कल पूरे दिन सोशल मीडिया पर एनडीटीवी के प्रतिबंध को लेकर चर्चाएं गरम रही। लोगों को उम्मीद थी रात के प्राइम टाइम शो पर रवीश उदासी भरी बातों के साथ भावूक होकर अपना दर्द बयां करेंगे लेकिन हुआ इसका उल्टा। रवीश ने सरकार पर अपना मोर्चा खोलते हुए धारदार कटाक्ष किया। वह भावूक और उदास नहीं दिखें बल्कि टेलिविजन पर न्यूज के माध्यम से व्यंग कैसे रखा जाए इसकी बुनियाद का पत्थर रखते हुए दिखें। न्यूज़ ऐंकरिंग के सन्दर्भ में इस शो को ऐतिहासिक होने का दर्जा दिया जा सकता है। तमाम उन टीवी ऐंकरों को जो अपने अंदर व्याकुलता पाले बैठे है और समाजिक परिवर्तन के लिए प्रयासरत् है।
रवीश ने उन सबको उदाहरण पेश कर एक ज़मीन उपलब्ध करा दी है, जिसमें दिखाया गया कि संयमित होकर भी अपनी बात को किस तरह रखा जाता है वो भी ऐसे समय में जो आपको सबसे ज्यादा परेशान करने वाला हो। हम टीवी न्यूज़ के उस दौर में जी रहे जब ऐंकर सांप-छछूंदर का खेल दिखा कर लोगों को बताता है कि वो न्यूज़ देख रहे हैं। ऐसे समय में रवीश का इस तरह का अभिनव प्रयोग ना सिर्फ सरकार की कलई खोल देता है बल्कि चेतना के स्तर पर जागरूकता जैसी चीज़ भी पैदा करता हैं।
शो के टेलिकाॅस्ट होने के बाद से तमाम सोशल ठिकानों पर टूटकर ब़ज बना, रवीश ट्रेंड करने लगे, और सरकार के नकली सिपाहियों के हौसलें पस्त दिखे और गालियां ज्यादा। शो के बाद से अब तक दिग्गज पत्रकारों और टीवी समीक्षकों ने जमकर टिप्पणी रखी जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी शो के बारें में लिखा कि आज रवीश का प्राइम टाइम ऐतिहासिक था। उस रोज की तरह, जब उन्होंने स्क्रीन को स्वेछा से काला किया था, अभिव्यक्ति के संसार में पसरे अंधेरे को बयान करने के लिए। आज उन्होंने हवा में व्याप्त जहर के बहाने अभिव्यक्ति की आजादी पर हो रहे प्रहार को दो मूकाभिनय के कलाकारों से सम्वाद के जरिए चित्रित किया।
थानवी ने आगे कहा कि, बहुत मार्मिक ढंग से। उन्होंने सरकार की तंगदिली को बेनकाब किया, सबसे भरोसेमंद चैनल को पठानकोट के नाम पर दी जा रही सजा और इस तरह की बदनामी की कुचेष्टा का जवाब दिया। मुझे लगा वे भावुक हो जाएँगे। पर भावना और दर्द पर क़ाबू रखते हुए वे मजे वाले मूड में आ गए। ओछे शासन को हँसते-खेलते धो डाला। मुझे अब सरकार पर तरस आने लगा है। वह जूते भी खाती है और प्याज भी, पर विवेक से काम नहीं लेती।
ये केवल एक नाम नहीं है सैकड़ों दिग्गज लोगों के नाम यहां लिए जा सकते है जो सरकार की इस दंडात्मक कारवाई के विरोध में है। अब देखना ये होगा कि अगले 9 नवम्बर तक सरकार किस हद तक बेशर्म बनी रह सकती है और जनचेतना की बयान कितनी और तेज चल सकती है।