शुक्रवार(19 जनवरी) को चुनाव आयोग द्वारा लाभ का पद मामले में दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश के बाद पार्टी की और से दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने शनिवार (20 जनवरी) को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि, बिना हमारी बात सुने, बिना सबूत मांगे चुनाव आयोग ने अपनी राय दी। ये बेहद पक्षपाती राय दी गई है। हम इसके लिए राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे।
फाइल फोटो- दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदियाप्रेस कॉन्फ्रेंस में मनीष सिसोदिया ने कहा कि वह इस मामले में राष्ट्रपति से समय की मांग कर रहे हैं ताकि उनसे गुजारिश करेंगे कि विधायकों की बातें सुने और उसके बाद ही विधायकों की सदस्यता पर अपना कोई फैसला ले।
सिसोदिया ने केन्द्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) पर आरोप लगाया है कि वह पिछले तीन सालों के दौरान दिल्ली सरकार की तरफ से किए गए विकास कार्यों से डर गई है।
सिसोदिया ने कहा कि, पानी के दाम हमने कम किए, हमारे काम से बेईमान लोगों की दुकानें बंद हुई। स्कूलों की स्थिति अच्छी हुई, फ्लाइओवर्स बनाए गए, बीजेपी-कांग्रेस को इसी से दिक्कत हुई है।
मनीष सिसोदिया ने कहा कि, सारे कह रहे हैं ऑफिस ऑफ प्रॉफिट हो गया, कैसा प्रॉफिट हुआ, किसी ने एक पैसे नहीं लिए साथ ही ना ऑफिस लिया ना गाड़ी और ना ही सैलरी ली।
उधर, विधायकों की सदस्यता के मामले पर शनिवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर में बैठक बुलायी गई। इस बैठक में उन सभी 20 विधायकों को मौजूद करने को कहा गया था।
बता दें कि, शुक्रवार (19 जनवरी) को चुनाव आयोग द्वारा लाभ का पद मामले में दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश के बाद पार्टी ने शुक्रवार को ही दिल्ली हाईकोर्ट में गुहार लगाई। दिल्ली हाई कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के विधायकों को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया है, हाई कोर्ट अब मामले की अगली सुनवाई सोमवार (22 जनवरी) को होगी।
गौरतलब है कि, चुनाव आयोग ने लाभ के पद वाले मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग ने शुक्रवार (19 जनवरी) को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेज दी है। अब सबकी नजरें राष्ट्रपति पर हैं, जो इस मामले पर अंतिम मुहर लगाएंगे।
अगर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद AAP के विधायकों के विरुद्ध फैसला देते हैं, तो 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में आप पार्टी के विधायकों की संख्या 66 से घटकर सीधे 46 पर आ जाएगी। बता दें कि, राष्ट्रपति जब चुनाव आयोग की सिफारिश स्वीकार कर लेंगे तो 20 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव कराने होंगे।
AAP अपने विधायकों को अयोग्य होने से बचाने के लिए हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और बीजेपी इसे दिल्ली में अपनी खोई राजनीतिक जमीन को पाने के मौके के तौर पर देख रही है।
जानिए क्या है पूरा मामला ?
बता दें कि केजरीवाल सरकार पर 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाकर लाभ का पद देने का आरोप लगा है। आम आदमी पार्टी ने 13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया था। इसके बाद 19 जून को वकील प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद्द करने के लिए आवेदन किया था। जिसके बाद राष्ट्रपति ने शिकायत चुनाव आयोग भेज दी थी।
चुनाव आयोग ने आप के 21 विधायकों को ‘लाभ का पद’ मामले में कारण बताओ नोटिस दिया था। इस मामले में पहले 21 विधायकों की संख्या थी। हालांकि विधायक जनरैल सिंह के पिछले साल विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद इस मामले में फंसे विधायकों की संख्या 20 हो गई है। ‘लाभ के पद’ का हवाला देकर इस मामले में सदस्यों की सदस्यता भंग करने की याचिका डाली गई थी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग ने केजरीवाल सरकार के खिलाफ फैसला दिया है। आयोग ने रिपोर्ट बनाकर राष्ट्रपति के पास अंतिम मुहर के लिए भेज दी है। माना जा रहा है कि आयोग इन 20 विधायकों की सदस्यता रद करने की बात कह सकता है। आगामी 14 फरवरी को आम आदमी पार्टी सरकार के तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं। ऐसे में यह दिल्ली की केजरीवाल सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
दिल्ली सरकार ने दिल्ली असेंबली रिमूवल ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन ऐक्ट-1997 में संशोधन किया था। इस विधेयक का मकसद संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से छूट दिलाना था, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नामंजूर कर दिया था। इस विधेयक को केंद्र सरकार से आज तक मंजूरी नहीं मिली है। आप के विधायक 13 मार्च 2015 से आठ सितंबर 2016 तक संसदीय सचिव के पद पर थे।