उत्तर प्रदेश के कासगंज में इस साल गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के दिन तिरंगा यात्रा के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा मामले में कई सनसनीखेज खुलासा हुआ है। एक स्वतंत्र जांच में किए गए तहकीकात में सामने आया है कि यूपी पुलिस की जांच में कासगंज हिंसा मामले में कथित तौर पर हिंदुओं को बचाने की कोशिश की गई है, जबकि बेगुनाह मुसलमानों को फर्जी तरीके से फंसाया गया है। इस रिपोर्ट को देश और विदेश में कार्यरत कई सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों ने समर्थन किया है।
File Photo: IANSगौरतलब है कि कासगंज जिले में गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के मौके पर तिरंगा यात्रा के दौरान दो समुदायों में भिड़ंत हो गई जिससे तनाव व्याप्त हो गया। इस दौरान दोनों समुदायों की और से जमकर पथराव और आगजनी की गई। इसके बाद वहां तोड़-फोड़ और कई गाड़ियों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। इस हिंसा में 22 वर्षीय चंदन गुप्ता नाम के युवक की जान चली गई थी, वहीं अकरम नाम के एक युवक की एक आंख फोड़ दी गई थी।
(देखिए, लाइव)
Investigative Report Exposes Gaping Holes In FIR/Charge-sheet
Posted by Janta Ka Reporter on Wednesday, 29 August 2018
दरअसल मोटरसाइकल रैली के कई हिंदू आदित्यनाथ की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़े हैं। कई के फ़ेसबुक पेज से जाहिर होता है कि वो मुस्लिम विरोधी हैं और हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक कट्टरता का व्यवहार करते हैं। एफ़आईआर के विवेचक (जांच अधिकारी) सब-इंस्पेक्टर मोहर सिंह तोमर ने उसी रात केस डायरी में जीडी की एंट्री संख्या 29 को अक्षरश: दर्ज किया। लेकिन आने वाले महीनों मे तोमर ने उस मोटरसाइकिल रैली में भाग लेने वाले हिंदुओं की राजनीतिक और संगठनात्मक पृष्ठभूमि की जांच करने की कोशिश नहीं की।