अयोध्या जमीन विवाद मामले में अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। मोदी सरकार ने अयोध्या मामले में बड़ा कदम उठाते हुए उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर मांग की कि अयोध्या की विवादित जमीन छोड़कर 67 एकड़ की गैर-विवादित जमीन उनके मूल मालिकों को लौटा दी जाए। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सरकार की सुप्रीम कोर्ट में इस ‘जमीन वापसी’ याचिका को बड़े राजनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है। केंद्र ने कोर्ट में अर्जी देकर गैर-विवादित जमीन पर यथास्थिति हटाने की मांग है।
केंद्र सरकार ने अयोध्या में विवादास्पद राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के पास अधिग्रहण की गई 67 एकड़ जमीन को उसके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिए मंगलवार (29 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। एक नई याचिका में केंद्र ने कहा है कि उसने 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के पास 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था।
याचिका में कहा गया कि राम जन्मभूमि न्यास (राम मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन देने वाला ट्रस्ट) ने 1991 में अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि को मूल मालिकों को वापस दिए जाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने पहले विवादित स्थल के पास अधिग्रहण की गई 67 एकड़ जमीन पर यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। केंद्र सरकार (कांग्रेस की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार) ने 1991 में विवादित स्थल के पास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था।
बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले 1991 में तत्कालीन केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने मस्जिद और उसके आसपास की करीब 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए थे। विश्व हिंदू परिषद ने मोदी सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि सरकार ने अब सही दिशा में कदम उठाया है।
बता दें कि शीर्ष अदालत में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 आदेश के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गई हैं। अदालत ने 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटे जाने का आदेश दिया था।
आज होनी थी सुनवाई
बता दें कि अयोध्या जमीन विवाद मामले में सुनवाई 29 जनवरी यानी आज से शुरू होने वाली थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पीठ के पांच सदस्यों में एक न्यायमूर्ति एस ए बोबडे के उपलब्ध नहीं होने के कारण राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में आज ( मंगलवार/29 जनवरी) को होने वाली सुनवाई रविवार को रद्द कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा जारी नोटिस के अनुसार प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ अब इस दिन सुनवाई नहीं करेगी क्योंकि न्यायमूर्ति एस ए बोबडे इस दिन उपलब्ध नहीं होंगे।
नोटिस के मुताबिक, ‘‘इस बात का संज्ञान लिया जाए कि न्यायमूर्ति एस ए बोबडे के उपलब्ध नहीं होने की वजह से 29 जनवरी, 2019 को प्रधान न्यायाधीश की अदालत में संविधान पीठ के समक्ष होने वाली सुनवाई निरस्त की जाती है। इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर शामिल हैं।’’
इससे पहले मूल पीठ में शामिल रहे न्यायमूर्ति यू यू ललित ने खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था और 25 जनवरी को पुन: पांच जजों की संविधान पीठ का गठन किया गया था। जब नई पीठ का गठन किया गया तो न्यायमूर्ति एन वी रमण को भी पुनर्गठित पीठ से अलग रखा गया। इसकी कोई वजह नहीं बताई गई।