कुमार विश्‍वास ने कहा- हिंदी को लोकप्रिय बनाने में योगदान के बावजूद, सरकार फिर भी सरकारी कार्यक्रमों में नहीं देती न्‍योता

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कवि और आम आदमी पार्टी(आप) नेता कुमार विश्वास का कहना है कि राजनीतिक विचार नहीं मिलने के कारण उन्हें सरकारी कार्यक्रमों तक में आमंत्रित नहीं किया जाता।

साथ ही केंद्र में सरकारों ने उन्हें अपेक्षित सम्मान नहीं दिया। विश्वास ने दावा किया कि वह फेसबुक और ट्विटर समेत सोशल मीडिया पर सर्वाधिक फॉलो किये जाने वाले हिंदी के कवि हैं।

करोड़ों लोगों के बीच उन्होंने हिंदी को लोकप्रिय बनाने में योगदान दिया है लेकिन उन्हें केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में नहीं बुलाया जाता और न ही किसी सरकारी संस्थान का सम्मान उन्हें मिला है।

विश्वास ने कहा, ‘‘पहली प्राथमिकता हमेशा कविता रही लेकिन जब कांग्रेस सरकार के समय जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी किया।’’

दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के नेता ने मौजूदा राजग सरकार पर भी परोक्ष हमला करते हुए कहा, ‘‘मैं देश और दुनिया में तमाम कार्यक्रमों में जाता हूं।

कई आयोजक ऐसे भी हैं जो मेरा कार्यक्रम कराना चाहते हैं लेकिन सरकारी अवरोधों के चलते मुझे बुलाने से बचते हैं। सारे निजी चैनलों पर मुझे आमंत्रित जाता है और मेरे कार्यक्रम होते हैं लेकिन दूरदर्शन पर नहीं बुलाया जाता।’’ अपनी वर्तमान परियोजनाओं से जुड़े सवाल पर उन्होंने बताया कि वह छोटे पर्दे पर ‘महाकवि’ के नाम से एक शो लेकर आये हैं जिसका प्रसारण शुरू हो चुका है।

कुमार विश्वास दावा करते हैं कि यह छोटे पर्दे पर साहित्य का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा जिसमें सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, दुष्यंत कुमार, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय और हरिवंश राय बच्चन समेत दस बड़े कवियों के जीवन के ऐसे पहलुओं पर रोशनी डाली जायेगी जिनके बारे में लोगों को कम ही जानकारी होगी।

भाषा की खबर के अनुसार,  उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनके इस शो से विवाद भी खड़ा हो सकता है क्योंकि वह बाबा नागार्जुन की कविताओं में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए की गयीं चुटीली टिप्पणियों की बात करेंगे।

साथ ही दिनकर के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को आड़े हाथ लेने और तत्कालीन सरकार को ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ जैसी रचना से ललकारने के पहलू से भी दर्शकों को अवगत कराएंगे।

बाजारवाद और साहित्य के एक दूसरे से विरोधाभासों के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘साहित्य और बाजार अलग-अलग चीजें हैं लेकिन साहित्य का बाजार बनता है तो इसमें कोई खराबी नहीं है।’’

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