तीन सदस्यीय समिति में शामिल खड़गे ने आलोक वर्मा को सीबीआई चीफ के पद से हटाने के फैसले का किया विरोध

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एक अभूतपूर्व कदम के तहत आलोक वर्मा को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक पद से गुरुवार (10 जनवरी) को हटा दिया गया। उनको हटाने का फैसला तीन सदस्यीय एक उच्चस्तरीय चयन समिति द्वारा 2-1 के बहुमत से लिया गया। उन्हें भ्रष्टाचार और कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही के आरोपों में पद से हटाया गया। इससे दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा को सीबीआई निदेशक के रूप में फिर से बहाल कर दिया था।

सूत्रों के अनुसार, समिति के फैसले से पहले प्रधान न्यायाधीश द्वारा मनोनीत सदस्य न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी ने सरकार का पक्ष लेते हुए कहा कि उनको केंद्रीय सतर्कता आयोग की जांच के नतीजों के आधार पर पद से हटा दिया जाना चाहिए। हालांकि बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, न्यायमूर्ति सीकरी और समिति के अन्य सदस्य के रूप में लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हुए, जिन्होंने बहुमत के फैसले का विरोध किया। रिपोर्ट के मुताबिक, सीवीसी की रिपोर्ट में वर्मा के खिलाफ आठ आरोप लगाए गए थे।

वर्मा के भविष्य पर विचार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की बैठक में लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सीबीआई निदेशक को पद से हटाने के कदम का विरोध किया। सूत्रों ने पीटीआई को बयाया कि बैठक के दौरान समिति के सदस्य खड़गे ने कहा कि वर्मा को दंडित नहीं किया जाना चाहिए और उनका कार्यकाल 77 दिन के लिये बढ़ाया जाना चाहिए। इस अवधि के लिये वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया गया था। यह दूसरा मौका है जब खड़गे ने वर्मा को पद से हटाने पर आपत्ति जताई।

अधिकारियों ने बताया कि वर्मा का दो वर्षों का निर्धारित कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त होने वाला है और वह उसी दिन सेवानिवृत्त होने वाले हैं। सीबीआई के 55 वर्षों के इतिहास में इस तरह की कार्रवाई का सामना करने वाले जांच एजेंसी के वह पहले प्रमुख हैं। गुरुवार शाम जारी एक सरकारी आदेश में बताया गया कि वर्मा को केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत दमकल सेवा, नागरिक रक्षा और होमगार्ड महानिदेशक के पद पर तैनात किया गया है। सीबीआई का प्रभार अतिरिक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने दी थी राहत

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के साथ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चार अक्टूबर 2018 को वर्मा से मुलाकात की थी और राफेल खरीद सौदे में प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी। वर्मा को विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के साथ उनके झगड़े के मद्देनजर 23 अक्टूबर 2018 की देर रात विवादास्पद सरकारी आदेश के जरिए छुट्टी पर भेज दिया गया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के आदेश को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सरकारी आदेश को निरस्त कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने वर्मा को छुट्टी पर भेजने वाले आदेश को निरस्त कर दिया था, लेकिन उनपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की सीवीसी जांच पूरी होने तक उनके कोई भी बड़ा नीतिगत फैसला करने पर रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि वर्मा के खिलाफ कोई भी आगे का फैसला उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति एक सप्ताह के भीतर करेगी। यह समिति सीबीआई निदेशक का चयन करती है और उनकी नियुक्ति करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने विनीत नारायण मामले में सीबीआई निदेशक का न्यूनतम दो साल का कार्यकाल निर्धारित किया था ताकि किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से उन्हें बचाया जा सके। लोकपाल अधिनियम के जरिए बाद में सीबीआई निदेशक के चयन की जिम्मेदारी चयन समिति को सौंप दी गई थी।

 

 

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