तीन तलाक को खत्म करने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में बिल ला सकती है मोदी सरकार

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मुस्लिम समाज में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को पूरी तरह से खत्म करने के लिए मोदी सरकार कानून ला सकती है। न्यूज एजेंसी ANI के अनुसार, संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार इस संबंध में विधेयक पेश कर सकती है। गौरतलब है कि इसी साल 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तीन तलाक की प्रथा को निरस्त करते हुये इसे असंवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। खबरों के मुताबिक सरकार मुस्लिम समाज में जारी एक बार में तीन तलाक कहने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करने के लिए एक विधेयक लाने पर पर विचार कर रही है और इसको लेकर एक मंत्रीस्तरीय समिति का गठन किया गया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक तीन तलाक को खत्म करने वाले विधेयक को इस सेशन में पेश किया जाएगा।

बता दें कि 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तीन-दो के बहुमत से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन तलाक को खत्म करते हुए असंवैधानिक करार दिया था। साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से इस संबंध में छह महीने के अंदर कानून बनाने को कहा था।

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस नजीर ने अल्पमत में दिए फैसले में कहा था कि तीन तलाक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है, इसलिए कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा। हालांकि दोनों जजों ने माना कि यह पाप है, इसलिए सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और तलाक के लिए कानून बनना चाहिए।

दोनों ने कहा था कि तीन तलाक पर छह महीने का रोक लगाया जाना चाहिए, इस बीच में सरकार कानून बना ले और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो रोक जारी रहेगा। साथ ही खेहर ने यह भी कहा था कि सभी पार्टियों को राजनीति को अलग रखकर इस मामले पर फैसला लेना चाहिए।

जबकि न्यायमूर्ति जोसेफ, न्यायमूर्ति नरीमन और न्यायमूर्ति उदय यू ललित ने इस मुद्दे पर प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति नजीर से स्पष्ट रूप से असहमति व्यक्त की थी कि क्या तीन तलाक इस्लाम का मूलभूत आधार है। बता दें कि पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने छह दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 18 मई को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने ग्रीष्मावकाश के दौरान 11 से 18 मई तक सुनवाई की थी।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित इस संविधान पीठ में विभिन्न धार्मिक समुदायों से ताल्लुक रखने वाले न्यायाधीश शामिल थे। जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) के अलावा जस्टिस कुरियन जोसेफ (ईसाई), आरएफ नरीमन (पारसी), यूयू ललित (हिंदू), और इस बेंच की अध्यक्षता कर रहे सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर (सिख) शामिल थे।

 

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