अभी तक ये खुलासा नहीं हो पाया है कि भोपाल जेल से आठों विचाराधीन कैदी किस प्रकार से भागे। पुलिस और राज्य सरकार के तर्क खरे नहीं उतरते कि लकड़ी की चाबी ताले खोलें, चादर से रस्सी बनाई, प्लेट, ग्लास और चम्मच से हत्या कर दी, हमारे कैमरे खराब थे, सभी सिपाही वीआई डयूटी पर तैनात थे। ये सारी बाते बेमेल की साबित हो रही है। जांच के नतीजे सामने आने में अभी समय है कि ये एनकाउंटर फर्जी था या नहीं? लेकिन जो बात कानूनी तौर पर सामने आई है वो सच है कि मारे गए आठ कैदियों में से तीन को कोर्ट ने बरी कर रखा था और प्राप्त सबूतों को अविश्वसनीय बताया था। वे लोग अपने पर लगें केसों के लिए ट्रायल का इंतजार कर रहा थे।
जनसत्ता की खबर के अनुसार, 8 सिमी सदस्यों में से तीन पर लगे आरोपों और उनके खिलाफ मिले सबूतों को खांडवा कोर्ट ने अविश्वसनीय करार दिया था। जिसमें इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के मुताबिक, लगभग एक साल पहले खांडवा कोर्ट ने अकील खिलजी पर 2011 के एक मामले के लिए मध्यप्रदेश पुलिस और उस केस के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर को लताड़ भी लगाई थी। इतना ही नहीं कोर्ट ने अकील खिलजी को गैरकानूनी गतिविधि कड़े अधिनियम के तहत बरी भी कर दिया था।
वहीं अजमद रमजान खान और मोहम्मद सालिख को कोर्ट ने भगोड़ा घोषित कर रखा था। कोर्ट ने पुलिस को इस बात के लिए भी लताड़ लगाई थी कि उसने जरूरी दस्तावेजों को फोरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजा था। खिलजी को 13 जून 2011 में गिरफ्तार किया गया था। उसपर सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने का आरोप था। उसके बाद 30 सितंबर 2015 को रिहा कर दिया गया था। फिलहाल खिलजी अपने ऊपर लगे बाकी तीन केसों के लिए ट्रायल का इंतजार कर रहा था।
अब जबकि सभी कैदियों को मार दिया गया है और जांच चल रही है, ऐसे में इन आठों में अगर कुछ लोग निर्दोष साबित हो गए तो पुलिस और राज्य सरकार के पास जवाब देने के लिए क्या होगा?