मद्रास हाई कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह पॉपुलर मोबाइल वीडियो ऐप ‘टिक टॉक’ की डाउनलोडिंग पर बैन लगाए। इसके साथ ही मीडिया को भी इस ऐप के जरिए बनाए गए वीडियो का प्रसारण न करने के लिए कहा गया है। कोर्ट का कहना है कि यह ऐप ‘पोर्नोग्राफी’ को बढ़ावा दे रहा है।
मद्रास हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में जस्टिस एन किरूबाकरण और एसएस सुंदर ने मीडिया संस्थानों को अंतरिम आदेश जारी करते हुए निर्देश दिए हैं कि टिक-टॉक मोबाइल एप के जरिए बने हुए वीडियो को टेलीकास्ट न किया जाए। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को साइबर अपराधों का शिकार बनने से रोकने के लिए इस मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है।
लाइव लाइव वेबसाइट के अनुसार, कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा है कि ‘सरकार को जवाब देना होगा कि क्या वह ऐसा कोई कानून लाएगी, जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार बच्चों को साइबर/ऑनलाइन क्राइम का शिकार बनने से बचाने के लिए चिल्ड्रेन्स ऑनलाइन प्रिवेसी प्रोटेक्शन ऐक्ट के तहत लाई है।’
अदालत मदुरै के एक वरिष्ठ वकील सह-सामाजिक कार्यकर्ता मुथु कुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मोबाइल एप्लिकेशन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि टिक-टॉक एप ने पोर्नोग्राफी को प्रोत्साहित किया और इससे बच्चों को साइबर अपराधों का शिकार बनने की संभावना है। अदालत ने याचिकाकर्ता के साथ सहमति व्यक्त की और केंद्र सरकार को इस ऐप के डाउनलोड पर रोक लगाने का निर्देश दिया।
टिक-टॉक प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि कंपनी स्थानीय कानूनों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है और अदालत के आदेश की प्रति का इंतजार कर रही है। आदेश की कॉपी मिलने के बाद उचित कदम उठाए जाएंगे। साथ ही कहा कि ‘एक सुरक्षित और सकारात्मक इन-एप वातावरण बनाना… हमारी प्राथमिकता है।’
अदालत ने इंडोनेशिया और बांग्लादेश के उदाहरणों का भी हवाला दिया, जहां की सरकारों ने पहले से ही टिक टोक पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि अमेरिका ने बच्चों को साइबर शिकार बनने से रोकने के लिए चिल्ड्रन ऑनलाइन प्राइवेसी एक्ट लागू किया है।
बता दें कि, टिक-टॉक ऐप पर यूजर्स अपने शॉर्ट वीडियो स्पेशल इफेक्ट्स के साथ बनाकर उन्हें शेयर कर सकता है। भारत में इसके करीब 54 मिलियन प्रति महीने एक्टिव यूजर्स हैं और इसका स्वामित्व चीन की एक कंपनी बाइटडांस कंपनी के पास है।