श्रेष्ठा ठाकुर के तबादले पर पूर्व IPS अधिकारियों ने उठाए सवाल, बोले- सरकार ईमानदार और दबंग अधिकारी को पसंद नहीं करती

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उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने वाले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 5 नेताओं को जेल भेजना महिला पुलिस अधिकारी को भारी पड़ गया है। जी हां, सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में जेल भेजने वाली सीओ श्रेष्ठा ठाकुर का शनिवार(1 जुलाई) को बुलंदशहर के स्याना पुलिस थाने से तबादला कर बहराइच(नेपाल सीमा) भेज दिया गया। योगी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।

इस बीच सीओ श्रेष्ठा ठाकुर ने भी इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की हैं। ठाकुर ने अपने फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट के जरिए करारा जवाब देते हुए लिखा, ‘जहां भी जाए गा, रौशनी लुटाए गा। किसी चराग का अपना मकां नहीं होता।’ ठाकुर ने सीधे तौर पर तो इस मामले में कुछ नहीं बोली हैं, लेकिन उनका यह पोस्ट परोक्ष रूप से योगी सरकार द्वारा किए गए तबादले से जोड़कर देखा जा रहा है।

क्योंकि, इस टिप्पणी के अलावा श्रेष्ठा ने जानकारी दी है कि उनका ट्रांसफर अब नेपाल सीमा के पास बहराइच कर दिया गया है। श्रेष्ठा ने लिखा, ‘चिंता करने की जरूरत नहीं है, मैं खुश हूं। मैं इसे अपने अच्छे कामों के पुरस्कार के रूप में स्वीकार कर रही हूं। आप सभी बहराइच में आमंत्रित हैं।’बता दें कि महिला अधिकारी ठाकुर ने एक हफ्ते पहले स्थानीय बीजेपी नेता और अन्य पांच नेताओं को पुलिस कार्यवाही में दखल देने और पुलिस अधिकारी से बदतमीजी करने के आरोप में जेल भेज दिया था। जिसके बाद ठाकुर का तबादला कर अब नेपाल बॉर्डर पर भेज दिया गया है। हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक, ठाकुर की तबादले के बाद स्थानीय नेता इसे अपना सम्मान मान रहे हैं।

क्या कहना है पूर्व अधिकारियों का?

पूर्व DGP विक्रम सिंह ने सरकार और अधिकारी दोनों को बताया गलत

इस मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (डीजीपी) विक्रम सिंह का कहना है कि योगी सरकार और श्रेष्ठा ठाकुर दोनों की गलती है। सिंह ने ठाकुर की बहादुरी का समर्थन करते हुए कहा कि बिना हेलमेट और बिना कागजात के बाइक चलाने पर बीजेपी नेताओं का चालान काटकर अधिकारी ने एक अच्छा संदेश दिया है।

सिंह ने योगी सरकार के फैसले को जल्दबाजी करार देते हुए कहा कि सरकार को अधिकारी पर इस प्रकार से कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने तबादले का यह फैसला बहुत जल्दबाजी में लिया है। उन्होंने कहा कि अधिकारी के खिलाफ काउंसलिंग ही बहुत थी, सरकार को इस तरह का एक्शन लेने से बचना चहिए था।

साथ ही सिंह ने कहा कि पुलिस अधिकारी ने बीजेपी नेताओं के साथ जो किया वह तो ठीक किया, लेकिन उस दौरान अधिकारी को मुख्यमंत्री का नाम बीच में नहीं घसीटना चाहिए था। तबादले के बाद श्रेष्ठा ठाकुर द्वारा फेसबुक पर दी गई प्रतिक्रिया को भी गलत बताते हुए उन्होंने कहा कि अधिकारियों को सोशल मीडिया पर ऐसे मामलों को लाने से बचना चाहिए।

पूर्व आईपीएस अधिकारी आईसी द्विवेदी का योगी सरकार पर हमला

वहीं, पूर्व आईपीएस अधिकारी आईसी द्विवेदी ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि महिला अधिकारी ने जिस बहादुरी के साथ काम किया है उसे सम्मानित किया जाना चाहिए था, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि उस ईमानदार अधिकारी का तबादला कर दिया गया। उन्होंने कहा कि यह पहली बार जब किसी ईमानदारी अधिकारी को ऐसी सजा मिली हो।

आईसी ने कहा कि जब भी राज्य में नई सरकार बनती है तो वह सबसे पहले अपने हिसाब के अधिकारियों का चयन करती है, ताकि वह अधिकारी सरकार के हां में हां मिलाते हुए उसके ईशारे पर काम करे। अगर कोई अधिकारी सरकार के आदेश को न मानते हुए कानून के हिसाब से काम करता है तो उसका हाल ठाकुर जैसा ही कर दिया जाता है।

द्विवेदी ने कहा कि सरकार ने यह सहीं नहीं किया, क्योंकि इससे राज्य के अन्य अधिकारियों को गलत मैसेज जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने ठाकुर का तबादला कर अधिकारियों को यह संदेश दिया है कि राज्य का कोई अधिकारी पार्टी कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई न करें, नहीं तो उनके खिलाफ ही एक्शन लिया जाएगा।

पूर्व IPS अधिकारी शरीक अल्वी बोले- सरकार को जांच के बाद ही एक्शन लेना चाहिए था

पूर्व आईपीएस अधिकारी शरीक अल्वी का कहना है कि योगी सरकार को पहले इस मामले की पूरी तरह से जांच करना चाहिए था। अगर जांच में पुलिस अधिकारी दोषी पाई जाती है तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाता, लेकिन इस प्रकार से बिना किसी जांच के एक महिला अधिकारी का तबादला कर देना सरकार के लिए अच्छा संदेश नहीं है।

अल्वी ने कहा कि योगी सरकार ने सीधे तौर पर पार्टी कार्यकर्ताओं को कानून तोड़ने का लाइसेंस दे दिया है। उन्होंने कहा कि इस कार्रवाई से सीधे तौर पर यह संदेश गया है कि सरकार को ईमानदार और दबंग पुलिस अधिकारी मंजूर नहीं है। शरीक ने कहा कि इससे अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे और अधिकारियों का मनोबल टूटेगा। इस कार्रवाई की जितनी भी निंदा की जाए कम है।

पूर्व DGP बृजलाल ने बताया रूटीन प्रक्रिया

उत्तर प्रदेश के पूर्व तेज-तर्रार आईपीएस अधिकारी और राज्य के डीजीपी रहे बृजलाल ने इसे रूटीन प्रक्रिया बताया है। उन्होंने कहा कि इस मामले को मीडिया ने बहुत ज्यादा तुल दे दिया है, जबकि यह कोई एक सिंगल अधिकारी का ट्रांसफर नहीं किया गया है। बता दें कि बृजलाल वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) में शामिल हो गए हैं, जिस वजह से वह इस मामले में ज्यादा कुछ बोलने से बचते नजर आए।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, घटना पिछले महीने 22 जून की है, जहां बुलंदशहर के सयाना सर्कल के पास ड्यूटी पर तैनात महिला पुलिस अधिकारी श्रेष्ठा ठाकुर अपनी टीम के साथ गाडियों की चैकिंग कर रही थी। इस दौरान गाड़ी के जरुरी दस्तावेज न होने पर पुलिस ने एक बीजेपी नेता का चालान काट दिया।

ठाकुर द्वारा चालान काटने से नाराज बीजेपी नेता ने शहर के तमाम बीजेपी नेताओं को बुलाकर चौराहे पर जमकर उत्पात मचाया और महिला पुलिस अधिकारी के साथ तीखी बहस करते हुए बदसलूकी की। इतना ही नहीं, जिन कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, उन्हें भी कोर्ट परिसर से छुड़ाने की कोशिश की गई।

भाजपाइयों ने नारेबाजी कर जोरदार प्रदर्शन किया और पुलिस पर उत्पीड़न का आरोप लगाया। हालांकि, इस दौरान दबंग महिला पुलिस अधिकारी के सामने बीजेपी नेताओं की एक न चली और बदसलूकी सहित अन्य मामलों में पुलिस ने पांच बीजेपी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अब श्रेष्ठा सिंह का ट्रांसफर किए जाने का मुद्दा भी सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है।

 

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