मेरठ की पहचान आजादी के नगर के तौर पर न होकर साम्प्रदायिक दंगों के लिए की जाती है। मेरठ कभी भी अपने हिन्दु-मुस्लिम विवाद से आगे नहीं निकल पाया है। ताजा मामले में नगर निगम में पार्षद इस बात पर भिड़ गए कि निगम में वंदे मातरम् होना चाहिए या नहीं।
स्मार्ट सिटी के प्रपोजल को अनुमति प्रदान करने के लिए मंगलवार को आयोजित नगर निगम की बोर्ड बैठक में वंदे मातरम् को लेकर खासा विवाद हुआ। नगर निगम बोर्ड बैठक शुरू होने से पहले वंदे मातरम गाने को लेकर बीजेपी पार्षदों ने हंगामा कर दिया। बीजेपी पार्षदों की मांग थी कि जो पार्षद वंदे मातरम के दौरान सदन में नहीं रहेगा, वह बाद में भी बोर्ड बैठक में नहीं रहेगा। इस बात को लेकर मुस्लिम पार्षदों ने विरोध किया।
भाजपा नेता और मेरठ के मेयर हरिकांत अहलूवालिया ने नगर निगम बोर्ड के सभी पार्षदों को राष्ट्रगीत वंदे मातरम गाने के निर्देश भा जारी किए हैं। निर्देश में कहा गया है कि जो ऐसा नहीं करेगा उसे बोर्ड मीटिंग रूम में घुसने या मीटिंग में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस बारे में सदन से बाहर आए मुस्लिम पार्षदों का कहना है कि पूर्व में इस तरह की कोई बात नहीं की गई थी लेकिन आज अचानक से ऐसी घोषणा कर देना हैरान करता है। बता दे कि मुस्लिम पार्षदों ने यहां सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कानूनन इस तरह के मुद्दे में कोई अनिवार्यता नहीं है, लेकिन यहां हम पर इस तरह का आदेश थोपा जा रहा है।
जबकि इस बारे में सपा पार्षद दल नेता शाहिद अब्बासी ने कहा कि वंदे मातरम् में शामिल न होने पर सदस्यता समाप्त करने तथा सदन में न घुसने देने की घोषणा अनुचित है। इस बारे में मीडिया से बात करते हुए बीजेपी पार्षद विजय आनंद का कहना है कि वंदे मातरम राष्ट्रगीत है, ऐसे में इसके गायन के दौरान सदन से उठकर जाना उसका अपमान है।
आपको बता दे कि मेरठ में छोटी-छोटी बातों पर साम्प्रदायिक विवाद हो जाता है। पूर्व में पार्क में झूवा झूलने को लेकर भी एक मार-पिटाई का वीडियो सामने आया था जिसमें यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लेकर एक व्यक्ति इन इस मामूली घटना को साम्प्रदायिक बनाने का प्रयास किया था।