राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज (रविवार, 14 अगस्त) कहा कि हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गो पर हुए हमले पथभ्रष्टता है, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।
स्वतंत्रता दिवस की 69वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा, ‘1947 में जब हमने स्वतंत्रता हासिल की, किसी को यह विश्वास नहीं था कि भारत में लोकतंत्र बना रहेगा तथापि सात दशकों के बाद सवा अरब भारतीयों ने अपनी संपूर्ण विविधता के साथ इन भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया। हमारे संस्थापकों द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र के सशक्त ढांचे ने आंतरिक और बाहरी समेत अनेक जोखिम सहे हैं और यह मजबूती से आगे बढ़ा है।’
देश के कुछ हिस्सों में दलितों पर हुए हमलों की पृष्ठभूमि में प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘पिछले चार वर्षो में, मैंने कुछ अशांत, विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों को सिर उठाते हुए देखा है । हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गो पर हुए हमले पथभ्रष्टता है, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।‘ उन्होंने कहा कि हमारे समाज और शासन तंत्र की सामूहिक समझ ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि ऐसे तत्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना रुकावट के आगे बढ़ती रहेगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की खुशहाली सुनिश्चित करती है। महिलाओं, बच्चों के प्रति हिंसा की प्रत्येक घटना सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है। यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहला सकते। राष्ट्रपति ने वस्तु और सेवा कर लागू करने के लिए संविधान संशोधन बिल का पारित होना देश की लोकतांत्रिक परिपक्वता पर गौरव करने का विषय बताया और कहा कि लोकतंत्र का अर्थ सरकार चुनने के लिए समय-समय पर किए गए कार्य से कहीं अधिक स्वतंत्रता के विशाल वृक्ष को लोकतंत्र की संस्थाओं द्वारा निरंतर पोषित करना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि समूहों और व्यक्तियों द्वारा विभाजनकारी राजनीतिक इरादे वाले व्यवधान, रुकावट और मूर्खता
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संविधान में राष्ट्र के प्रत्येक अंग का कर्तव्य और दायित्व स्पष्ट किया गया है। जहां तक राष्ट्र के प्राधिकरणों और संस्थानों की बात है, इसने मर्यादा की प्राचीन भारतीय परंपरा को स्थापित किया है। कार्यकर्ताओं को अपने कर्तव्य निभाने में इस मर्यादा का पालन करके संविधान की मूल भावना को कायम रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीतिक विचार की अलग-अलग धाराओं के बावजूद उन्होंने सत्ताधारी दल और विपक्ष को देश के विकास, एकता, अखंडता और सुरक्षा के राष्ट्रीय कार्य को पूरा करने के लिए एक साथ कार्य करते हुए देखा है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि पिछले चार वर्षो के दौरान, मैंने संतोषजनक ढंग से एक दल से दूसरे दल को, एक सरकार से दूसरी सरकार को और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के साथ एक स्थिर और प्रगतिशील लोकतंत्र की पूर्ण सक्रियता को देखा है। देश की आर्थिक उन्नति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने हाल ही में उल्लेखनीय प्रगति की है, पिछले दशक के दौरान प्रतिवर्ष अच्छी विकास दर हासिल की गई है। अंतरराष्ट्रीय अभिकरणों ने विश्व की सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के स्तर को पहचाना है । व्यापार और संचालन के सरल कार्य-निष्पादन के सूचकांकों में पर्याप्त सुधार को मान्यता दी है।
पाकिस्तान के साथ हाल में उत्पन्न तल्खी के बीच प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘हम अपनी पड़ोस प्रथम नीति से पीछे नहीं हटेंगे। इतिहास, संस्कृति, सभ्यता और भूगोल के घनिष्ठ संबंध दक्षिण एशिया के लोगों को एक साझे भविष्य का निर्माण करने और समृद्धि की ओर मिलकर अग्रसर होने का विशेष अवसर प्रदान करते हैं।’आतंकवाद समेत विविध वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि हमारे समक्ष जो चुनौतियां हैं, इनके संदर्भ में हमें प्राचीन देश के रूप में हमारी जन्मजात और विरासत में मिली क्षमता पर पूरा विश्वास है जिसकी मूल भावना तथा जीने और उत्कृष्ट कार्य करने की जीजिविषा का कभी दमन नहीं किया जा सकता।
अपने पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पचास वर्ष पहले स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर दिए गए संबोधन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमने एक लोकतांत्रिक संविधान अपनाया है। यह मानक विचारशीलता और कार्य के बढ़ते दबावों के समक्ष हमारी व्यैक्तिकता को बनाए रखने में सहायता करेगा, लोकतांत्रिक सभाएं सामाजिक तनाव को मुक्त करने वाले साधन के रूप में कार्य करती हैं और खतरनाक हालात को रोकती हैं। एक प्रभावी लोकतंत्र में, इसके सदस्यों को विधि और विधिक शक्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कोई व्यक्ति, कोई समूह स्वयं विधि प्रदाता नहीं बन सकता।
राष्ट्रपति ने कहा कि एक अनूठी विशेषता जिसने भारत को एक सूत्र में बांध रखा है, वह एक दूसरे की संस्कृतियों, मूल्यों और आस्थाओं के प्रति सम्मान है। बहुलवाद का मूल तत्त्व हमारी विविधता को सहेजने और अनेकता को महत्व देने में निहित है। आपस में जुड़े हुए वर्तमान माहौल में, एक संपूर्ण समाज धर्म और आधुनिक विज्ञान के समन्वय द्वारा विकसित किया जा सकता है ।
(Source: पीटीआई भाषा)