सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) को अदालत की अवमानना मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद देश के कई वकीलों में इसे लेकर ‘बेचैनी’ का माहौल है।
दरअसल, बार के वरिष्ठ सदस्यों सहित देशभर के करीब 1500 से ज्यादा वकीलों ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह ‘सुधारात्मक कदम उठाकर न्याय की विफलता को रोकें।’ वकीलों ने एक बयान में कहा है कि बार को अवमानना का डर दिखाकर चुप कराने से सुप्रीम कोर्ट की ही स्वतंत्रता और ताकत कम होगी।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस अपील पर हस्ताक्षर करने वाले वकीलों में श्रीराम पांचू, अरविंद दतार, श्याम दीवान, मेनका गुरू स्वामी, राजू रामचंद्रन, बिश्वजीत भट्टाचार्य, नवरोज सीरवाई, जनक द्वारकादास, इकबाल चागला, दारिअस खंबाटा, वृन्दा ग्रोवर, मिहिर देसाई, कामिनी जायसवाल और करूणा नंदी शामिल हैं।
बयान में कहा गया है कि “यह फैसला जनता की नजरों में कोर्ट का अधिकार बहाल नहीं करता है बल्कि यह फैसला वकीलों को खुलकर बोलने से रोकेगा। न्यायाधीशों पर जब दबाव बनाया जाता था और उनके बाद की घटनाओं पर बार ही थी, जिसने पहली बार न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाई थी। मूक (चुप) बार कभी भी एक मजबूत कोर्ट नहीं बना सकती।”
बीते दिनों माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने आरोप लगाया था कि कार्यकर्ता, वकील प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट के लिए अवमानना का दोषी ठहराने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत के संवैधानिक लोकतंत्र को कमजोर करता है।
बता दें कि, शुक्रवार (14 अगस्त) को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने प्रशांत भूषण को उनके दो ट्वीट्स के लिए कोर्ट की अवमानना का दोषी करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ये ट्वीट्स तोड़े-मरोड़े गए तथ्यों पर आधारित थे और इनसे सुप्रीम कोर्ट की बदनामी हुई। कोर्ट अब 20 अगस्त को प्रशांत भूषण की सजा पर बहस करेगी।