सुप्रीम कोर्ट ने अरुण शौरी, प्रशांत भूषण और एन राम को अवमानना कानून के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका वापस लेने की अनुमति दी

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सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी, वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और कार्यकर्ता वकील प्रशांत भूषण को ‘‘अदालत को बदनाम करने’’ को लेकर आपराधिक अवमानना से जुड़े कानूनी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका वापस लेने की गुरुवार को अनुमति दे दी।

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याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ से कहा कि वे याचिका वापस लेना चाहते हैं, क्योंकि इसी मामले पर न्यायालय में कई याचिकाएं पहले से लंबित है और वे नहीं चाहते कि यह याचिका उनके साथ ‘‘अटक’’ जाए।

पीठ ने याचिकाकर्ताओं को इस छूट के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति दी कि वे शीर्ष अदालत के अलावा उचित न्यायिक मंच पर जा सकते हैं। धवन ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हुई संक्षिप्त सुनवाई में कहा कि याचिकाकर्ता इस चरण पर इस छूट के साथ याचिका वापस लेना चाहते हैं कि उन्हें संभवत: दो महीने बाद फिर से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी जाए।

याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय में ‘‘अदालत को बदनाम करने’’ को लेकर आपराधिक अवमानना से जुड़े कानूनी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा था कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

राम, शौरी और भूषण ने अपनी याचिका में ‘अदालत की निंदा’ के लिए आपराधिक अवमानना से जुड़े एक कानूनी प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी और कहा था कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) (i) को चुनौती देते हुए कहा गया था कि यह अस्पष्ट, व्यक्तिपरक और साफ तौर पर मनमाना है। (इंपुट: भाषा के साथ)

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