सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों और न्यायिक कार्यवाहियों समेत लगभग हरेक मुद्दे पर सोशल मीडिया पर कठोर टिप्पणी, ट्रोल और आक्रामक प्रतिक्रिया की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर चिंता जताई है। इसके साथ ही पीठ ने शीर्ष अदालत के जजों पर सरकार समर्थक होने के आरोपों का खंडन किया है।
फाइल फोटोन्यूज़ एंजेसी भाषा की ख़बर के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने एक टिप्पणी में कहा कि उन्हें इस बात को देखने के लिये उच्चतम न्यायालय में बैठना चाहिये कि कैसे सरकार की खिंचाई की जाती है। इसके साथ ही पीठ ने इस मामले की और विस्तृत सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया।
न्यूज़ एंजेसी आईएएनएस की ख़बर के मुताबिक, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की बेंच ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन(एससीबीए) के पूर्व अध्यक्ष के आरोपों पर प्रकाश डालते हुए यह टिप्पणी की।
दरअसल, एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने एक समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज सरकार समर्थक हैं।
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ ने किसी का नाम लिये बिना कहा कि आरोप लगाने वाले एक दिन सुप्रीम कोर्ट आकर देखें कि कितने मामलों में कोर्ट सरकार को घेरकर नागरिकों के पक्ष में फैसले देता है।
साथ ही शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन और हरीश साल्वे के उन सुझावों पर भी सहमति जताई कि सोशल मीडिया पर इस तरह की घटनाओं का नियमन किये जाने की आवश्यकता है।
ये दोनों उत्तर प्रदेश में एक हाईवे पर सामूहिक बलात्कार के मामले में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और यूपी के पूर्व मंत्री आजम खान के बयान से संबंधित मामले में शीर्ष अदालत की सहायता कर रहे हैं। बुलंदशहर के पास घटी उस घटना को आजम खान ने ने राजनीतिक साजिश का परिणाम करार दिया था। इसके बाद पीड़ित परिवार की ओर से आजम खान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया गया था।