न्यायपालिका-कार्यपालिका के बीच तनाव के आसार: सरकार ने कहा, ‘जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति उचित नहीं होगी’

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केंद्र सरकार की ओर से उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केनएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से रोकने बाद कार्यपालिका और न्यायपालिका में फिर घमासान छिड़ गया है। जोसेफ को जज बनाने की कोलेजियम (जजों की कमिटी) की सिफारिश को कानून मंत्रालय ने ठुकरा दिया है। इस बीच सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम से उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ को शीर्ष अदालत में न्यायाधीश बनाने के प्रस्ताव को यह कहते हुए गुरुवार (26 अप्रैल) को पुनर्विचार के लिए भेज दिया कि उनकी नियुक्ति ‘उचित’ नहीं होगी।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 59 वर्षीय मुख्य न्यायाधीश जोसेफ पर सरकार के रुख को कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव के बढ़ने के तौर पर देखा जा रहा है। न्यायाधीशों की नियुक्ति और न्यायाधीशों के तबादले जैसे मुद्दों पर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव है। हालांकि, सरकार को कोलेजियम के मुखिया चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से तुरंत समर्थन मिला।

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक चीफ जस्टिस ने कहा कि कार्यपालिका को न्यायमूर्ति जोसेफ का नाम पुनर्विचार के लिए वापस भेजने और दूसरे नाम को स्वीकार करने का पूरा हक है, भले ही दोनों नामों की सिफारिश एक साथ कॉलेजियम ने की थी। सीनियर वकील इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति जोसेफ की उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए सिफारिश कॉलेजियम ने इस साल जनवरी में की थी।

चीफ जस्टिस मिश्रा को लिखे पत्र में केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि न्यायमूर्ति जोसेफ का नाम सरकार की ओर से पुनर्विचार के लिए भेजने को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मंजूरी हासिल है। साथ ही पत्र में यह भी कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय में लंबे समय से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है। उच्चतम न्यायालय में अंतिम दलित न्यायाधीश के जी बालकृष्णन थे, जो मई 2010 में प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।

प्रसाद ने पत्र में कहा है, ‘इस मौके पर जोसेफ की उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति का प्रस्ताव उचित नहीं लगता है।’ पत्र में कहा गया है, ‘यह विभिन्न उच्च न्यायालयों के अन्य वरिष्ठ, उपयुक्त और योग्य मुख्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ भी उचित और न्यायसंगत नहीं होगा।’ सैद्धांतिक तौर पर कॉलिजियम सरकार के प्रस्ताव को अब भी खारिज कर सकता है और विधि मंत्रालय को न्यायमूर्ति जोसेफ का नाम दोबारा भेज सकता है। विधि मंत्रालय उसके बाद भावी कार्रवाई पर फैसला कर सकता है।

वर्तमान में प्रचलित कानून के अनुसार, उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिश अंतिम है और न्यायाधीशों की नियुक्ति में बाध्यकारी होती है। न्यायमूर्ति जोसेफ को पदोन्नत करने के प्रस्ताव का सरकार की ओर से विरोध किए जाने से कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव गहराने की आशंका है। न्यायमूर्ति जोसेफ ने 2016 में अपने फैसले के जरिए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को निरस्त कर दिया था और राज्य में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बहाल कर दिया था।

इस फैसले को उस वक्त केंद्र में बीजेपी सरकार के लिये बड़े झटके के तौर पर देखा गया था। न्यायमूर्ति जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किए जाने के प्रस्ताव पर सरकार की आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे ‘निराशाजनक’ बताया जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कहा कि ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है।’

 

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