सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार से पूछा- जब ठीक से लागू नहीं होती तो योजनाओं को बनाते ही क्यों हैं?

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सुप्रीम कोर्ट ने हजारों करोड रूपए खर्च करने के बावजूद कल्याणकारी योजनाओं को सही तरीके से लागू नहीं किये जाने पर बुधवार (8 नवंबर) को आश्चर्य व्यक्त करते हुये सरकार से जानना चाहा कि फिर ऐसी योजनाएं तैयार ही क्यों की जाती हैं।

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न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने शहरी बेघरों से संबंधित मुद्दे पर सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसीटर जनरल आत्माराम नाडकर्णी से कहा कि आप इस योजना को खत्म क्यों नहीं कर देते न्यायालय इस मामले में अब दो सप्ताह बाद आगे विचार करेगा।

पीठ ने कहा कि आप (केन्द्र) हजारों करोड रूपए खर्च कर रहे हैं जिसका इस्तेमाल भारत सरकार दूसरे महत्वपूर्ण कार्यो के लिये कर सकती है। यह तो कर दाताओं के धन की बर्बादी है। यह क्षुब्ध करने वाला है। न्यायालय ने शहरी बेघरों के प्रति केन्द्र और राज्य सरकारों के उपेक्षित रवैये के लिये उन्हें आडे हाथ लिया और कहा कि उनके प्रति कुछ तो करूणा दिखायें।

न्यायलय ने शहरी बेघरों के लिये योजना के तहत उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पश्चिम बंगाल राज्य सरकारों को आबंटित धनराशि के खर्च का पूरा विवरण नहीं देने के लिये उन्हें आडे हाथ लिया। पीठ ने इसे एकदम निराशाजक और बेहद दुखदायी बताते हुये कहा कि राज्यों को बेघरों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए लेकिन ऐसा लगता है कि वे गरीबों की परेशानियों को लेकर चिंतित ही नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि हम कुछ जरूरतमंद लोगों की मदद करने का प्रयास कर रहे हैं। कम से कम इन लोगों के प्रति थोडी तो करूणा दिखायें। साथ ही पीठ ने केन्द्र से कहा कि आप अच्छी योजनायें लेकर आते हैं परंतु यदि आप उन पर अमल नहीं कर सकते तो इन योजनाओं को बनाते ही क्यों हैं।

न्यायालय ने कहा कि केन्द्र यह नहीं कह सकता कि उसने राज्यों को धन मुहैया करा दिया है और इसके साथ ही उसका काम खत्म हो गया और राज्य इस बात की परवाह नहीं करेंगे कि क्या धन बर्बाद हो रहा है या इसे किस तरह खर्च किया जा रहा है। हरियाणा सरकार द्वारा अपने हलफनामे में दिये गये विवरण पर कड़ी आपत्ति करते हुये पीठ ने कहा कि अनेक बिन्दुओं के बारे में स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

न्यायालय ने राज्य के मुख्य सचिव को पेश होने का निर्देश दिया है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के संबंध में पीठ ने टिप्पणी की कि न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट के अनुसार करीब एक लाख अस्सी हजार शहरी बेघर है जबकि बेघरों के लिये आश्रयों की संख्या करीब छह हजार है।

हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने कहा कि वह केन्द्र से प्राप्त धन और शहरी बेघरों के लिये योजना पर हुये खर्च के बारे में विस्तृत हलफनामा दाखिल करेंगे। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने जब यह कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार बेघरों के लिये आश्रय मुहैया कराने के बजाये गायों के आश्रय के लिये अधिक चिंतित है, तो राज्य सरकार के वकील ने पलट कर कहा, इसमें राजनीति मत लाइये।

इसी तरह, पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को भी केन्द्र से मिले धन और आश्रयों के निार्मण पर खर्च की गयी धनराशि के बारे में विवरण पेश करने का निर्देश दिया है।

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