इस पर आगे कहा गया कि इस घटना से संबंधित कोर्ट ऑफ इंक्वायरी अभी भी अधूरी है, असत्यापित स्रोतों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर जांच के निष्कर्षों पर अटकलें लगाना अनुचित है। कर्नल आनंद ने मीडिया समूह को इसकी मूल रिपोर्ट को सही करने के लिए भी सलाह दी।
उन्होंने कहा, क्या मैं अनुरोध कर सकता हूं कि पत्रकारों को संवेदनशील सैन्य मुद्दों पर रिपोर्ट करते समय आधिकारिक स्रोतों से तथ्यात्मक जानकारी की पुष्टि करने की सलाह दी जाए और इस समाचार रिपोर्ट को उसी के अनुरूप ठीक किया जाए।
बाद में कर्नल आनंद ने ‘जनता का रिपोर्टर’ को बताया कि उन्होंने मजूमदार को पत्र भेजा था। अपनी रिपोर्ट में, इंडिया टुडे के पत्रकार ने कहा था, “जम्मू कश्मीर में सेना द्वारा बुलाई गई जांच परिषद (सीओआई) ने एक मेजर को एक क्लीन चिट दे दी है जिसमें एक नागरिक को सेना की जीप के बोनट पर बांधा गया था।
इस मामले में जम्मू-कश्मीर पुलिस में FIR दर्ज कराई गई थी जिसके दो दिन बाद सेना ने 53 राष्ट्रीय राइफल्स के एक मेजर को कथित रूप से इसमें शामिल होने की बात को कहा था। इंडिया टुडे के कर्मचारियों ने भी इस खबर को ट्वीट किया था।
इस मामले में पीड़ित कश्मीरी युवक फारुख ने मीडियो को बताया था कि वह अपने रिश्तेदार के यहां जा रहा था जब उसको पकड़ा गया आर्मी के जवानों ने उसे मारा और तकरीबन 9 गांवों में उसकी छाती पर एक सफेद कागज लगाकर घुमाया। साथ ही जीप में बैठे आर्मी वाले चिल्ला रहे थे अब पत्थर फेंक कर दिखाओ।
जिस दिन फारूख को पकड़ा गया उस दिन कश्मीर में चुनाव हो रहे थे, वह वोट डालकर अपने रिश्तेदार के घर जा रहा था जब उसको पकड़ा गया। जिस समय उस जीप पर बांधकर घुमाया जा रहा था तब हर कोई डरा हुआ था किसी ने भी उसके पास आने की हिम्मत नहीं दिखाई।