दिल्ली: खामोशी से रातोंरात तुगलक कालीन मकबरे को मंदिर में कर दिया गया तब्दील, डिप्टी सीएम सिसोदिया ने दिए जांच के आदेश

0

देश की राजधानी दिल्ली में तुगलक शासनकाल के वक्त का बताया जा रहा एक मकबरे को दो महीने पहले खामोशी से शिव भोला मंदिर में बदल दिए जाने का हैरान करने वाला मामला सामने आया है। हालांकि यह किसने किया, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। इलाके में यह कौतुहल का विषय बना हुआ है। यहां तक की दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार भी इससे अनजान है। ‘गुमटी’ नाम का यह मकबरा दक्षिणी दिल्ली के सफदरजंग एन्क्लेव स्थित हुमायूंपुर गांव में स्थित है। बता दें कि रिहाइशी इमारतों और पार्क के बीच बने इस मकबरे को राज्य सरकार ने स्मारक का दर्जा दिया है।

PHOTO: Indian Express

रिपोर्ट के मुताबिक मार्च महीने में इसे सफेद और भगवा रंग से रंग दिया गया और अंदर मूर्तियां रख दी गईं। ‘जनता का रिपोर्टर’ ने कुछ स्थानीय लोगों से बातचीत की है। उनका कहना है कि गांव के लोगों ने मार्च महीने में इमारत पर सफेद और भगवा रंग करवा दिया, जिसके बाद से ये विवाद शुरू हो गया कि आखिर यह मकबरा है या मंदिर? लोगों का कहना है कि मकबरा काफी समय से जर्जर हालत में था। दो महीने पहले ही लोगों ने इसे केसरिया और सफेद रंग से रंग दिया। इसके बाद इसमें भगवान की मूर्तियां रखकर इसे मंदिर का रूप दे दिया गया।

ऐतिहासिक इमारत में छेड़छाड़ करने के बाद लोगों ने एंट्री पॉइंट पर मंदिर का नाम ‘भोला शिव मंदिर’ लिख दिया है। इसे ‘भोला धर्मार्थ ट्रस्ट’ का मंदिर बताया गया है। मंदिर की स्थापना की तारीख 15 जून 1971 भी लिखी हुई है। इससे पता चला है कि ऐसा करना पुरातत्व विभाग के सिटिजन चार्टर का पूरी तरह उल्लंघन है। इसमें साफ लिखा है कि किसी स्मारक के अंदर या बाहर, दीवार को पेंट या वाइटवॉश नहीं किया जा सकता। यह भी कहा गया है कि ऐतिहासिक महत्व वाले इन स्मारकों की मौलिकता को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। इस मामले पर दिल्ली सरकार के पुरातत्व विभाग की प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है। 

PHOTO: JKR

सिसोदिया ने दिए जांच के आदेश

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस घटना की जांच का आदेश दिया है। सिसोदिया ने कला कि संस्कृति एवं भाषा विभाग (एसीएल) की सचिव को शनिवार (5 मई) तक रिपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया। यह मामला खबरों में आने के बाद सिसोदिया का यह आदेश आया है। उप मुख्यमंत्री ने सचिव को दिए अपने आदेश में कहा कि धरोहर संपत्ति को नुकसान पहुंचाना कानून के खिलाफ है और एक गंभीर अपराध है। सचिव (एसीएल) घटना के ब्योरे और उनके द्वारा की गई कार्रवाई की जानकारी देते हुए शनिवार तक एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपे।

JKR

इससे संबंधित अन्य लोगों की प्रतिक्रियाएं

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट ऐंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) के दिल्ली चैप्टर को पुरातत्व विभाग के सहयोग से पिछले साल इस 15वीं शताब्दी के स्मारक का जीर्णोद्धार करना था। INTACH दिल्ली के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अजय कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘इस स्मारक पर ताला लगा था। हम स्थानीय लोगों के विरोध की वजह से अपना काम नहीं शुरू कर सके। हम पुलिस के पास भी गए, लेकिन बात नहीं बनी। अब यह मंदिर बन गया है और हमने इस स्मारक को खो दिया है।’

अखबार के मुताबिक इस स्मारक के नजदीक में ही बैठने के लिए दो भगवा रंग के बेंच लगवाए गए हैं। इन पर सफदरजंग एन्क्वलेव की बीजेपी पार्षद राधिका अबरोल फोगाट का नाम है। हालांकि ‘जनता का रिपोर्टर’ की टीम शनिवार को जब मौके पहुंची तो दोनों भगवा बेंच और बीजेपी पार्षद राधिका अबरोल फोगाट के नाम का प्लेट हटा दिया गया था। ऐसा माना जा रहा है कि विवाद बढ़ने के बाद दोनों बेंच और राधिका अबरोल फोगाट का नाम हटा दिया गया हो।

वहीं, द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में राधिका अबरोल फोगाट ने कहा, ‘मेरी जानकारी में आए बिना इसे मंदिर में तब्दील कर दिया गया। इसमें मेरी रजामंदी या समर्थन नहीं था। पिछले बीजेपी पार्षद की मिलीभगत से ऐसा किया गया। मैंने भी विरोध किया था, लेकिन यह संवेदनशील मामला है। देश में इस वक्त जो कुछ चल रहा है, कोई किसी मंदिर को छू भी नहीं सकता। मेरा नाम की बेंच तो शुरुआत में पार्क में लगी हुई थी।’

PHOTO: JKR

वहीं, अखबार से बातचीत में INTACH दिल्ली चैप्टर की कन्वीनर स्वपना लिडल ने कहा, ‘एक स्मारक को धार्मिक प्रतिष्ठान में बदलना जमीन कब्जाने का मामला है। सबसे आसान तरीका यही होता है कि इसे मंदिर या मजार में बदल दो। हम स्मारक के रखवाले नहीं हैं। हम बस इनकी मरम्मत करते हैं। इसकी हिफाजत राज्य सरकार को करनी चाहिए और उसके बाद ही हमें सौंपना चाहिए।’

अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में राज्य सरकार के शहरी विकास विभाग की ओर से जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, गुमटी को राज्य की 767 हेरिटेज साइट में शामिल किया गया था। इस बारे में किसी को शायद ही पता हो कि असल में यहां कौन दफन है या गुमटी का निर्माण किसने कराया। हालांकि, बनावट को देखकर अंदाजा लगाया जाता है कि यह तुगलक शासन के आखिरी दौर या लोधीकाल की शुरुआत का है।

स्थानीय लोगों ने किया मकबरा होने का दावा

नाम व चेहरा न दिखाने के शर्त पर एक स्थानीय शख्स ने ‘जनता का रिपोर्टर’ से बातचीत में बताया कि यह मकबरा ही था, अभी दो-ढाई महीने से मंदिर में तब्दील हो गया है। शख्स ने दावा किया किया जब मकबरे को मंदिर में तब्दील किया जा रहा था उस वक्त यहां के स्थानीय लोगों के साथ-साथ कुछ राजनीतिक लोग भी मौजूद थे। जिस वजह से किसी ने विरोध नहीं किया। शख्स ने कहा कि यहां पर मंदिर तो पहले से ही काफी है, लेकिन बता नहीं क्यों अब इस मकबरे को मंदिर बना दिया गया।

 

गुंबद के अंदर बनी कब्र को तोड़ बनाया गया मंदिर

वहीं, NBT के मुताबिक भी स्थानीय लोगों का कहना है कि दो से ढाई महीने पहले गुंबद मात्र एक खंडहर था। कई साल पहले इस गुंबद में एक पंडित रहते थे, जिनका नाम भोला था। उनके गुजर जाने के बाद गांव के लोग गुंबद को भोला का मंदिर कहने लगे थे, लेकिन यहां पूजा नहीं की जाती थी। ढाई महीने पहले गांव के लोगों से भंडारे और मंदिर बनाने के नाम पर पैसे लिए गए। इसके बाद गुंबद को सफेद और केसरिया रंग दिया गया और यहां मूर्ति स्थापित की गई। इसके बाद यह मंदिर बना हुआ है।

हुमायूंपुर गांव के लोगों का कहना है कि निगम पार्षद राधिका अबरोल और पूर्व पार्षद ने इस स्मारक को रंगवाया है। इमारत के पास लगी बेंच पर भी पार्षद का नाम लिखा हुआ है। गांव के आधे लोगों का कहना है कि यह पहले से मंदिर था, लेकिन इसे ठीक करवाने के लिए घरों से दान मांगा गया था। गांव के ही कुछ और लोगों का कहना है कि वे 80 साल यहां रह रहे हैं। यह कभी मंदिर नहीं था। मंदिर बनाने के लिए गुंबद के अंदर बनी कब्र को तोड़ा गया है।

 

Previous articleTime of reckoning for voters of Karnataka
Next articleAmitabh Bachchan asked if he’s ‘jealous’ of Shah Rukh Khan after users accuse him of ‘begging’ for more followers