सुप्रीम कोर्ट के बुधवार (4 जुलाई) को आए फैसले के बाद भी दिल्ली में जारी टकराव खत्म होने के आसार कम लग रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बीच दिल्ली सरकार और अधिकारियों में तनातनी तेज होने के आसार हैं। दरअसल बुधवार को कोर्ट का फैसला आने के बाद केजरीवाल सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर मुख्य सचिव को तमाम निर्देश जारी किए। लेकिन सूत्रों के मुताबिक सर्विसेज विभाग के अधिकारियों ने सरकार की बात मानने से तब तक इनकार कर दिया है, जब तक कि कोई नई अधिसूचना जारी नहीं होती।
बता दें कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के लेकर हुए विवाद में बीते बुधवार (4 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार के फैसले को उपराज्यपाल की सहमति की जरुरत नहीं। लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद भी मामला शांत होता नजर नहीं आ रहा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सर्विसेज विभाग का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहीं भी अगस्त 2016 के उस नोटिफिकेशन को रद्द नहीं किया गया है, जिसमें ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल, मुख्य सचिव या सचिवों को दिया था
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक दरअसल बुधवार को ही AAP सरकार ने वरिष्ठ अधिकारियों को स्थानांतरित करने और नई पोस्टिंग करने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सशक्त बनाने के लिए सचिव (सेवा) को एक फाइल भेजी। मगर कुछ ही घंटों के बाद पांच पेजों का नोट उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को भेजा गया। जिसमें कहा गया कि वह इस आदेश को मानने में असमर्थ हैं।
अखबार को सूत्रों के हवाले से मिली खबर के मुताबिक सिसोदिया को भेजे गए नोट में लिखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहीं भी अगस्त 2016 के नोटिफिकेशन को रद्द नहीं किया गया है और दूसरा ये कि इस नोटिफिकेशन में अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल या मुख्य सचिव के पास हैं। इस मामले पर जब इंडियन एक्सप्रेस ने मनीष सिसोदिया और मुख्य सचिव अंशु प्रकाश से संपर्क करने की कोशिश की दोनों अपनी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सिसोदिया ने बुधवार को नौकरशाहों के तबादलों और तैनातियों के लिए भी एक नई प्रणाली शुरू की, जिसके लिए मंजूरी देने का अधिकार मुख्यमंत्री केजरीवाल को दिया गया है। सिसोदिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘2 साल पहले हाईकोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली सरकार से ट्रांसफर-पोस्टिंग की ताकत छीनकर उपराज्यपाल और मुख्य सचिव को दे दी गई थी। बतौर सर्विसेज विभाग मंत्री मैंने आदेश जारी किया है कि इस व्यवस्था को बदलकर आईएएस और दानिक्स समेत तमाम अधिकारियों की ट्रांसफर या पोस्टिंग के लिए अब मुख्यमंत्री से अनुमति लेनी होगी।’
उपराज्यपााल को स्वतंत्र अधिकार नहीं
बता दें कि दिल्ली सरकार और केन्द्र के बीच अधिकारों की रस्साकशी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (4 जुलाई) को अपने महत्वपूर्ण निर्णय में सर्वसम्मति से व्यवस्था दी कि उपराज्यपाल अनिल बैजल के पास निर्णय करने का स्वतंत्र अधिकार नहीं है और वह मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करने के लिये बाध्य हैं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि उपराज्यपाल ‘‘विघ्नकारक’’ के रूप में काम नहीं कर सकते।
संविधान पीठ ने तीन अलग-अलग लेकिन सहमति के फैसले में कहा कि उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए के सिकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल थे। न्यायालय ने कहा कि मंत्रिपरिषद (जो दिल्ली की जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि हैं) के सारे फैसलों की जानकारी उपराज्यपाल को दी जानी चाहिए, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इसमें उनकी सहमति की आवश्यकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘निरंकुशता के लिये कोई स्थान नहीं है और अराजतकता के लिये भी इसमें कोई जगह नहीं है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि भूमि और कानून तथा व्यवस्था के अलावा दिल्ली सरकार के पास अन्य विषयों पर कानून बनाने और शासन करने का अधिकार है। संविधान पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के चार अगस्त, 2016 के फैसले के खिलाफ केजरीवाल सरकार द्वारा दायर कई अपीलों पर यह फैसला दिया। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासनिक मुखिया हैं।
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक हाई कोर्ट के फैसले से असहमति व्यक्त् करते हुये शीर्ष अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल को यांत्रिक तरीके से काम करते हुये मंत्रिपरिषद के फैसलों में अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए। पीठ ने कहा कि उपराज्यपाल को कोई स्वतंत्र अधिकार प्रदान नहीं किये गये हैं और वह मतैक्य नहीं होने की स्थिति में अपवाद स्वरूप मामलों को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
संविधान पीठ ने कहा कि उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद के साथ सद्भावना पूर्ण तरीके से काम करना चाहिए और मतभेदों को विचार विमर्श के साथ दूर करने का प्रयास करना चाहिए। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अन्य न्यायाधीशों से सहमति व्यक्त करते हुये अपने अलग निर्णय में कहा कि असली ताकत तो मंत्रिपरिषद के पास होती है और उपराज्यपाल को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह नहीं बल्कि मंत्रिपरिषण को ही सारे फैसले करने हैं।
न्यायाधीश ने कहा कि उपराज्यपाल को यह भी महसूस करना चाहिए कि मंत्रिपरिषद ही जनता के प्रति जवाबदेह है।न्यायमूर्ति भूषण ने भी अपने अलग फैसले में कहा कि सभी सामान्य मामलों में उपराज्यपाल की सहमति आवश्यक नहीं है। बता दें कि संविधान पीठ का यह फैसला आप सरकार के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल (जिनका उपराज्यपाल के साथ लगातार संघर्ष चल रहा था) के लिए बहुत बड़ी जीत है।


















