भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को इन दिनों सोशल मीडिया सार्वजनिक तौर पर मज़ाक़ का सामना करना पड़ रहा है। गोगोई अपनी अगली किताब की वजह से हास्य के पात्र बन गए हैं। न सिर्फ उनकी किताब का शीर्षक हास्यास्पद है बल्कि उस किताब का विमोचन एक और विवादस्पद मुख्या न्यायाधीश एस ए बोबडे करेंगे।
जैसे ही गोगोई की किताब की खबर सामने आई, ट्विटर पर चुटकुलों और मीम फेस्ट की धूम मच गई।
तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने पूछा, “किसी ने मुझसे अभी-अभी पूछा है कि क्या रंजन गोगोई की किताब सीलबंद लिफाफे में बेची जाएगी या किताबों को दुकानों खोल कर रखी जाएगी? क्या ख्याल है ?”
एक ट्विटर यूज़र ने लिखा, “हर कोई रंजन गोगोई की आत्मकथा की आलोचना कर रहा है, कृपया किसी पुस्तक को उसके सीलबंद कवर से न आंकें। ”
पत्रकार वीर सांघवी ने ट्वीट किया, “जज के लिए न्याय? क्या किताब का नाम नहीं होना चाहिए: जज के लिए राज्यसभा का इनाम?”
गोगोई की पुस्तक का विमोचन भारत के एक अन्य विवादास्पद पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे करेंगे। कार्यक्रम के बाद गोगोई और सरकार समर्थक टीवी एंकर राहुल कंवल के बीच बातचीत होगी। कँवल पर अपने टीवी प्रसारण के माध्यम से इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देने के लिए अतीत में निंदा का सामना करना पड़ा है।
Gogoi's book with hilarious title will be released by Bobde. Next, Nirav Modi's book titled Justice for Businessman will be released by Mehul Choksy pic.twitter.com/HwRvqkzTqr
— Rifat Jawaid (@RifatJawaid) December 4, 2021
Justice for the Judge?
Shouldn’t the book be called: A Rajya Sabha reward for the Judge? pic.twitter.com/QZygm6Anq9— vir sanghvi (@virsanghvi) December 3, 2021
Someone just asked me whether Ranjan Gogoi's book will be sold in a sealed envelope or will it be on open display in bookshops?
Any idea?
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) December 2, 2021
After a liftime of dealing with seals Ranjan Gogoi has sealed the deal on a Book contract.
— Ziauddin Sherkar fully vaxxed & learning the sax???? (@ZiauddinSherkar) December 3, 2021
Everyone criticising Ranjan Gogoi's autobiography, please don't judge a book by its sealed cover.
— Soutik Banerjee (@advsoutik) December 2, 2021
गोगोई और बोबडे दोनों को विवादास्पद निर्णयों और नरेंद्र मोदी सरकार के सामने आत्मसमर्पण करके भारत की न्यायिक प्रणाली का गाला घोटने का श्रेय दिया जाता है। गोगोई ने, विशेष रूप से, सीलबंद लिफाफे में विवादास्पद मुद्दों पर सरकार की प्रतिक्रिया को स्वीकार करने के प्रचलन का आविष्कार किया था और उसे लोकप्रिय भी बनाया था। उन्होंने सीलबंद लिफाफे में सौंपे गए जवाब के आधार पर राफेल घोटाले में नरेंद्र मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी थी. गोगोई पर अपने जूनियर स्टाफ पर यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप भी लगे थे।
गोगोई सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच की अध्यक्षता कर रहे थे जिसने बाबरी मस्जिद-राम मंदिर मामले में विवादास्पद रूप से हिन्दुओं के पक्ष में फैसला सुनाया था।
जैसा कि अपेक्षित था, भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद उन्हें राज्यसभा के नामांकन के साथ पुरस्कृत किया गया। बाद में उन्हें इस साल जनवरी में Z+ सुरक्षा कवर दिया गया था।