की सख्त जरूरत है, जिसका मौका सपा ने इस चुनाव में गंवा दिया।

बता दें कि, सपा-बसपा-रालोद ने मिलकर पिछला लोकसभा चुनाव लड़ा था, मगर यह गठबंधन ज्यादा कामयाब नहीं हो पाया। इसमें बसपा को 10 और सपा को पांच सीटें ही मिल सकी थीं। इस गठबंधन से सपा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। एक तरह से देखा जाए तो मायावती की पार्टी को ज्यादा फायदा हुआ है, क्योंकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। दूसरी ओर सारे समीकरणों को ध्वस्त करते हुए भारतीय जनता पार्टी 62 सीटें कामयाब हो गई।

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