अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले से पिछले एक सप्ताह से उठे विवाद के बीच केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने शुक्रवार (30 मार्च) को स्पष्ट किया कि सरकार शीर्ष अदालत के निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी।समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक गहलोत ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक कानून पर आए सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के संदर्भ में सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है, ऐसे में आंदोलन कर रहे विभिन्न संगठन अपने आंदोलन वापस लें।
उन्होंने कहा कि, ‘‘भारत सरकार अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के कल्याण के लिए संकल्पित है। उच्चतम न्यायालय ने एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून को लकर जो फैसला दिया है उसके संबंध में केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया है।’’
गहलोत ने कहा कि, ‘‘इस मुद्दे को आंदोलन करने वाले सभी संगठनों और लोगों से मेरा अनुरोध है कि वे केंद्र सरकार इस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में वे अपने आंदोलन वापस लें।’’ गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम, 1989 के तहत स्वत: गिरफ्तारी और आपराधिक मामला दर्ज किये जाने पर हाल में रोक लगा दी थी। यह कानून भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ हाशिये पर रहने वाले समुदायों की रक्षा करता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बवाल
बता दें कि 20 मार्च को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 के तहत अपराध में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए नए दिशा निर्देश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि ऐसे मामले में अब सरकारी कर्मचारी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। इतना ही नहीं गिरफ्तारी से पहले आरोपों की जांच जरूरी है और गिरफ्तारी से पहले जमानत भी दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति आदर्श गोयल और यू यू ललित की पीठ ने कहा कि कानून के कड़े प्रावधानों के तहत दर्ज केस में सरकारी कर्मचारियों को अग्रिम जमानत देने के लिए कोई बाधा नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट के तहत कानून का दुरुपयोग हो रहा है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को सात दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे की कार्रवाई का फैसला लेना चाहिए।
अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ़्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति जरूरी होगी। उन्हें यह लिख कर देना होगा कि उनकी गिरफ्तारी क्यों हो रही है। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की सहमति ज़रूरी होगी। बता दे कि इससे पहले ऐसे मामले में आरोपी की सीधे गिरफ्तारी हो जाती थी।
एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ मुख्य तथ्य
- आरोपों पर तुरंत नहीं होगी गिरफ्तारी
- पहले आरोपों की जांच जरूरी
- केस दर्ज करने से पहले जांच
- DSP स्तर का अधिकारी जांच करेगा
- गिरफ़्तारी से पहले ज़मानत संभव
- अग्रिम ज़मानत भी मिल सकेगी
- सरकारी अधिकारियों को बड़ी राहत
- सीनियर अधिकारियों की इजाजत के बाद ही होगी गिरफ्तारी