CM योगी आदित्यनाथ ने स्वयं के खिलाफ चल रहे 8 मुकदमों को रद्द करने का जारी किया फरमान

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उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सभी मामले रद्द करने का फरमान जारी किया है। जी हां,  योगी सरकार ने ही मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के खिलाफ 22 साल पुराने एक प्रकरण को वापस लेने के आदेश जारी किये है। मुख्यमंत्री के साथ ही 12 अन्य पर लगा 22 साल पुराना धारा-144 (निषेधाज्ञा) का उल्लंघन करने संबंधी प्रकरण भी वापस लिया जाएगा। बता दें कि सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ करीब 8 मामले चल रहे थे, जबकि अन्य नेताओं के खिलाफ करीब 20 हजार केस दर्ज हैं।

फोटो- ABP News

गोरखपुर के अपर जिला अधिकारी रजनीश चन्द्र ने न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा से कहा कि राज्य मुख्यालय से आदेश मिला है और इसके लिए उनकी तरफ से अदालत में आवेदन किया जाए। उन्होंने कहा कि अभियोजन अधिकारी से कहा गया है कि वह संबंधित अदालत में मामले वापस लेने के लिये प्रार्थना पत्र दाखिल करें।

योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला, बीजेपी विधायक शीतल पांडेय समेत 10 लोगों के खिलाफ 27 मई 1995 को गोरखपुर के पीपीगंज पुलिस स्टेशन में धारा-144 (निषेधाज्ञा) का उल्लंघन कर एक जनसभा करने का मामला दर्ज किया गया था।

इस बीच राज्य की बीजेपी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुये समाजवादी पार्टी सपा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बुधवार (27 दिसंबर) को आश्चर्य व्यक्त करते हुये कहा कि क्या मुख्यमंत्री स्वयं अपने खिलाफ लगे मामलों को वापस लेने के फैसले पर खुद हस्ताक्षर करेंगे।

सरकार ने योगी के खिलाफ मामला हटाने का आदेश पिछले सप्ताह दिया था। विधानसभा में 21 दिसंबर को उत्तर प्रदेश क्रिमिनल लॉ (कंपोजिशन ऑफ़ ऑफ़ेंसेज एंड एबेटमेंट ऑफ़ ट्रायल्स) संशोधन बिल पेश किए जाने के एक दिन पहले ये आदेश जारी किया गया।

विधानसभा में विधेयक पेश करने से पहले मुख्यमंत्री जिनके पास गृह मंत्री का पदभार भी है, ने सदन में कहा था कि पूरे प्रदेश में राजनीति से प्रेरित धरना प्रदर्शन के 20 हजार मुकदमे दर्ज है। इसमें 31 दिसम्बर 2015 तक दर्ज किये गये मुकदमें शामिल है।

गोरखपुर के पीपीगंज पुलिस स्टेशन के रिकार्ड के मुताबिक योगी तथा अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 किसी लोकसेवक द्वारा वैध रूप से जारी किसी आदेश का उल्लंघन करने वाले कार्य को दंडनीय अपराध घोषित करती है के तहत 27 मई 1995 को धारा-144 (निषेधाज्ञा) का उल्लंघन करके एक जनसभा करने का मामला दर्ज किया गया था।

गोरखपुर योगी का गृह जनपद है और वह पांच बार यहां से लोकसभा के लिये चुने गये है। इस साल वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और बाद में वह विधानपरिषद के सदस्य बने। इस साल मई में योगी के प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में कहा था कि वह गोरखपुर में 2007 में कथित भड़का भाषण के बाद दंगे भड़काने के मामले में उनके योगी खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

जनवरी 2007 में गोरखपुर में दंगा भड़का था। आरोप है कि उस समय वहां के तत्कालीन सांसद योगी ने मोहर्रम के जुलूस के मौके पर दो समुदायों के लोगों के बीच टकराव में एक युवक की मौत होने के बाद कथित रूप से भड़का भाषण दिया था। तत्कालीन बीजेपी सांसद योगी को तब गिरफ्तार किया गया था और 10 दिनों तक जेल में रखा गया था। अदालत से जमानत मिलने पर वह बाहर आए थे।

उार प्रदेश सरकार ने सरकार ने एक दशक पुराने दंगे के मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी थी । भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत दर्ज किए गए भड़का भाषण के इस मामले में सुनवाई राज्य सरकार की मंजूरी मिलने पर ही हो सकती थी।

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