म्यांमार से आए मुस्लिम रोहिंग्या शरणार्थियों को अवैध और देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए मोदी सरकार ने हाल ही में उन्हें देश से निकालने का फैसला किया है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) के अंदर ही सरकार के इस फैसले को लेकर अलग-अलग राय है। जी हां, बीजेपी के वरिष्ठ सांसद वरुण गांधी परोक्ष रूप से रोहिंग्या शरणार्थियों के समर्थन में उतर आए हैं।
न्यूज पेपर नवभारत टाइम्स में “रोहिंग्या शरणार्थियों को यूं न ठुकराएं” शीर्षक से लिखे एक लेख में बीजेपी सांसद ने इस मामले में लिखा है, “हमें म्यांमारी रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण जरूर देनी चाहिए लेकिन इससे पहले वैध सुरक्षा चिंताओं का आकलन भी करना चाहिए।” बता दें कि केंद्र सरकार ने रोहिंग्या शरणार्थियों को अवैध और देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए भारत से वापस भेजने की योजना पर 18 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में 16 पन्नों का एक हलफनामा दायर किया है।
वरुण गांधी ने अपने लेख में लिखा है, “आजादी के बाद से करीब चार करोड़ शरणार्थी भारत की सीमा लांघ चुके हैं और अभी रोहिंग्याओं के बांग्लादेश पहुंचने के साथ ही हमारी सरहद पर एक और शरणार्थी संकट आ खड़ा हुआ है। दुनिया में कुल 6.56 करोड़ लोगों को जबरन उनके देश से निकाल दिया गया है जिसमें 2.25 करोड़ लोगों को शरणार्थी माना गया है।”
उन्होंने आगे लिखा है, “इसके अलावा एक करोड़ लोग और हैं जिन्हें राष्ट्रविहीन माना जाता है। इन्हें कोई भी राष्ट्रीयता हासिल नहीं है और ये लोग साफ-सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और साधिकार रोजगार के बुनियादी अधिकारों से भी वंचित हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) की रिपोर्ट के अनुसार संघर्ष और उत्पीड़न के कारण हर मिनट औसतन 20 लोग अपने घरों से बेघर किए जा रहे हैं।”
बीजेपी सांसद आगे कहते हैं, “भारत ने शरणार्थियों को लेकर बहुत सी मानवाधिकार संधियों (आईसीसीपीआर, आसीईएससीआर, सीआरसी, आईसीईआरडी, सीईडीएडब्ल्यू) पर हस्ताक्षर किया है। सभी संधियों में उन्हें वापस न भेजने का संकल्प दोहराया गया है लेकिन ऐसे संकल्पों का पालन करने के लिए स्थानीय स्तर पर कोई कानून नहीं बनाया गया है।”
My article in NavBharat Times today. #RohingyaCrisis pic.twitter.com/XNMEchcDqs
— Varun Gandhi (@varungandhi80) September 26, 2017
गांधी ने आगे लिखा है, “शरणार्थियों के मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की चौखट पर एक शरणार्थी कानून की मांग उठी। सुप्रीम कोर्ट ने (खुदीराम चकमा बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य; राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य) शरणार्थी सुरक्षा के महत्व पर जोर देते हुए व्यवस्था दी कि चकमा शरणार्थियों को मार दिए जाने या भेदभाव की संभावना को देखते हुए प्रत्यावर्तित नहीं किया जा सकता।”
उन्होंने आगे लिखा है, “हमारा संविधान जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देते हुए आदेश देता है कि ‘राज्य बिना नागरिकता का भेद किए सभी इंसानों के जीवन की सुरक्षा करेगा’ (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, 2014)। वैसे शरणार्थियों के मामले में किसी निश्चित व्यवस्था के अभाव में यह मसला अब भी अलग-अलग मामले के अनुसार ही तय होता है (रिफ्यूजी लॉ इनीशिएटिव, वर्किंग पेपर, 11, 2014)। हाल के दिनों में राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में जनता और संस्थागत सहानुभूति को भी सीमित कर दिया गया है।”
“शरण देना जारी रखें”
बीजेपी सांसद ने लेख के आखिरी में लिखा है, “जिन इलाकों में बड़ी संख्या में शरणार्थी हों, वहां तनाव और भेदभाव कम करने के लिए स्थानीय निकायों को आगे बढ़ कर मकान मालिकों और स्थानीय असोसिएशनों को इनके प्रति संवेदनशील बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। शरणार्थी समुदायों के प्रति समर्थन, युवाओं के बीच वर्कशॉप में उनकी भागीदारी और महिला सशक्तीकरण के लिए उठाए कदमों से उनकी स्वीकार्यता की राह आसान होगी।”
उन्होंने आगे लिखा है, “हमें म्यांमारी रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण जरूर देनी चाहिए लेकिन इससे पहले वैध सुरक्षा चिंताओं का आकलन भी करना चाहिए। स्वाभाविक रूप से अधिकांश शरणार्थी अपने घर लौटना चाहेंगे। हमें शांतिपूर्ण उपायों से अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए उन्हें स्वेच्छा से घर वापसी में मदद करनी चाहिए। आतिथ्य सत्कार और शरण देने की अपनी परंपरा का पालन करते हुए हमें शरण देना निश्चित रूप से जारी रखना चाहिए।”