देश की राजधानी दिल्ली की लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहीं और राष्ट्रीय राजधानी को आधुनिक शहर का स्वरूप देने वालों में शामिल शीला दीक्षित का शनिवार (20 जुलाई) को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 81 साल की थीं। फोर्टिस-एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट में तीन बजकर 55 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को शीला दीक्षित के आवास पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, अहमद पटेल, किरण वालिया, जगदीश टाइटलर, शिवराज पाटिल, नगमा, अशोक वालिया, भाजपा के विजय गोयल और माकपा नेता सीताराम येचुरी तथा बृंदा करात उन्हें श्रद्धांजलि देने निजामुद्दीन स्थित आवास पहुंचे।
वहीं, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई अन्य नेताओं ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया है।शीला दीक्षित 1998 से 2013 के बीच 15 वर्षो तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। राष्ट्रीय राजधानी में पार्टी को फिर से खड़ा करने के मकसद से उन्हें कुछ महीने पहले ही दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था।
#SheilaDikshit to be cremated at Nigambodh ghat today#ITVideo (@ashu3page)
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राजधानी की सूरत बदलने वाली शिल्पकार थीं
देश की राजधानी कई नेताओं के उदय और पराभव की साक्षी बनी, लेकिन इनमें शायद शीला दीक्षित इकलौती ऐसी नेता रहीं, जिन्हें दिल्ली ने वर्षों तक विकास की नई-नई इबारतें गढ़ते देखा। शीला ने कांग्रेस के विभिन्न कद्दावर नेताओं के बीच कामयाबी की लंबी सीढ़ी चढ़कर न सिर्फ कई को चौंकाया, बल्कि अपने सुलझे हुए स्वभाव और नेतृत्व कौशल से कई मौकों पर टकराव की स्थिति पैदा होने से पहले ही उसे खत्म कर दिया।
दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में शीला अपनी विनम्रता, मिलनसार व्यवहार, बेहतरीन मेहमान नवाजी और सबको सुनने वाली नेता के तौर पर पहचानी जाती रहीं। शीला के साथ बतौर मंत्री वर्षों तक काम करने वाले हारून यूसुफ ने समाचार एजेंसी ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘शीला जी हमेशा दिल्ली के विकास के लिए याद की जाएंगी। मैंने वर्षों तक उनके साथ काम किया और मैं यह कह सकता हूं कि राजनीति में ऐसे विरले ही होते हैं जो हर हालात में शालीन और मर्यादित रहें और सिर्फ जनहित के बारे में सोचे। वह ऐसी ही नेता थीं।’
पंजाब में हुआ था जन्म
शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ था। उन्होंने दिल्ली के ‘कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी’ स्कूल से पढ़ाई की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की। वह 1984 से 1989 तक उत्तर प्रदेश के कन्नौज से सांसद और राजीव गांधी की सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री रहीं।
बाद में वह दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हुईं। शीला ने 1990 के दशक में जब दिल्ली की राजनीति में कदम रखा तो कांग्रेस में एचकेएल भगत, सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर सरीखे नेताओं की तूती बोलती थी। इन सबके बीच शीला ने न सिर्फ अपनी जगह बनाई, बल्कि कांग्रेस की तरफ से दिल्ली की पहली मुख्यमंत्री बनीं।
गांधी परिवार की बेहद करीबी थीं शीला
गांधी परिवार की खास मानी जाने वाली शीला न केवल राजीव गांधी, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी की भी बेहद करीब मानी जाती थीं। सोनिया एवं राहुल गांधी ने आवश्यकता पड़ने पर उन्हें सामने लाकर कई बार उनके राजनीतिक कौशल का लाभ लिया। शीला ने 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाई और यहां से उनकी जीत का सिलिसिला ऐसे चला कि 2003 और 2008 में भी उनकी अगुवाई में कांग्रेस की फिर सरकार बनी।
Not surprised why #SheilaDixitJi’s demise has shaken Sonia Gandhi. Both enjoyed very good camaraderie. Even Rahul Gandhi held her in high esteem. pic.twitter.com/mGgNIp5Aw0
— Rifat Jawaid (@RifatJawaid) July 20, 2019
फ्लाइओवर और सड़कों का बिछा जाल
शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते दिल्ली में फ्लाइओवर और सड़कों का जाल बिछा तो मेट्रो ट्रेन का भी खूब विस्तार हुआ।सीएनजी परिवहन सेवा लागू करके शीला ने देश-विदेश में वाहवाही हासिल की। एक समय दिल्ली की राजनीति में अजेय मानी जाने वाली शीला की छवि को 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोपों से धक्का लगा। अन्ना आंदोलन के जरिए राजनीतिक पार्टी खड़े करने वाले अरविंद केजरीवाल ने ऐसे कुछ आरोपों का सहारा लेते हुए शीला को सीधी चुनौती दी।
इस तरह 2013 में न सिर्फ शीला की सत्ता चली गई, बल्कि स्वयं वह नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में केजरीवाल से चुनाव हार गईं। इस चुनावी हार के बाद भी कांग्रेस और देश की राजनीति में उनकी हैसियत एक कद्दावर नेता की बनी रही। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें अपना चेहरा घोषित किया, हालांकि बाद में पार्टी ने सपा के साथ गठबंधन कर लिया।
दिल्ली के फ्लाईओवर हों या मेट्रो, शीला दीक्षित इनके लिए चिरकाल तक लोगों के दिलों में रहेंगी। यही वजह है कि है कि वे राजनीति के शिखर तक तक जा पहुंची। सरल और सुहृद इतनी कि मनोज तिवारी हालिया लोक सभा चुनाव जीतने के बाद उनका आशीर्वाद लेने जा पहुंचे। उनके आलोचक भी इस बात को मानते हैं कि उन्होंने अपने 15 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में दिल्ली के विकास को नई ऊंचाई दी।
PM @narendramodi paid tributes to the former CM of Delhi, Smt. Sheila Dikshit Ji. pic.twitter.com/tVyP8WI1hp
— PMO India (@PMOIndia) July 20, 2019
एक बार फिर मिली कांग्रेस की कमान
राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शीला को एक बार दिल्ली कांग्रेस की कमान दी, हालांकि पार्टी को कोई सफलता नहीं मिली और उत्तर पूर्वी लोकसभा सीट से वह खुद चुनाव हार गईं। वैसे, जानकारों का यह कहना है कि इस चुनाव में कांग्रेस वोट प्रतिशत के लिहाज से अपनी खोई जमीन पाने में कुछ हद तक सफल रही। दिल्ली कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि शीला की तरह यहां एक सर्वमान्य नेता होने की कमी पार्टी को लंबे समय तक खल सकती है।
शीला दीक्षित की आत्मकथा पिछले ही वर्ष ‘‘सिटीजन दिल्ली : माई टाइम्स, माई लाइफ’’ शीर्षक से आयी थी। शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके हैं। उन्हें इंदिरा गांधी का काफी करीबी माना जाता था। उनके पति विनोद दीक्षित आईएएस अधिकारी थे। उनके पुत्र संदीप दीक्षित पूर्वी दिल्ली से सांसद रह चुके हैं। शीला दीक्षित कुछ समय केरल की राज्यपाल भी रही थीं। व्यक्तिगत रूप से शीला दीक्षित को पश्चिमी संगीत और विभिन्न तरह के जूते-चप्पल पहनने का शौक था। (इनपुट- भाषा के साथ)