मोदी सरकार के तीसरे कैबिनेट विस्तार में रक्षा मंत्री बनीं निर्मला सीतारमन के पद संभालते ही उनके सामने एक नई तरह की चुनौती आ गई है। दरअसल, सेना के करीब 100 से ज्यादा लेफ्टिनेंट कर्नल और मेजर रैंक के अधिकारियों ने प्रमोशन में कथित तौर पर ‘भेदभाव और नाइंसाफी’ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अधिकारियों का आरोप है कि उनके साथ प्रमोशन में अन्याय और भेदभाव हुआ है।टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सेना के इन अधिकारियों ने अपनी याचिका में कहा है, ‘सेना और केंद्र सरकार के इस कृत्य (प्रमोशन में भेदभाव) से याचियों और अन्य के साथ नाइंसाफी हुई है, इससे अफसरों के मनोबल पर असर पड़ता है, जिससे देश की सुरक्षा भी प्रभावित हो रही है।’
अधिकारियों ने अपनी याचिका कोर्ट से आग्रह किया है कि अगर उनके साथ प्रमोशन में ऐसी ही भेदभाव हुआ और उन्हें उनका हक नहीं मिला, तो उन्हें ऑपरेशनल एरिया और युद्ध क्षेत्र में तैनात न किया जाए। लेफ्टिनेंट कर्नल पी. के. चौधरी की अगुवाई में शीर्ष अदालत में दायर की गई संयुक्त याचिका में अधिकारियों ने कहा है कि सर्विसेज कोर के अफसरों को ऑपरेशनल एरियाज में तैनात किया गया है।
कॉम्बैट ऑर्म्स कोर के अफसरों को भी ऐसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने अपनी वकील नीला गोखले के जरिए पूछा है कि तब कॉम्बैट ऑर्म्स के अफसरों को जिस तरह का प्रमोशन दिया जा रहा है, उससे उन्हें क्यों वंचित किया जा रहा है। सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि याचियों ने कहा है कि जब तक प्रमोशन में समानता न लाई जाए तब तक सर्विसेज कोर के अफसरों को कॉम्बैट ऑर्म्स के साथ तैनात न किया जाए।
याचिका में कहा गया है कि सेना और सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। ऑपरेशन एरियाज में तैनाती के वक्त तो सर्विसेज कोर के अफसरों को ‘ऑपरेशनल’ के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन जब बात प्रमोशन की आती है तो उन्हें ‘नॉन-ऑपरेशनल’ मान लिया जाता है। यह याचियों और दूसरे मिड-लेवल आर्मी अफसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।