कब्रिस्तान और श्मसान की चर्चाओं के बीच सुखमती हेमला पर क्यों नहीं है मीडिया की नज़र?

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पुरंगेल के जंगलों में हुई मुठभेड़ में बड़ा फैसला देते हुए, मारे गए लोगों के शवों के दोबारा पोस्टमार्टम का आदेश दिया है। सुरक्षा बलों ने भीमा कड़ती और सुखमती हेमला को माओवादी बताकर उनका एनकाउंटर कर दिया था। जिसके बाद मामले पर विवाद हो गया और अब हाईकोर्ट ने भी मारे गए लोगों के शवों के दोबारा पोस्टमार्टम का आदेश दे दिया है।

कथित तौर पर आरोप है कि पिछले महीने 14 साल की लड़की सुखमती के साथ पुलिस के सिपाहियों ने सामूहिक बलात्कार किया था। वह बाज़ार से लौट रही थी। बलात्कार करने के बाद सिपाहियों ने लड़की को गोली से उड़ा दिया। इस लड़की के साथ उसका जीजा भी बाज़ार से लौट रहा था। जब उसने इस सब का विरोध किया तो पुलिस ने उसे भी मार दिया। छ्त्तीसगढ़ पुलिस ने मीडिया को बताया कि हमारे बहादुर जवानों ने वीरता पूर्वक राष्ट्र की रक्षा करते हुए दो दुर्दांत माओवादियों को ढेर कर दिया। मारी गई लड़की और युवक के परिजनों ने आम आदमी पार्टी की सोनी सोरी से मदद मांगी। कल छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने दोनों मांओं की याचिका पर सरकार को नोटिस दिया है और मारी गई 14 साल की लड़की सुखमती और भीमा के शवों का पोस्टमार्टम करने का आदेश दिया है।

पत्रिका की खबर के अनुसार, दरअसल 28 जनवरी को भीमा कडती अपने नवजात बच्चे की छट्ठी कार्यक्रम की पूजा की तैयारी के लिए अपनी साली सुखमती हेमला के साथ अपने ग्राम गमपुड़ से किरंदुल गया था। किरंदुल बाजार में पूजा सामग्री खरीदने हेतु साथ लायी सल्फी को उन्होंने बाजार में बेचा लेकिन वे दोनों घर वापस नही लौट पाए। 29 जनवरी को भीमा के बड़े भाई बामन को पुलिस ने सूचना दी कि भीमा और सुखमती माओवादी थे और पुरंगेल के जंगल में हुई मुठभेड़ मारे गए। उनकी लाश दन्तेवाड़ा के अस्पताल से उन्हें दी गई।

भीमा के परिजनों ने पाया कि सुखमती की बॉडी पर तरह-तरह के निशान थे, जिससे उसके साथ बलात्कार किये जाने की पुष्टि हुई, उनके शवों के साथ छेड़छड़ भी गया प्रतीत हुआ हुआ। बामन कड़ती ने अपने निर्दोष भाई और उसकी साली को सुरक्षा बलों द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मार दिए जाने की शिकायत उच्च स्तर के पुलिस अधिकारियों से करने का फैसला लिया गया।

31 जनवरी की पुलिस ने उसे घर से उठाकर थाना में बन्द कर दिया था। बामन के साथ पुलिस ने जमकर मारपीट की, उसके घुटनों को चाकू जैसे धारदार हथियार से काट डाला। पुलिस ने उसे माओवादी घोषित कर दिया। मामले में सामाजिक कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी की सोनी सोरी ने प्रारम्भिक जानकारी इकट्ठा कर पाया कि भीमा और सुखमती निर्दोष थे। भीमा और उसके परिवार की जाँच करने के बाद सोनी सोरी ‘आप’ के साथियों और दो पत्रकारों के साथ रविवार 12 फ़रवरी को लगभग 15 किमी की पैदल पहाड़ी रास्ता तयकर गमपुड़ पहुंची।

सारे गांववाले भीमा के घर एकत्रित हो गए थे, सभी में सरकार के प्रति जबरदस्त नाराजगी थी, वे लोग बलात्कार और दोनों हत्याओं के दोषी सुरक्षाबलों को गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे। उपस्थित सैकड़ो ग्रामीणों ने दोनों के सहेजकर रखे गये शवों को दिखाया था। ग्रामीणों का कहना था जब तक इन दोनों की हत्या के अपराध में सुरक्षा बलों पर FIR दर्ज नही हो जाता तब तक वे मृतकों का आदिवासी रीति रिवाज अंतिम संस्कार नहीं करेंगे।

ग्रामीणों ने सोनी को बताया कि पुलिस ने जब शवों को परिजनों को सुपुर्द किया तभी लगा कि मृतकों के शव से आँखे निकाली गई थी। दोनों के शवों की चीरफाड़ की गई थी, शव क्षत विक्षत हो गए थे। ग्रामीण सोनी सोरी के नेतृत्व में इन हत्याओं की FIR कराने की मांग करने लगे। 15 फ़रवरी को लगभग 600 ग्रामीण पैदल चलकर किरंदुल पहुंचे। जहां सोनी सोरी के नेतृत्व में थानेदार से माँग की गई कि पूरे मामले की रिपोर्ट दर्ज हो, दोबारा पोस्टमार्टम हो और यदि वे दोनों माओवादी थे तो उनके खिलाफ दर्ज रिपोर्ट की कॉपी उपलब्ध कराएं। थानेदार ने तीनों मांगों को अस्वीकार कर दिया था।

15 फ़रवरी की रात किरंदुल में गुजारने के बाद 16 फ़रवरी को ग्रामीण और भीमा के परिजन सोनी सोरी के साथ दंतेवाड़ा कलेक्टर से अपनी मांगों को लेकर मिले। भीमा और सुखमती की माताओं की ओर से ज्ञापन सौंपा गया, तब कलेक्टर ने कहा की इस मामले की जाँच कोर्ट के आदेश पर ही सम्भव है, क्योंकि पुलिस FIR दर्ज़ कर अपने स्तर पर जाँच कर चुकी है।

16 फ़रवरी की रात को भीमा और सुखमती के व्यथित परिजनों को सोनी सोरी ने अपने सहयोगी रिंकी के साथ बिलासपुर हाईकोर्ट रवाना हुए और बाकी ग्रामीण अपने गाँव की ओर लौट गए। 17 फ़रवरी को रायपुर से ‘आप’ नेता डॉ संकेत ठाकुर भीमा-सुखमती की माताओ जिनमें एक भाई और बहन को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट पहुंचे। 18 फ़रवरी की रात्रि को बिलासपुर में हाईकोर्ट के लिये याचिका तैयार कर भीमा के परिजन अपने गाँव वापसी के लिये रवाना हो गए।

19 फ़रवरी को गमपुड़ पहुँचने पर भीमा के परिजनों को पता चला कि उनकी अनुपस्थिति में सुरक्षा बलों ने गाँव में घुसकर ग्रामीणों और रिश्तेदारों से खूब मारपीट की। सुरक्षा बलों ने किरंदुल थाना घेराव करने का आरोप लगाकर ग्रामीणों को बन्दूक के कुन्दो से खूब पीटा। लगभग 40 ग्रामीणों और भीमा के रिश्तेदारों को सुरक्षा बलों से मार पड़ी जिनमें से 15 महिलाओं सहित अनेकों की हालत गंभीर हो गई।

इस मारपीट की सुचना सोनी सोरी को दी गई, 21 फरवरी को सोनी सोरी घायलों से मिलने गमपुड़ अपने साथियों के साथ गई। 22 घायलों जिनमे 15 महिलायें शामिल हैं उनका इलाज कराने अपने साथ लाई। सभी घायलों को इलाज के लिये जगदलपुर के महारानी अस्पताल लाया गया। आरोप है कि रक्षा बलों के इस अपराधिक कृत्य पर पर्दा डालने बस्तर के प्रभारी आईजी लगातार झूठ बोल रहे है कि वे दोनों निर्दोष आदिवासी माओवादी थे।

ये पूरी खबर मुख्यधारा के मीडिया से बहुत दूर है। ‘जनता का रिपोर्टर’ ने लम्बी पड़ताल और मीडिया रिपोर्टस का अध्य्यन करने के बाद इसे अपने पाठकों के बीच रख रहा है। जब देश में एक और प्रधानमंत्री मोदी कब्रिस्तान और श्मसान की चर्चा में व्यस्त है तब किसी सुखमती हेमला पर विस्तृत जानकारी प्रकाशित कर ‘जनता का रिपोर्टर’ अपना मुख्य दायित्व समझता है।

एक बार फिर बता दे कि इस मामले में आज छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मारे गए लोगों के शवों के दोबारा पोस्टमार्टम का आदेश दिया है। जिस भीमा कड़ती और सुखमती हेमला को माओवादी बताकर उनका एनकाउंटर कर दिया था उसकी सच्चाई सामने लाने के लिए न्यायालय का ये आदेश दोषियों को सजा दिलाने में कारगर होगा।

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